..हौसला मत खोना
'यार पता है, हमारे स्कूल में फिर से इंटर स्कूल डिबेट कॉम्पिटिशन आयोजित हो रहा है.. बहुत मजा आएगा।' स्कूल बस में मैं आराम से बैठा था कि तभी पीछे से किसी ने कहा। मुड़कर देखा तो मेरी क्लासमेट यह कहते हुए काफी उत्साहित नजर आई। पर मैं उदास हो गया। मैं डिबेट के लिए खुद को
'यार पता है, हमारे स्कूल में फिर से इंटर स्कूल डिबेट कॉम्पिटिशन आयोजित हो रहा है.. बहुत मजा आएगा।' स्कूल बस में मैं आराम से बैठा था कि तभी पीछे से किसी ने कहा। मुड़कर देखा तो मेरी क्लासमेट यह कहते हुए काफी उत्साहित नजर आई। पर मैं उदास हो गया। मैं डिबेट के लिए खुद को सक्षम नहीं मानता था। ये बातें मन में चल रही थीं कि तभी असेंबली में सभी स्टूडेंट्स को बुलाया गया। प्रतिभागियों में मेरा नाम भी शामिल किया गया। एक तरफ मैं खुश था, तो दूसरी तरफ डरा हुआ भी। इस सूची में वे स्टूडेंट्स भी थे, जो पिछले साल डिबेट के विजेता रह चुके थे। इनमें शादिका भी थी, जो काफी अच्छी वक्ता थी। टॉपिक मिला नहीं कि बिना रुके बोलने का हुनर था उसमें..।
कॉम्पिटिशन का दिन भी आ गया। बारी-बारी से सब आए और बोलकर चले गए। जब मंच से मेरा नाम पुकारा गया, तो मेरे हाथ-पांव फूल गए। 'आपके चारों तरफ पानी है' इस टॉपिक पर मैं दो-चार लाइन बोलने के बाद मौन हो गया। मुझे मंच छोड़कर चले जाने को कहा गया। मैं बाहर आकर खूब रोया। तभी वहां आलोक सरकार सर आए। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखकर कहा- 'अपना प्रयास जारी रखना, हौसला कभी मत खोना।' थॉमस अल्वा एडिसन का उदाहरण देकर उन्होंने मेरी हौसलाअफजाई की कि कैसे बार-बार फेल होने के बाद उन्होंने बल्ब का आविष्कार किया। यह सुनकर मुझमें गजब की हिम्मत आ गई। डिबेट के आखिरी दौर में उन कैंडिडेट्स को बुलाया जाना था, जिन्होंने खराब प्रदर्शन किया था। मैं भी उनमें से एक था। जैसे ही मैंने अपना स्पीच खत्म की, तालियों की गड़गड़ाहट मेरा स्वागत कर रही थी। जब विजेता के रूप में मेरा नाम पुकारा गया, तो मेरी आंखों से आंसू आ गए। मैं मन ही मन आलोक सर का शुक्रिया कर रहा था और अपने हौसले को देखकर खुद हैरान भी था।