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साइंस के साथ बढ़ेगा इंडिया

आगामी 5 नवंबर को हमारे मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) की लॉन्चिंग के एक साल पूरे हो रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस यान को जिस कामयाबी से मंगल की कक्षा में स्थापित कर इतिहास रचा, उससे पूरा देश गौरवान्वित हुआ। मार्स और मून मिशन की कामयाबी ने साइंस और इनोवेशन के प्रति लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ा दी है। स

By Edited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 12:39 PM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 12:39 PM (IST)
साइंस के साथ बढ़ेगा इंडिया

आगामी 5 नवंबर को हमारे मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) की लॉन्चिंग के एक साल पूरे हो रहे हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस यान को जिस कामयाबी से मंगल की कक्षा में स्थापित कर इतिहास रचा, उससे पूरा देश गौरवान्वित हुआ। मार्स और मून मिशन की कामयाबी ने साइंस और इनोवेशन के प्रति लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ा दी है। सरकार, साइंस से जुड़े संगठन, डीएसटी, टिफैक, विज्ञान प्रसार के अलावा तमाम संस्थानों और आइआइटीज द्वारा इस दिशा में की जा रही प्रेरक पहल से आने वाले दिनों में भारत साइंस में भी खास पहचान बना सकता है..

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भारत के मार्स मिशन ने दुनिया भर में भारतीय वैज्ञानिकों का लोहा मनवा दिया। मिशन को कामयाबी से मंगल की कक्षा में स्थापित करके भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा (अमेरिका, रूस और यूरोपीय यूनियन के बाद) और एशिया का पहला देश बन गया। भारतीय वैज्ञानिकों ने जिस कुशलता और कम संसाधन में इसे बनाया, उससे दुनिया के किसी भी देश को रश्क हो सकता है। जैसेकि सैटेलाइट का आकार नैनो कार जितना है, इस पर महज 450 करोड़ रुपये यानी 70 लाख डॉलर का खर्च आया, यह हॉलीवुड की फिल्म ग्रेविटी की लागत से भी कम है। जबकि नासा के नए मंगल यान की लागत इससे 10 गुना ज्यादा है। अमेरिकी रोवर यान क्यूरियॉसिटी की लागत 2 अरब डॉलर थी। मॉम को बनाने में इसरो को केवल 15 महीने लगे। यह 70 करोड़ किलोमीटर से भी ज्यादा की यात्रा कर चुका है। मार्स मिशन की कामयाबी ने भारत में साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में युवाओं, खासकर स्टूडेंट्स की दिलचस्पी खासी बढ़ाई है। हमारे संस्थान टेक्नोलॉजी और इनोवेशन की दिशा में काफी कुछ कर रहे हैं, पर स्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में इसे और बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि देश साइंस में सिरमौर बन सके :

स्टूडेंट्स में जगाएं साइंस में इंट्रेस्ट

देश में साइंस एजुकेशन को बढ़ावा देने की जरूरत है। वरिष्ठ वैज्ञानिकों को नियमित रूप से स्टूडेंट्स से इंटरैक्शन करते रहना चाहिए। पैरेंट्स को भी अपने बच्चों को उसकी रुचि के क्षेत्र में पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे मोबाइल साइंस लैब्स की व्यवस्था की जानी चाहिए, जो हर जिले और गांव के इंस्टीट्यूट्स में जाकर छोटे-छोटे एक्सपेरिमेंट करें और स्टूडेंट्स के सामने उसे दिखाएं। साइंस स्टूडेंट्स को बेहतर दृष्टि देता है, क्योंकि यह मानसिक अंधकार को दूर करता है और दिमाग को चुनौती देता है कि उन तमाम वैज्ञानिक समस्याओं को दूर किया जाए जिनका अभी समाधान नहीं हो सका है। साइंस विभिन्न एप्लीकेशंस के माध्यम से टेक्नोलॉजी से जुड़ा है।

एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व-राष्ट्रपति व वैज्ञानिक

इंस्पायर फॉर साइंस

भारत सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत 2 हजार करोड़ रुपये का यह प्रोजेक्ट 13 दिसंबर, 2008 को शुरू किया।

इसे साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट मैनेज करता है।

इंस्पायर अवॉर्ड

हर साल 10 से 15 साल के बच्चों के लिए इंस्पायर अवॉर्ड कॉम्पिटिशन कराए जाते हैं। सलेक्टेड स्टूडेंट्स को 5,000 रुपये की स्कॉलरशिप दी जाती है।

इंस्पायर इंटर्नशिप

11-12वीं क्लास के बच्चों को अवेयर करने के लिए कैंप्स लगाए जाते हैं। वहां दिग्गज साइंटिस्ट्स औऱ नोबेल लारिएट्स बच्चों से इंटरैक्शन करते हैं।

इंस्पायर स्कॉलरशिप

12वीं क्लास में टॉप करने वाले ऐसे 10,000 स्टूडेंट्स को साल भर के लिए 80 हजार रुपये की स्कॉलरशिप दी जाती है, जो आगे साइंस सब्जेक्ट की पढ़ाई करते हैं।

इंस्पायर फेलोशिप

एमएससी में यूनिवर्सिटी में फ‌र्स्ट रैंक पाने वाले स्टूडेंट्स को यह फेलोशिप दी जाती है। 65 परसेंट मा‌र्क्स वाले इंस्पायर स्कॉलर भी इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं।

फैकल्टी स्कीम

इसके तहत 27 से 32 साल की उम्र के सलेक्टेड रिसर्च स्कॉलर्स को हर महीने 80 हजार रुपये रिसर्च के लिए दिए जाते हैं।

स्कीम फॉर वीमेन

महिलाओं के लिए साइंस में अलग रिसर्च प्रोग्राम है।?जो महिलाएं फैमिली ब्रेक के बाद वापस आकर साइंस में रिसर्च करना चाहती हैं, उनके लिए अलग सपोर्टिव सिस्टम डेवलप किया गया है।

बच्चों में पैदा करें एक्साइटमेंट

बच्चों में छुपे साइंटिफिक टैलेंट का उन्हें अहसास कराने की जरूरत है। हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे साइंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट की ओर अट्रैक्ट हों।

नीरज शर्मा, एडवाइजर, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी

इग्नाइट योर टैलेंट

देश के स्कूली बच्चों की क्रिएटिविटी और इनोवेटिव स्पिरिट को एनकरेज करने के लिए इग्नाइट प्रतियोगिता 2008 से हर साल अगस्त महीने में कराई जाती है। इसका आयोजन नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन कराता है। इसमें बच्चों से उनके ओरिजिनल क्रिएटिव टेक्नोलॉजिकल आइडियाज और इनोवेटिव वर्क मंगाए जाते हैं।

सर्च फॉर इनोवेटर्स

इसमें एक स्टूडेंट एक ही नहीं, बल्कि कई सारी एंट्रीज भेज सकता है। यह प्रतियोगिता केवल 12वीं क्लास तक के बच्चों के लिए ही है। मैक्सिमम एज लिमिट 18 साल है। इसमें केवल साइंस बैकग्राउंड वाले ही नहीं, बल्कि किसी भी सब्जेक्ट या स्ट्रीम के बैकग्राउंड वाले स्टूडेंट पार्टिसिपेट कर सकते हैं। अपने आइडियाज भेजने के लिए कोई निश्चित फॉर्मेट नहीं है। बस अपने प्रोजेक्ट की फोटो आदि मेल या डाक से एनआइएफ को भेज सकते हैं।

इग्नाइट 2015

इसके लिए इनोवेटिव आइडियाज मंगाए गए हैं। लास्ट डेट 31 अगस्त 2015 है। अवॉ‌र्ड्स की घोषणा 15 अक्टूबर 2015 को होगी।

एनआइएफ

यह भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी की ऑटोनोमस बॉडी है, जिसकी स्थापना मार्च 2000 में हुई थी। इसका मकसद ग्रासरूट्स टेक्नोलॉजिकल इनोवेशंस और आउटस्टैंडिग ट्रेडिशनल नॉलेज को मजबूत करना है। इसका काम पूरे देश से ऐसे ग्रासरूट इनोवेटर्स को ढूंढ़कर निकालना है, जिन्होंने टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन का कोई काम डेवलप किया है, वह भी बिना किसी बाहरी मदद के।

सवा अरब इनोवेटिव माइंड्स

सवा अ्ररब भारतीय केवल सवा अरब चेहरे नहींहैं, बल्कि सवा अरब दिमाग हैं। एनआइएफ उन सबके इनोवेशन के लिए एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है।

डॉ. आरए माशेलकर, चेयरपर्सन, नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन

इसरो ट्रेनिंग पर जोर

स्पेस साइंस और टेक्नोलॉजी में एजुकेशन भी भारतीय स्पेस प्रोग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) इस दिशा में सक्रियता से प्रयास कर रहा है। इस फील्ड में मानव संसाधन तैयार करने के लिए कई तरह की पहल कर रहा है। डीओएस यानी डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ने स्पेस प्रोग्राम में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आइआइएसटी) की स्थापना की है। इस इंस्टीट्यूट द्वारा एवियनिक्स, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और फिजिकल साइंसेज में स्पेशलाइजेशन के साथ स्पेस टेक्नोलॉजी में बैचलर डिग्री दी जाती है। नेचुरल रिसोर्सेज और डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए रिमोट सेंसिंग, जियो-इनफॉर्मेटिक्स और जीपीएस टेक्नोलॉजी के फील्ड में भी प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग दी जाती है।

डीआरडीओ

टैलेंट को दे रहा सहारा

डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) डिफेंस मिनिस्ट्री के डिफेंस रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट के तहत काम करता है। यह देश को डिफेंस सिस्टम में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम कर रहा है। डीआरडीओ विभिन्न विभागों के कर्मियों के लिए कॉन्टिन्यूइंग एजुकेशनल प्रोग्राम्स के द्वारा ट्रेनिंग और डेवलपमेंट पॉलिसी भी लागू करता है। डीआरडीओ के तहत आने वाला लाइफ साइंसेज रिसर्च बोर्ड (एलएसआरबी) बायोलॉजिकल ऐंड बायोमेडिकल साइंसेज, साइकोलॉजी और फिजियोलॉजी जैसे लाइफ साइंसेज के कई टॉपिक्स में रिसर्च प्रपोजल को सपोर्ट करता है। बोर्ड ने आइआइटी, यूनिवर्सिटीज, मेडिकल और लाइफ साइंस इंस्टीट्यूट्स, कॉलेज और अन्य रिसर्च सेंटर में रिसर्च टैलेंट को नर्चर करने के लिए ग्रांट-इन-एड स्कीम की शुरुआत की है। डीआरडीओ ने देश में कई नॉलेज सेंटर और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस भी स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है। इसके लिए इस साल के बजट में 500 करोड़ रुपये रखे गए हैं।

inspire a2ardee

हियरिंग इंपेयर्ड डिवाइस

मैंने हियरिंग इंपेयर्ड के लिए एक ऐसा साउंड डिवाइस बनाया है, जिसे दांतों के बीच रखकर इस्तेमाल किया जा सकता है। जब कोई भी आवाज आती है, तो यह मशीन दांतों के जरिए ही सिग्नल्स दिमाग को पहुंचा देती है। इससे मशीन यूज करने वाला आवाज को समझ लेता है। मुझे इस तरह की नई-नई चीजें बनाना बहुत अच्छा लगता है।

प्रफुल्ल कुमार सोनी 10वीं क्लास, गवर्नमेंट हाईस्कूल, बालाड, छत्तीसगढ़

फ्यूल बचाने की मशीन

मैंने नमक के पानी से एनर्जी पैदा करने वाली एक मशीन बनाई है। हर महीने टीवी पर पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते देखती थी। फिर मुझे लगा कुछ ऐसा बनाना चाहिए, जिससे फ्यूल की टेंशन कम हो। ऐसे में मैंने अपने टीचर के साथ मिलकर यह मशीन तैयार की, जिससे कम लागत में ज्यादा एनर्जी हो सके।

अक्षरा गर्ग 10वीं क्लास, गोमती ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज, मुजफ्फरनगर, यूपी

बिना धुएं का चूल्हा

मैं घऱ पर मां को चूल्हे पर खाना पकाते देखती थी। चूल्हे से बहुत धुआं निकलता था, जिससे मां की आंखें लाल हो जाती थीं। मुझसे देखा नहीं गया। मैंने टीचर से डिस्कस किया और ऐसा चूल्हा बनाया, जिसमें धुआं नहीं होता, चाहे उसमें ईधन के रूप में लकड़ी, कोयला किसी भी चीज का प्रयोग हो।

रीतिका रॉय 10वीं क्लास, एमपीएस ग‌र्ल्स स्कूल, नवादा, बिहार

टेक्नोलॉजी थिंक टैंक

टिफैक भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी का एक ऑटोनॉमस ऑर्गेनाइजेशन है। इसकी स्थापना 1988 में की गई थी। इसका काम टेक्नोलॉजी के फ्यूचर ऑस्पेक्स्ट्स के बारे में प्लान करना होता है। फ्यूचर में किस तरह की टेक्नोलॉजी की जरूरत होगी, इसका मूल्यांकन करना इसी संगठन का काम है। इसके साथ-साथ यह संगठन देश भर में हो रहे इनोवेटिव टेक्नोलॉजिकल व‌र्क्स को सपोर्ट भी देता है।

इन सेक्टर्स में काम करता है : -एग्रीकल्चर-एग्रो-फूड प्रोसेसिंग -हेल्थ -बॉयो-प्रॉसेस ऐंड बॉयो प्रोडक्ट्स -ऑटोमोबाइल -एडवांस्ड कंपोजिट -एसएमई-टेक्नोलॉजिकल अपग्रेडेशन प्रोग्राम

टिफैक के देश भर में कई सारे पेटेंट फैसिलिटेटिंग सेंटर्स हैं। इनके जरिए इनोवेटिव प्रोडक्ट्स को पेटेंट्स मुहैया कराए जाते हैं।

विजन फॉर टेक्नोलॉजी

1993 से टाइफैक ने टेक्नोलॉजी के कई सेक्टर्स के डेवलपमेंट के लिए एक टेक्नोलॉजिक विजन तैयार करना शुरू किया है। इसी क्रम में 2000 में विजन 2020 शुरू किया गया था और अब टेक्नोलॉजी विजन 2035 पर भी तेजी से काम किया जा रहा है।

पैशन ही कराता है नित नए इनोवेशन

साइंस और टेक्नोलॉजी एक-दूसरे के पूरक हैं। जब तक आप इन दोनों को जिएंगे नहीं, तब तक कुछ इनोवेटिव नहीं कर पाएंगे। हमेशा कुछ नया खोजने का जुनून होना चाहिए।

डॉ. प्रभात रंजन एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर, टिफैक

विकसित भारत का सपना

मिशन 2035 प्रोजेक्ट अभी शुरू नहीं हुआ है। इसमें 12 थिमेटिक एरिया चुने गए हैं, जिन पर काम करके भारत को 2035 तक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देखा गया है।

इन पर होगा काम

-एजुकेशनल टेक्नोलॉजी एनर्जी -टेक्नोलॉजी एनवॉयर्नमेंट फूड ऐंड एग्रीकल्चर

-ग्लोबल चैलेंज इश्यूज

-हैबिटेट

-इंफॉर्मेशन ऐंड कम्युनिकेशन -टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर -मैटीरियल्स ऐंड मैन्युफैक्चरिंग -मेडिकल साइंस ऐंड हेल्थ केयर -ट्रांसपोर्टेशन

-वाटर टेक्नोलॉजी

टिफैक ने एक बल्ब के आकार में कई सारे एनर्जी एरियाज को मार्क किया है, जिसमें इस मिशन के तहत काम किया जाएगा।

विजन 2020

विजन 2020 पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। इसे 18 फरवरी 1999 को लॉन्च किया गया था। प्रोजेक्ट में भारत को 2020 तक विकसित देश बनाने की कल्पना की गई है। इसमें कुल 17 सेक्टर्स हैं, 16 टेक्नोलॉजी के और एक सर्विस का। इस प्रोजेक्ट में साइंटिस्ट्स, टेक्नोलॉजिस्ट्स और एकेडमी, इंडस्ट्री और सरकारी विभागों के कॉरपोरेट मैनेजर्स सहित कुल 5000 एक्सप‌र्ट्स शामिल हैं।

इन पर हो रहा है काम

-एग्रीकल्चर ऐंड एग्रो प्रोसेसिंग -हेल्थ सर्विसेज ऐंड -हर्बल/नेचुरल प्रोडक्ट्स मिशन -रीच रोड ऐंड ट्रांसपोर्ट मशीनरी -टेक्सटाइल मशीनरी

-सलेक्टेड एसएमई

-पॉटरी

-बॉयो प्रॉसेस

-बॉयो प्रोडक्ट्स

प्रोग्राम्स

विज्ञान का प्रसार जरूरी

विज्ञान-प्रसार की स्थापना 1989 में भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी ने की थी। यह दूर-दराज के बच्चों में विज्ञान और वैज्ञानिक अप्रोच के प्रचार-प्रसार के लिए काम करता है। विज्ञान प्रसार की डिजिटल लाइब्रेरी है, जहां से साइंस की बुक्स डाउनलोड की जा सकती हैं। यहां से ड्रीम 2047 के नाम से एक साइंस मैगजीन भी निकलती है। यहां साइंस रिलेटेड ऑडियो विजुअल्स भी उपलब्ध हैं। साइंस फिल्म फेस्टिवल्स का भी आयोजन समय-समय पर किया जाता है। यहां वीआइपी नेट न्यूज के नाम से पब्लिकेशन और क्लब भी है। इसमें साइंटिफिक न्यूज पब्लिश की जाती है। इस पर डिस्कशन भी होते रहते हैं। हैम रेडियो का भी कॉन्सेप्ट यहां है, जिसमें वायरलेस कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी में इंट्रेस्ट रखने वाले जुड़ सकते हैं।

गांव-गांव में छुपी प्रतिभाओं को एनकरेज करना है

विज्ञान और वैज्ञानिक अप्रोच का गांव-गांव तक पहुंचना बहुत जरूरी है। फ्री मैगजीन, बुक्स और ऑनलाइन माध्यम के जरिए हम यही कोशिश कर रहे हैं।

डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन डिवीजन हेड, साइंस कम्युनिकेशन ट्रेनिंग, विज्ञान-प्रसार

साइंस में हम और दुनिया

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सही सिटिंग पॉश्चर

मेरी मां हमेशा उठने-बैठने के सही तरीके के बारे में बताती रहती थीं। इसी क्रम में मैंने महसूस किया कि अगर चेयर पर ठीक ढंग से न बैठा जाए, तो उससे कई तरह की प्रॉब्लम्स हो सकती हैं। इसी के बाद मैंने एक ऐसा सेंसर बनाया, जो चेयर पर लगाने से आपके सही और गलत पॉश्चर के बारे में इंडिकेट करता है।

कुलसुम रिजवी छठी क्लास,

लॉ मार्टिनियर स्कूल, लखनऊ, यूपी

एकाग्र करने वाला पेन

मैं एक बार फिजिक्स के एक चैप्टर के नोट्स बना रहा था, लेकिन मैं उस पर कंसंट्रेट नहीं कर पा रहा था, एक टॉपिक से दूसरे टॉपिक पर ध्यान भटक रहा था। तभी मैंने एक ऐसा पेन बनाने के बारे में सोचा जिससे कंसंट्रेशन बन सके। इसकी ग्रिप पर प्रेशर सेंसर लगा हुआ है। कंसंट्रेशन हटते ही पेन काम करना बंद कर देता है।

रुद्र प्रसाद गोस्वामी

11वींक्लास, डीएवी पब्लिक स्कूल, रांची

एंटी-थेफ्ट डिवाइस

मेरी सिस्टर अक्सर कार की चाबी गाड़ी में ही भूल जाती हैं। मैंने इस बारे में पढ़ा था, कि लोग कार में ही चाबी भूल जाते हैं। फिर उनकी कार चोरी हो जाती है। इसी से मुझे यह आइडिया आया कि कोई ऐसी मशीन बनाई जाए, जो इसे रोक सके। फिर मैंने रिमोट सेंसर पर आधारित डिवाइस बनाई।

चंद्रमौलि कंदाचर

12वीं क्लास, आरवीपीयू कॉलेज, बेंगलुरु

क्लाइम्बिंग व्हील चेयर

आइआइटी कानपुर में एमटेक करने के दौरान मैंने क्लाइम्बिंग व्हील चेयर डेवलप की, जिसका नाम रखा वरदान। इसकी मदद से किसी भी तरह की सीढ़ी पर आसानी से चढ़ा जा सकता है। इसमें लगा रैचेट और ब्रेकिंग सिस्टम अच्छी ग्रिप देता है। मैंने इसमें कुछ और बदलाव किए हैं। आज यह कनवर्टिबल चेयर की तरह फंक्शन कर सकता है, यानी समतल जमीन पर सामान्य व्हील चेयर और सीढि़यों पर क्लाइम्बिंग चेयर की तरह।

शानू शर्मा

इनोवेशन : क्लाइंबिंग व्हील चेयर

पीएचडी स्टूडेंट, आइआइटी कानपुर

मिलावट का पता करने वाला डिवाइस

मैं जब प्राइमरी स्कूल में था, तभी से साइंस के विभिन्न चमत्कारों के बारे में सोचता रहता था। पहली बार नारियल शेल से एक टॉय-कार्ट बनाया था। इसके बाद फैसला कर लिया कि साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी से रिलेटेड पढ़ाई करूंगा। मैंने आइआइटी कानपुर से एमटेक किया। वहीं, मैंने एक ऐसा माइक्रोवेव कोप्लैनर सेंसर सिस्टम डेवलप किया जो फूड प्रोडक्ट्स में मिलावट का पता लगा सकता है। इसके लिए मुझे आरए माशेलकर ने सम्मानित भी किया है।

शाजी एम राघव

इनोवेशन : माइक्रोवेव कोप्लैनर सेंसर

इंजीनियर, दूरदर्शन केंद्र, चेन्नई

साइंटिफिक सृष्टि

सृष्टि एक एनजीओ है, जिसका पूरा नाम है सोसायटी फॉर रिसर्च ऐंड इनिशिएटिव्स फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजिज ऐंड इंस्टीट्यूशंस। इसकी शुरुआत इनोवेटर्स सर्च के हनी बी नेटवर्क को सपोर्ट करने के लिए हुई थी। इसका मकसद ग्रासरूट लेवल पर क्रिएटिव और इनोवेटिव लोगों को खोजकर उन्हें पहचान और सम्मान दिलाना है।

आइडियोलॉजी

सृष्टि का फोकस मुख्य तौर पर 8 चीजों पर है, एथिक्स, एंपैथी, इक्विटी, एफिशिएंसी, एक्सीलेंस, एनवॉयर्नमेंट, एजुकेशन और एंटरप्रेन्योरशिप।

एक्टिविटीज

देश के हर हिस्से से इनोवेशंस और ट्रेडिशनल साइंटिफिक वर्क को एक जगह लाकर डाक्युमेंटाइज करना। इनोवेटर्स को प्रॉपर रिसर्च और डेवलपमेंट मुहैया कराकर यूजर फ्रेंडली हर्बल प्रोडक्ट्स तैयार करवाना।

आस्तिक

संगठन इनोवेटिव प्रोफेशनल्स की आस्तिक नाम से एक कम्युनिटी तैयार कर रहा है।

सृष्टि सम्मान

इनोवेटर्स के लिए 1995 में सृष्टि सम्मान शुरू किया गया। इसमे ऐसे इनोवेटर्स को सम्मानित किया जाता है, जो डेली लाइफ को ईजी बनाने और नेचुरल सिक्योरिटी के लिए कुछ नई तकनीक खोजते हैं। ऐसे इनोवेटर्स के प्रोडक्ट को मार्केट में भी लॉन्च किया जाता है।

टेकपीडिया

यह टेक्नोलॉजी स्टूडेंट्स के लिए शुरू की गई स्कीम है। अभी तक इसके तहत 500 गांवों के 3.5 लाख स्टूडेंट्स 1.5 लाख प्रोजेक्ट्स पर काम पूरा कर चुके हैं।

इनोवेटर्स पर खोजी नजर

देश भर में हर एज ग्रुप के इतने इनोवेटर्स हैं कि अगर हर एक के प्रोजेक्ट पर ठीक से काम किया जाए, तो हालात ही बदल जाएं। बस जरूरत है, ऐसे लोगों को ढूंढ़कर उन्हें संसाधन देने की। हम यही काम कर रहे हैं।

प्रो. अनिल कुमार गुप्ता, प्रेसिडेंट, सृष्टि

सोलर एनर्जी के साथ बढ़ाया कदम

महाराष्ट्र के धुले जिले के प्रो. अजय चांडक प्रिंस यानी प्रमोटर्स ऐंड रिसर्चर्स ऐंड इनोवेटर्स इन न्यू ऐंड क्लीन एनर्जी नामक संगठन के जरिए एंटरप्रेन्योर्स को न्यू टेक्नोलॉजी की ट्रेनिंग देते हैं। साथ ही सोलर कुकर्स, हीटर्स आदि का निर्माण और उसे प्रमोट करने का काम करते हैं।

ऊर्जा जरूरत होगी पूरी

आज दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में स्टीम जेनरेटिंग सोलर कुकिंग सिस्टम की मदद से दो से तीन हजार लोगों का भोजन तैयार किया जाता है। इसलिए सोलर पावर यानी सोलर इलेक्ट्रिसिटी पर ध्यान देना जरूरी है। लेकिन इस समय यह बेहद महंगा है। इसका कैपिटल कॉस्ट भी अधिक आता है, जिससे कॉरपोरेट ही इसका खर्च उठा सकते हैं। ऐसे में आम लोग सोलर एनर्जी का फायदा उठा सकें, इसके लिए हम सरकार के सामने ऐसा बिजनेस प्रस्ताव रखने की योजना बना रहे हैं, जिसमें सोलर प्लांट्स की स्थापना में सीधे जनता की भागीदारी हो और वे उससे अपनी जरूरत की बिजली ले सकें। वहीं, सोलर कंसंट्रेटर्स को बढ़ावा देकर एलपीजी, डीजल, फर्नेस ऑयल की खपत कम की जा सकती है।

सोलर कुकर्स संग

देश के लाखों स्कूलों में सोलर कुकर्स के इस्तेमाल से बच्चों को भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है। प्रिंस ने सोलर कुकर्स के कई डिजाइंस डेवलप किए हैं। इनमें प्रिंस-40 पी सबसे प्रभावशाली है। इसमें एक घंटे में 50 बच्चों के लिए भोजन तैयार किया जा सकता है। कई प्रदेशों में मिड डे मील कार्यक्रम में इस कुकर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा प्रिंस-15 सोलर कुकर भी है जो घरेलू उपयोग में लाया जाता है।

साइंस में रिसर्च से संवारें करियर

भारत के मून मिशन, मार्स मिशन और टेलीस्कोप जैसे एक के बाद सफल कई साइंस प्रोजेक्ट्स ने स्टूडेंट्स के लिए साइंस के रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट फील्ड में करियर के अवसर बढ़ा दिए हैं..

साइंस की पढ़ाई 10वीं या 12वीं क्लास तक करने के बाद इंजीनियर या डॉक्टर का ही नहीं, साइंटिस्ट बनने का भी ब्राइट करियर है। अगर आप भी रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट में इंट्रेस्ट रखते हैं, तो इन ऑप्शंस पर ध्यान देकर साइंस में अच्छा करियर बना सकते हैं :

नैनो-टेक्नोलॉजी

ग्लोबल इनफॉर्मेशन इंक के रिसर्च के मुताबिक, 2018 तक नैनो टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के 3.3 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। नैस्कॉम के मुताबिक 2015 तक इसका कारोबार 180 अरब डॉलर से बढ़कर 890 अरब डॉलर हो जाएगा। ऐसे में इस फील्ड में दस लाख प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी। 12वींके बाद बीटेक और बीएससी के बाद नैनो टेक्नोलॉजी में एमएससी या एमटेक करके इसमें ब्राइट करियर बना सकते हैं।

एस्ट्रो-फिजिक्स

अगर आप स्टार्स और गैलेक्सीज में दिलचस्पी रखते हैं, तो 12वीं के बाद एस्ट्रो-फिजिक्स में एक्साइटिंग करियर बना सकते हैं। इसके लिए आप चाहें, तो पांच साल के रिसर्च ओरिएंटेड प्रोग्राम (एमएस इन फिजिकल साइंस), चार या तीन साल के बैचलर्स प्रोग्राम (बीएससी इन फिजिक्स) में एडमिशन ले सकते हैं। एस्ट्रोफिजिक्स में डॉक्टरेट करने के बाद स्टूडेंट्स इसरो जैसे रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन में साइंटिस्ट बन सकते हैं।

स्पेस साइंस

यह बहुत ब्रॉड फील्ड है। इसके तहत कॉस्मोलॉजी, स्टेलर साइंस, प्लैनेटरी साइंस, एस्ट्रोनॉमी आदि कई फील्ड्स आते हैं। इसमें तीन साल के बीएससी और चार साल के बीटेक कोर्स से लेकर पीएचडी तक के कोर्सेज खासतौर पर इसरो और आइआइएससी, बेंगलुरु में कराए जाते हैं।

एनवॉयर्नमेंटल साइंस

इस स्ट्रीम में एनवॉयर्नमेंट पर इंसानी गतिविधियों से होने वाले असर की स्टडी की जाती है। इसके तहत इकोलॉजी, डिजास्टर मैनेजमेंट, वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट, पॉल्यूशन कंट्रोल आदि सब्जेक्ट्स पढ़ाए जाते हैं। इन सभी सब्जेक्ट्स में एनजीओ और यूएनए के प्रोजेक्ट्स बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में जॉब की अच्छी संभावनाएं हैं।

वाटर साइंस

यह जल की सतह, तली और भूमिगत क्रियाओं से जुड़ा विज्ञान है। इसमें हाइड्रोमिटिरोलॉजी, हाइड्रोजियोलॉजी, ड्रेनेज बेसिन मैनेजमेंट, वाटर क्वालिटी मैनेजमेंट, हाइड्रोइंफार्मेटिक्स जैसे सब्जेक्ट्स की पढ़ाई करनी होती है। हिमस्खलन, बाढ़ आदि नेचुरल डिजास्टर की घटनाओं को देखते हुए इस फील्ड में रिसर्चर्स की डिमांड बढ़ रही है।

माइक्रो-बायोलॉजी

माइक्रो-बायोलॉजी की फील्ड में एंट्री के लिए बीएससी इन लाइफ साइंस या बीएससी इन माइक्रो-बायोलॉजी कोर्स कर सकते हैं। इसके बाद मास्टर डिग्री और पीएचडी भी कर सकते हैं। इनके अलावा पैरामेडिकल, मरीन बायोलॉजी, बिहैवियरल साइंस, फिशरीज साइंस आदि कई फील्ड्स हैं, जिनमें साइंस में इंट्रेस्ट रखने वाले स्टूडेंट्स अच्छा करियर बना सकते हैं।

साइंटिफिक अप्रोच

से करें शुरुआत

आज साइंस में बहुत से नए फील्ड्स और करियर ऑप्शंस आ गए हैं। इसलिए इस फील्ड में रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट की नई सोच के साथ अप्रोच करें। आप जितना इनोवेटिव होंगे, इस फील्ड में उतना ही ज्यादा सफल होंगे।

जितिन चावला, करियर काउंसलर

कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट :

दिनेश अग्रहरि, अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव


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