वेटरन लीडर क्यों न हों रिटायर!
इलेक्शन लड़ने की जिद पर आमादा बुजुर्ग राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पॉलिटिक्स में रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होनी चाहिए? आखिर क्यों उम्र के आखिरी पड़ाव तक कुर्सी के प्रति नेताओं का मोह कम नहीं हो पाता? शारीरिक अशक्तता बढ़ते जाने के साथ-साथ मानसिक रूप
इलेक्शन लड़ने की जिद पर आमादा बुजुर्ग राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पॉलिटिक्स में रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होनी चाहिए? आखिर क्यों उम्र के आखिरी पड़ाव तक कुर्सी के प्रति नेताओं का मोह कम नहीं हो पाता? शारीरिक अशक्तता बढ़ते जाने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी पूरी तरह उपयुक्त न होने के बावजूद राजनीति के ये वेटरन खिलाड़ी आड़े-तिरछे पैंतरे मारने को क्यों बेचैन रहते हैं? माना कि देश चलाना कोई बच्चों का खेल नहीं है और इसके लिए स्पष्ट नजरिया, सटीक निर्णय लेने की क्षमता, दूरदर्शिता, परिपक्वता और लंबे अनुभव की दरकार होती है, पर क्या सक्षम युवाओं के पास इस तरह की काबिलियत नहीं हो सकती? इसमें कोई शक नहीं कि वेटरन लीडर्स के पास लंबा अनुभव और नजरिया होता है। इनमें से कुछ अपने को हर तरह से फिट भी रखते हैं, लेकिन क्या सबके साथ यह बात लागू हो सकती है? अगर नहीं, तो आपको ऐसे कितने नाम पता होंगे, जिन्होंने स्वेच्छा से राजनीति से अवकाश ले लिया होगा? जब हम दुनिया के संदर्भ में भारत की बात करते हैं, तो यह कहते नहीं अघाते कि हमारा देश सबसे ज्यादा युवा है। इस बात पर दुनिया के तमाम मुल्क रश्क भी करते होंगे, पर क्या हमने और हमारे नीति निर्धारक राजनेताओं ने कभी यह सोचने की जहमत उठाई है कि बदलते वक्त की नब्ज को भांपते हुए देश चलाने की जिम्मेदारी सक्षम युवा कंधों को सौंप दी जानी चाहिए? जब सब मानते हैं कि हमारे युवा पर्याप्त काबिल हैं और उनकी वजह से ही देश को विश्व मंच पर नई पहचान मिल रही है, तो फिर राजनीति के क्षेत्र में क्यों उनकी क्षमता पर संदेह किया जाता है? क्या बुजुर्ग राजनेता अपने अनुभव से उनका मार्गदर्शन नहीं कर सकते, ताकि अनुभव की कमी से कभी उनके कदम भटकें, तो पहले ही उन्हें सचेत किया जा सके।
अब समय आ गया है, जब उम्रदराज नेताओं को खुद को राजनीति से अलग करने की पहल करनी होगी। दुनिया के किसी भी विकसित देश की बात करें, तो वहां हमारी तरह उम्रदराज नेता शायद ही देखने को मिलें। यह ठीक है कि राजनीति कोई नौकरी नहीं, जहां रिटायरमेंट की बात की जाए। लेकिन इस बात से तो शायद ही कोई इंकार करेगा कि देश की ड्राइविंग सीट पर बैठने वाले को शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह मजबूत होना चाहिए, ताकि वह अपनी जनता का ख्याल रखते हुए देश को निर्बाध रूप से तरक्की की राह पर ले जा सके..।
संपादक
दिलीप अवस्थी