एक थे मन्ना डे..
सन् 1
सन् 1971 में राजकपूर अभिनीत फिल्म आई थी 'मेरा नाम जोकर'। फिल्म में एक गीत था कवि नीरज का लिखा हुआ, जिसे गाया था मन्ना डे ने। बोल थे 'ऐ भाई जरा देख के चलो..'। गीत के आगे की एक लाइन है, 'ये दुनिया एक सर्कस है, तीन घंटे का शो, पहला घंटा बचपन है, दूसरा जवानी है, तीसरा बुढ़ापा है..।' इसी के तहत मन्ना डे ने अपनी 94 साल की पारी यहां खेल ली और चले गए 'जिंदगी कैसी है पहेली हाय..' गाते-गुनगुनाते क्षितिज के उस पार, जहां एक दिन सभी को जाना है। गायक मन्ना डे अब हमारे बीच नहीं हैं। उन्होंने फिल्मों में जो भी गीत गाये, कमाल के गाये..। उनके गाये गीत हम जब भी सुनेंगे, उन्हें याद करेंगे कि एक थे मन्ना डे..।
मन्ना डे का जन्म 1 मई, 1919 को कोलकाता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम प्रबोध चंद्र डे था। उनके घर वाले चाहते थे कि वे पढ़-लिखकर वकील बनें। इसलिए उन्होंने कलकत्ता के विद्यासागर कॉलेज से बीए किया, लेकिन उनका मन तो संगीत में रमा था।
आखिर चाचा जो थे इस फील्ड में। तब उनके चाचा केसी यानी कृष्ण चंद्र डे, जिनका तब बड़ा नाम था, नेत्रहीन थे और वे न्यू थियेटर्स में बतौर गायक-अभिनेता काम कर रहे थे। मन्ना डे नाम उन्हीं का दिया हुआ है। वही संगीत में उनके प्रारंभिक गुरु बने।
कृष्ण चंद्र डे अनुशासनप्रिय थे। एक बार मन्ना डे के कॉलेज में संगीत प्रतियोगिता आयोजित हुई। मन्ना डे उसमें भाग लेना चाहते थे, परंतु उनके चाचा ने इसके लिए मना कर दिया। उधर मन्ना डे के सहपाठी इस बात पर अड़ गए कि वे इसमें अवश्य भाग लें। चाचा को इजाजत देनी पड़ी। मन्ना डे ने प्रतियोगिता के दसों वर्गो में भाग लिया। उन्हें दस में से नौ में प्रथम पुरस्कार मिला। बांग्ला शली में उन्हें दूसरा स्थान मिला, जो उनकी अपनी मातृभाषा थी।
1941 में न्यू थियेटर्स के कई कलाकार जब बंबई आए, जिनमें कृष्ण चंद्र डे भी थे, तो मन्ना डे भी उनके साथ हो लिए और उनके असिस्टेंट बन गए। 1942 में उन्होंने 'तमन्ना' फिल्म के लिए 'जागो आई ऊषा, पंछी बोले जागो..' गीत गाकर अपने गायन करियर की शुरुआत की, लेकिन फिल्म 'रामराज्य' में 'बुद्धं शरणं..' गीत गाने के बाद मन्ना डे का नाम जाना गया और उनका नाम धार्मिक व पौराणिक फिल्मों से जुड़ गया।
मन्ना डे ने गायन के अलावा स्वतंत्र संगीतकार के रूप में फिल्मों में संगीत भी दिया, जिसकी शुरुआत संगीतकार खेमचंद प्रकाश के सहायक के रूप में हुई। उन दिनों खेमचंद प्रकाश जयंत देसाई के निर्देशन में बनने वाली फिल्म 'गणेश जन्म' का संगीत-निर्देशन कर रहे थे। तभी वे गंभीर रूप से बीमार हो गए। उनकी बीमारी के चलते फिल्म का संगीत अधूरा रह गया, तो देसाई के आग्रह पर मन्ना डे ने उसे पूरा किया। परिणाम यह हुआ कि मन्ना डे को फिल्मों में बतौर संगीतकार काम करने के निमंत्रण मिलने लगे, लेकिन जिस तरह 'रामराज्य' में पार्श्वगायन करके उनकी पहचान धार्मिक व पौराणिक फिल्मों के पार्श्वगायक के रूप में बन गई थी, उसी तरह 'गणेश जन्म' की संगीत रचना के बाद उन्हें सिर्फ धार्मिक फिल्मों का संगीतकार मानकर जिन फिल्मों का संगीत-निर्देशन करने के लिए आमंत्रित किया गया, उनमें 'महापूजा', 'जय महादेव', 'गौरीपूजा' जैसी फिल्में थीं। पौराणिक फिल्मों के इस मायाजाल से दुखी होकर मन्ना डे ने संगीत-निर्देशन से तौबा कर ली और अपने को सिर्फ गायन तक सीमित रखने का मन बनाया। संयोग से उसी समय उन्हें बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'मशाल' में पार्श्वगायन का ऑफर मिला और उन्होंने सचिनदेव बर्मन के संगीत-निर्देशन में एक गीत गाया, 'ऊपर गगन विशाल.'। इस गीत ने मन्ना डे को पार्श्वगायन में स्थापित कर दिया। फिर तो शायद ही कोई संगीतकार हो, जिसके निर्देशन में उन्होंने न गाया हो।
मन्ना डे के कुछ प्राइवेट गीतों की बात होगी, तो उनकी गजलों, नज्मों तथा गीतों का एक प्राइवेट एलबम वर्षो पहले आया था, जिसके गीतों को मुरली मनोहर स्वरूप, श्याम सागर और यूनुस ने संगीतबद्ध किया था। इसी एलबम में खुद मन्ना डे द्वारा संगीतबद्ध किया गया गीत 'पल-भर की पहचान आपसे..' भी था।
'तुम मेरे दिल मेरी चाहत पे भरोसा कर लो..' नज्म मुरली मनोहर स्वरूप द्वारा संगीतबद्ध की गई थी, लेकिन इस प्राइवेट एलबम के अलावा मन्ना डे याद किए जाएंगे डॉ. हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' के गायन के लिए। इस लॉन्ग प्लेइंग रिकार्ड में पहली रुबाई खुद बच्चनजी के स्वर में है। शेष रुबाइयां मन्ना डे ने गाई हैं।
संगीतकार जयदेव ने कहा था, 'अगर बच्चनजी 'मधुशाला' लिखने के लिए बने थे, तो मन्ना डे इसे गाने के लिए।'
मधुकर राजस्थानी द्वारा रचित गीत, जिन्हें मन्ना डे ने गाया है, जैसे 'ये आवारा रातें..', 'नथनी से टूटा मोती..', 'मेरी भी इक मुमताज थी..' आदि गीत भी प्राइवेट एलबम में आए। मन्ना डे ने इस गीत की चर्चा चलने पर कहा था, 'इन गीतों को मैंने स्वर ही नहीं दिया, बल्कि इनकी धुनें भी मैंने ही बनाई थीं, मगर इन गीतों को आजकल सुनना कौन चाहता है!' 1991 में फिल्म 'प्रहार' में गाने के बाद मन्ना डे ने पार्श्वगायन से संन्यास ले लिया। उन्होंने फिल्मों के लिए लगभग साढ़े तीन हजार गीत गाए। गायकी में मन्ना दा भले ही सक्रिय नहीं थे, लेकिन उनका रियाज अंत तक जारी रहा।
(रतन)
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