खेल नही है बच्चों का पालन-पोषण
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम बच्चों से भी यही अपेक्षा करते हैं कि वे बड़ों जैसे समझदार हो जाएं। हम यह भूल जाते हैं कि अभी तो वे बच्चे हैं...
बाल मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों का पालन-पोषण करना बच्चों का खेल नहीं है। यह बात सौ फीसद सही भी है कि बच्चों की परवरिश अगर सही ढंग से की जाती है तो आगे चलकर वे समझदार नागरिक बनते हैं और अपने जीवन में सफल भी रहते हैं।
दोस्त बनें बच्चों के बाल मनोवैज्ञानिक डा. रुपिका चावला कहती हैं कि यह सही है कि माता-पिता और बच्चों के बीच अनुशासन के लिहाज से थोड़ी दूरी होनी चाहिए, लेकिन यह दूरी इतनी भी न हो कि दोनों के बीच संवाद ही न स्थापित हो सकें। अगर आप अपने बच्चे को सही दिशा देना चाहती हैं तो उसे समझना बहुत जरूरी है। इससे भी ज्यादा जरूरी है उससे संवाद स्थापित करना।
बच्चों से संवाद स्थापित करने के लिए जरूरी है कि आपका उनके साथ दोस्ताना रवैया हो। बात-बात पर डांटना, फटकारना या उपदेश देने की बजाय उसकी जरूरतों, भावनाओं और समस्याओं को समझने तथा उन्हें सही दिशा में बढऩे के लिए प्रेरित करने वाला हो।
खुद चलकर दिखाएं
बाल मनोवैज्ञानिक डा. शालिनी शर्मा कहती हैं कि दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान होता है, लेकिन उस पर स्वयं अमल करना बहुत कठिन होता है। अगर आप चाहती हैं कि आपका बच्चा सही रास्ते पर चले तो सबसे पहले आपको अपने दिल और दिमाग से क्रोध को निकाल देना चाहिए। बच्चों के सामने किसी भी बात पर क्रोध न
करें। इससे बच्चे भी आपका अनुसरण करते हुए कभी क्रोधित नहीं होंगे। इसके साथ ही अच्छी और ज्ञान देने वाली किताबें पढ़ें, टीवी और इंटरनेट पर रोचक और मनोरंजक कार्यक्रम देखें। इससे बच्चों में भी यही भावना पनपेगी। हां, अगर बच्चे कभीकभार अपने मन का कुछ देखना या पढऩा चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए भी
थोड़ी छूट दें, लेकिन सही-गलत का फर्क उन्हें जरूर समझाएं। इससे बच्चों का बालमन भटकेगा नहीं।
निगरानी भी जरूरी है
बाल मनोवैज्ञानिक डा. अभिलाषा वर्मा कहती हैं कि अगर आप दोनों कामकाजी हैं तो ऐसे में यह और जरूरी हो जाता है कि बच्चों पर अपनी पूरी निगरानी जरूर रखें। आपका यह कहना कि क्या करें हम दोनों के पास समय नहीं है या अक्सर हमें घर से बाहर रहना होता है, यह रवैया सही नहीं है। आप चाहे घर में हों या बाहर बच्चों के संपर्क में रहना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही समय-समय पर उनके दोस्तों से भी बातचीत करती रहें। इससे बच्चों के बारे में सही जानकारी समय पर मिलती रहती है।
मन पर बोझ न डालें
बाल मनोवैज्ञानिक डा. शालिनी कहती हैं कि बच्चों पर अपनी कोई भी अपेक्षा या इच्छा लादने से पहले प्रत्येक माता-पिता को यह सोचना चाहिए कि बच्चों की रुचि किस दिशा में है। अगर आप उसकी रुचि के अनुसार उसे कार्य करने देंगी तो बच्चे बहुत सहजता से अपना काम कर सकेंगे। हां, उसे यह समझाना आपका कर्तव्य है
कि उसके लिए कब और क्या करना सही रहेगा।
परिवार की जानकारी
बाल मनोवैज्ञानिक डा. रुपिका कहती हैं कि यदि आप चाहती हैं कि आपके बच्चों का व्यक्तित्व संतुलित और सकारात्मक बने तो इसके लिए जरूरी है कि बच्चों को घर-परिवार के अन्य सदस्यों और अपने मित्रों के बारे में भी बताएं। छुट्टियों के दिनों में शापिंग माल, पार्क या अन्य किसी रमणीक स्थल पर ले जाने के साथ-साथ उन्हें परिवारीजनों और परिचितों से मिलवाने ले जाएं। अपने लोगों के साथ छुट्टियों का प्रोग्राम बना सकती हैं। चाहें तो उन्हें अपने घर पर भी आमंत्रित कर सकती हैं। इस तरह की सोच से आप बच्चों को भावनात्मक रूप से एक सशक्त इंसान के रूप में विकसित कर सकेंगी और उन्हें एक स्वस्थ व समझदार नागरिक भी बना सकेंगी।
इला शर्मा