जीतने की जिद
कहते हैं टीचर पहचान लेते हैं स्टूडेंट की प्रतिभा को, पर उनके शिक्षक उन्हें नहीं पहचान पाए। उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। दुनिया उन्हें मंदबुद्धि कहती रही, पर वे कहां हार मानने वाले थे। हम बात कर रहे हैं अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन की, जिन्होंने आलोचनाओं और मुश्किलों की परवाह न करते हुए सिर्फ अपने जुनून और जिद से का
कहते हैं टीचर पहचान लेते हैं स्टूडेंट की प्रतिभा को, पर उनके शिक्षक उन्हें नहीं पहचान पाए। उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। दुनिया उन्हें मंदबुद्धि कहती रही, पर वे कहां हार मानने वाले थे। हम बात कर रहे हैं अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन की, जिन्होंने आलोचनाओं और मुश्किलों की परवाह न करते हुए सिर्फ अपने जुनून और जिद से कामयाबी की इबारत लिखी। हर फील्ड में ऐसे जुनूनी लोग रहे हैं, जो जीतने की दृढ़ इच्छाशक्ति से मुश्किल राह पर आगे बढ़ते रहे। इंचियोन एशियाड के मौके पर आइए जानें जीत के जच्बे से भरे कुछ ऐसे खिलाड़ियों की कहानी, जिनका सफर यही बताता है कि नामुमकिन कुछ भी नहीं..
..फिर वह मेरा सपना बन गया
मैं बहुत छोटी थी तकरीबन पांच साल की, उस वक्त जिम्नास्टिक पसंद नहीं था मुझे। बार-बार प्रैक्टिस, बार-बार एक ही टेक्निक पर काम, घबरा जाती थी, बोर भी होती थी। बाद में पता चला कि यह सब इसलिए होता था, क्योंकि जिम्नास्टिक मेरा नहीं पापा का सपना था। वे खुद वेटलिफ्टिंग में थे और मुझे एक बेहतरीन जिम्नास्ट बनाने का सपना देखा करते थे।
थोड़ी बड़ी हुई तो पापा और मां दोनों को देखा कि कैसे मेरे लिए इतनी मेहनत करते हैं। उस वक्त तक काफी कुछ सीख गई थी मैं, पर मन में वह जिद पैदा नहीं कर पाई थी, जो आज महसूस करती हूं। अब तो हालत यह है कि इस गेम को मैंने अपना जीवन बना लिया है। अपना पसंदीदा खाना या टीवी प्रोग्राम, इसके आगे कुछ भी याद नहीं रहता। कुछ नहीं सोचती कि इस खेल में भविष्य क्या है या कितना दर्द या संघर्ष है। बस एक ही लक्ष्य है देश के लिए खेलना और उन लाखों-करोड़ों उम्मीदों को बरकरार रखना, जो मुझसे जुड़ी रहती हैं।
-दीपा करमाकर, जिम्नास्ट
साहस से मिलती है जीत..
मेरे नाम का अर्थ ही है-साहसी। यह नाम मेरे पापा ने रखा था। यह एक जापानी नाम है। वे नहीं चाहते थे कि मैं भी अपनी बहनों की तरह टेनिस खेलूं। बस अपनी जिद से आगे आया। जानता था आसान नहीं है असाधारण बनना। इसलिए कोशिश कभी नहीं छोड़ी। हार भी मिली मुझे। फ्रेंच ओपन बॉयज सिंगल्स और विंबलडन बॉयज सिंगल्स के पहले ही राउंड में बाहर हो गया था। यूएस ओपन बॉयज सिंगल्स में दूसरे राउंड में बाहर हो गया था। इन असफलताओं के बावजूद हिम्मत नहीं हारी मैंने। यही मेरी ताकत है और जीत का राज भी।
-यूकी भांबरी, टेनिस
हार से मिला सबक
सिर्फ सोचने या चाहने मात्र से ही जीत हासिल नहीं हो जाती। इसके लिए जीत की आग हमेशा अपने अंदर लगाये रखनी पड़ती है..। मैं बचपन में काफी उछलकूद मचाता था। यह देखकर मेरे बड़े भाई चिंतित रहते थे। मुझे जिम्नास्टिक में ट्रेंड करना तय किया गया। फिर क्या था शुरू हो गया मेरा सफर। सचमुच कमाल होने लगा। कुछ ही समय में मैं इस खेल में पक्का हो गया। भारत का ऐसा पहला खिलाड़ी बना, जिसने जिम्नास्टिक में पदक हासिल किया है। पर पिछले कॉमनवेल्थ गेम में फाउल होने की वजह से हार गया। पर वह हार ही मेरी सबसे बड़ी जीत भी थी। मैं जान गया कि कामयाबी कदम-दर-कदम मिलती है और जीतने की जिद ही कामयाबी का राज है।
-आशीष कुमार, जिम्नास्ट
मेरा मन कभी नहीं थकता..
एक छोटे शहर से आने की वजह से मुझे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। परिवार का साथ न होता, तो शायद इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाती। कोई कहता कि लड़की है इससे क्या होगा, तो कोई कहता पुरुषों के खेल में महिलाओं का क्या काम। ये बातें असर तो करतीं, लेकिन मैंने इन पर ध्यान देने के बजाय अपने खेल पर ध्यान केंद्रित किया और आगे बढ़ी। साथ-साथ पढ़ाई भी चलती रहती। तड़के उठकर प्रैक्टिस, फिर दिन भर दूसरे कामों से थक जाती, पर मन कभी न थकता। हरदम लक्ष्य पर नजर रहती है। मेरी कामयाबी का एक ही मंत्र है-हार्ड वर्क। इसका न कोई विकल्प है और न मोल है।
-बबीता कुमारी, रेसलर
इंचियोन: 17वां एशियाड
एशियन गेम्स, जिसे एशियाड के नाम से भी जाना जाता है, ओलंपिक के बाद दुनिया की सबसे बड़ी मल्टी स्पोर्ट्स प्रतियोगिता है। प्रत्येक चार वर्ष में इस प्रतियोगिता का आयोजन ओलंपिक काउंसिल ऑफ एशिया करती है। आज से साउथ कोरिया के इंचियोन में 17वां एशियन गेम्स शुरू हो रहा है। पहला एशियन गेम 1951 में भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। तब11 देशों ने भाग लिया था, इस बार 45 देश हिस्सा ले रहे हैं।
[प्रस्तुति: सीमा झा]