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शरारत में छिपी है ऊर्जा

बहुत लंबे इंतजार के बाद रेनू को बेटा हुआ। ढेरों खुशियां मनाई गई, लेकिन वह जैसे-जैसे बड़ा होता गया शरारती होता चला गया। हर समय शैतानी, शरारतें, शिकायतें जब समझ से बाहर हो गई तो शरण ली मनोचिकित्सक की। उ

By Edited By: Published: Fri, 06 Jul 2012 03:10 PM (IST)Updated: Fri, 06 Jul 2012 03:10 PM (IST)
शरारत में छिपी है ऊर्जा

बहुत लंबे इंतजार के बाद रेनू को बेटा हुआ। ढेरों खुशियां मनाई गई, लेकिन वह जैसे-जैसे बड़ा होता गया शरारती होता चला गया। हर समय शैतानी, शरारतें, शिकायतें जब समझ से बाहर हो गई तो शरण ली मनोचिकित्सक की। उसने बताया कि उनका बच्चा सामान्य से अलग है। वह जीनियस होने के साथ-साथ हाइपरएक्टिव भी था। उसकी क्षमताओं का सही इस्तेमाल न होने के कारण वह इस तरह की शैतानियां करता था। काउंसलर की सलाह से उसका नया टाइमटेबल बना जिसमें उसे इतना व्यस्त रखा गया कि अब उसके पास समय ही नहीं था बरबाद करने को। यह अकेला उदाहरण नहीं है ऐसे अनेक बच्चे है जिनकी योग्यताओं को न समझने पर उन्हे बेरुखी झेलनी पड़ती है।

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योग्यता को पहचानें

हर मां-बाप की तमन्ना होती है कि उसकी संतानहोनहार व प्रतिभाशाली हो। लेकिन कई बार आप अपनी संतान के हुनर को अनदेखा कर देते है। सही देखरेख न होने पर संतान की क्षमताएं व योग्यता कहीं दब-कुचल कर नष्ट हो जाती है। ठीक वैसे ही जैसे बिजली के गुणों का सही समय पर सही इस्तेमाल न हो तो वह लाभ की जगह अनिष्ट कर देती है। अपनी संतान की योग्यता का फायदा अभिभावकों को लेना आना बहुत जरूरी है। एक बार अपने बच्चों से परेशान होकर एक दंपती विशेषज्ञ के पास आए। उनका बेटा जरूरत से ज्यादा शरारती था। उन्होंने बच्चों का आईक्यू टेस्ट लिया तो उसका लेवल 125 निकला। अपने लंबे करियर में मनोचिकित्सक ने इतना लेवल शायद ही किसी का देखा हो। बहुत सफल प्रोफेशनल का आई क्यू लेवल भी 110 से 120 के बीच ही होता है। होता यह है कि जो बच्चों बहुत तेज दिमाग के होते है वे सामान्य बच्चों की तुलना में कोई भी चीज बहुत जल्दी सीख लेते हैं। इनकी याददाश्त भी अच्छी होती है। काम जल्दी हो जाने पर ये खाली हो जाते है और बोर हो या तो खुद कोई खुराफात करते है या परेशान करते है। एकाग्रचित्त न होना इनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। जरूरी नहीं कि ये केवल पढ़ाई से ही जुड़े अन्य रचनात्मक कार्यो में भी इन्हे उलझाए रखना पड़ता है। आकाश के मां-बाप को शिकायत थी कि वह सारा दिन टीवी देखता है। हर परीक्षा में पूरे अंक लेने वाला यह बच्चा अव्वल आता। वह पूरी लाइब्रेरी की किताबें पढ़ चुका था ऐसे में टीवी देखने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं था।

प्रोत्साहन दें

मनोचिकित्सकों की राय है कि ऐसे बच्चों के अभिभावकों को अपने बच्चे की खास विशेषता या रुझान को पहचान उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। जबरन उस पर अंकुश न रखें न ही उसका गुरु बनने की कोशिश करे, बल्कि हो सके तो उसे किसी योग्य विशेषज्ञ या गुरु की देखरेख में सौंपे। हर समय आदेश देने के स्थान पर उसे प्यार से समझाने की कोशिश करे। उससे दोस्ताना व्यवहार रखें। इसका यह मतलब नहीं है कि इन बच्चों को सही मार्गदर्शन या दिशा निर्देश की जरूरत नहीं होती। बल्कि सामान्य से ज्यादा देखरेख इन्हे चाहिए। आपको अपने बच्चे की प्रतिभा का सही इस्तेमाल करने के साथ ये आहत न हों इसका भी खास ध्यान रखना है।

तर्क दें

जैसे ही आपको एहसास हो कि आपका बच्चा सामान्य बच्चों से कुछ अलग है तो आप किसी मनोविश्लेषक की राय लें। उसकी ठीक से काउंसलिंग कराएं। जीनियस बच्चों की कुछ विशेषताएं है जैसे या तो वे शरारती होंगे या बहुत इंट्रोवर्ट। इनमें धैर्य व सहनशीलता कम होती है। वे आसानी से किसी बात को नहीं मानते व चुपचाप मानने के बजाय तर्क-वितर्क करते है। माता-पिता की डांट से उनके मानसिक विकास में बाधा पहुंचती है। ऐसे में माता-पिता धैर्य से काम लें और स्नेह से समझाएं कि क्यों उन्हे इस काम के लिए मना किया जा रहा है। हो सकता है कि वह एक विषय में पारंगत हो दूसरे में न हो, ऐसे में जबरदस्ती का दबाव न बनाएं। बहुत बार देखा जाता है कि विद्यार्थी जीवन में बहुत औसत रहने वाले ये जीनियस अपने मनचाहे क्षेत्र में आगे चलकर नाम कमाते है।

उसे समझें

हर मां-बाप अपने अधूरे ख्वाबों की ताबीर अपने बच्चों में पूरी होते देखना चाहते है। इसके लिए हर मुमकिन सुविधा आप बच्चों को देना चाहते है, लेकिन सुख-सुविधाएं देने का यह मतलब नहीं कि आपको मनमानी करने का अधिकार मिल गया। उनकी इच्छा को समझना व आदर करना भी आपके लिए जरूरी है। यह मानना कि वह कितना भी खास हो जाए, रहेगा तो बच्चा ही, गलत है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि ऐसे बच्चों के विचारों को समझना और उन्हे प्रोत्साहन देना समझदारी का काम है। बच्चे की प्रखर बुद्धि व तेज दिमाग का सबसे सही इस्तेमाल उसके अभिभावक ही कर सकते है।

दायित्व समझ

बचपन उम्र की सबसे नाजुक अवस्था है। यह नींव है जीवन की। यदि इस समय किसी भी प्रकार की चूक हो जाती है तो इसका खामियाजा सारी उम्र उठाना पड़ता है। शुरुआती कक्षाओं में सभी बच्चों अच्छा कर ले जाते है लेकिन जैसे-जैसे आगे क्लास बढ़ती है वैसे-वैसे पढ़ाई का अंक प्रतिशत कम होता जाता है। गिने-चुने बच्चों ही प्रतिभाशाली रह जाते है। दिमाग के ठीक काम करने में बहुत से कारण काम कर रहे होते है। यदि ध्यान से देखें तो बच्चों के पिछड़ने व आगे आने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उसके अभिभावक अदा कर रहे होते है। जिनमें अपने बच्चों की क्षमताओं को समझने व निखारने की अक्ल होती है उन्हीं का बच्चा प्रतिभाशाली व सफल हो पाता है। कहीं ऐसा न हो कि आपका बच्चा भी प्रतिभाशाली हो लेकिन आप उसे ठीक से समझ न पा रही हों। अपने बच्चों के विकास में बाधक नहीं बनिए, बल्कि मजबूत साधन बनने का प्रयास कीजिए।

यदि चाहती है कि आपका बच्चा सही दिशा में सफलतापूर्वक चले तो निम्न सलाहों को मानिए :

1. स्नेहिल व्यवहार रखते हुए उसे पूरा सहयोग व प्रोत्साहन दें।

2. आवश्यकता से अधिक कुशाग्र होने के कारण ये बच्चे अपना काम जल्दी खत्म कर लेते है और खाली हो जाते है इन्हे व्यस्त रखने की कोशिश करे।

3. सबसे अलग होने के कारण अधिकतर व्यवहारगत परेशानियों से ये बच्चों ग्रस्त हो जाते है इन्हे मिलनसार बनाने में मददगार होइए।

4. आपके बच्चों की आवश्यकताएं अलग व कठिन हो सकती है, उन्हे समझिए।

5. संतुलन बनाने में उन्हे सहयोग दें।

6. यह याद रखें कि सामान्य बच्चों की तरह ही इन्हे अदब-कायदा और तहजीब सिखानी है।

7. साथ ही समय प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

8. अपनी विशिष्टताओं के कारण इनमें घमंड न आए यह ध्यान रखें।

- डॉ. रीमा सहगल, मनोवैज्ञानिक

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