Move to Jagran APP

पॉवर्टी के खिलाफ मिशन रंग दे

By Edited By: Published: Wed, 05 Feb 2014 11:18 AM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2014 12:00 AM (IST)
पॉवर्टी के खिलाफ मिशन रंग दे

जब रामकृष्ण एन. के.और स्मिता रामकृष्ण ने वेब बेस्ड माइक्रोलेंडिंग प्लेटफॉर्म रंग दे 26 जनवरी, 2008 को शुरू किया था, तब वे नहीं जानते थे कि इसका सोसायटी पर गहरा असर होगा, लेकिन शुरुआत के बाद से रंग दे देश के 15 राज्यों के 25,200 से ज्यादा एंटरप्रेन्योर्स को करीब 17 करोड 63 लाख रुपये का लोन दे चुका है। इसमें लोन वापस करने का रेट करीब 98.5 फीसदी है। दुनिया भर के करीब 5200 लोग रंग दे के साथ सोशल इन्वेस्टर्स के तौर पर जुडे हैं। इस नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन का मकसद सोशल इन्वेस्टर्स के जरिए लोगों की मदद करना है। वहीदा रहमान और कई फिल्मी हस्तियां रंग दे की ब्रांड एंबेसडर्स हैं।

loksabha election banner

प्रो. युनूस से इंस्पिरेशन

रंग दे की को-फाउंडर स्मिता ने बताया कि उनकी टीम ने बांग्लादेश ग्रामीण बैंक का कॉन्सेप्ट लाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर मोहम्मद युनूस से प्रेरणा लेकर यह संगठन बनाया था। प्रो. युनूस सोशल बिजनेस मॉडल के जरिए दुनिया से गरीबी मिटाना चाहते हैं। इसके लिए वह क्रेडिट को बडा औजार मानते हैं। रंग दे का भी मानना है कि पीयर टु पीयर लेंडिंग मॉडल से माइक्रो-क्रेडिट की कीमत कम की जा सकती है। रंग दे एक सोशल इनिशिएटिव है, जिसका मकसद कम आय वर्ग वालों को कॉस्ट इफेक्टिव क्रेडिट उपलब्ध कराना है। इसकी टीम देश भर के रूरल एंटरप्रेन्योर्स और आर्थिक रूप से कमजोर स्टूडेंट्स की मदद करती है। इसके जरिए उन लोगों की मदद की जाती है, जिन्हें बिजनेस या पढाई के लिए लोन चाहिए। टीम ने इसके लिए रंग दे डॉट ओआरजी नाम से एक ऑनलाइन पोर्टल भी बनाया है।

माइक्रो-फाइनेंस का फंडा

स्मिता बताती हैं, हम माइक्रोक्रेडिट से अंडरप्रिविलेज्ड कम्युनिटी तक पहुंच कर देश की गरीबी मिटाना चाहते हैं। इसके लिए डेडिकेटेड फील्ड पार्टनर्स और सोशल इन्वेस्टर्स की पूरी कम्युनिटी है। टीम तीन स्तरों पर काम करती है, माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस और एनजीओ की मदद से उनकी पहचान की जाती है, जिन्हें कर्ज की जरूरत है। फिर इनकी प्रोफाइल वेबसाइट पर पोस्ट की जाती है। इससे कोई भी इन्वेस्टर इन्हें आसानी से देख सकता है और उनकी मदद कर सकता है। आखिर में पूरा फंड इकट्ठा होने के बाद उसे जरूरतमंदों को दे दिया जाता है।

समाज पर हुआ इंपैक्ट

रंग दे ने कई लोगों की किस्मत बदल दी। ऐसी ही एक मिसाल है झारखंड के बुंडु की रहने वाली सरस्वती देवी की। सरस्वती देवी गांव में किराने की दुकान खोलना चाहती थीं। इसके अलावा, वह खेती और इससे जुडे मार्केट के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहती थीं। उन्होंने ग्रामीण स्तर पर सर्विस सेंटर खोलने का फैसला किया, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में रंग दे की मदद से सरस्वती ने अपना सपना पूरा किया। इसी तरह पुणे के कोरेगांव पार्क में रहने वाली जैनाबी खुद का बिजनेस शुरू करना चाहती थीं। जैनाबी घर से ही काम करना चाहती थीं। इसके लिए फंड की जरूरत थी। उन्हें रंग दे से मदद मिली। इसी तरह महाराष्ट्र की शारदा काले ने रंग दे से पांच हजार रुपये का लोन लेकर अपनी फ्लोर मिल (आटा चक्की) शुरू की।

टीम रंग दे की वर्क प्रॉसेस

स्मिता बताती हैं, लोग जब लोन की रकम वापस करते हैं, तो हम उसमें से लोन प्रोसेसिंग चार्ज के तौर पर एक परसेंट काटते हैं। इसी से उनका ऑपरेशनल खर्च निकलता है। इसके अलावा, व‌र्ल्ड बैंक, आइसीआइसीआइ, फाउंडेशन फॉर इंक्लूसिव ग्रोथ और नाबार्ड से ग्रांट मिलती है। कई कॉरपोरेट हाउसेज से भी डोनेशन मिलता है। इसी तरह दुनिया भर में फैले सोशल इन्वेस्टर्स रंग दे के इनिशिएटिव को सफल बनाने में मदद करते हैं। आने वाले समय में ऑनलाइन स्पॉन्सरशिप से फंड इकट्ठा करने की प्लानिंग है। फिलहाल रंग दे की टीम में कुल 18 सदस्य हैं। इसके अलावा, वॉलंटियर्स की एक टीम है, जो सोसायटी में चेंज लाना चाहती है। रंग दे चैप्टर्स के ये मेंबर्स भारत के कई शहरों के अलावा यूके और यूएसए में भी मिशन को आगे बढा रहे हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उडीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में होप, रोशन विकास, करुणा ट्रस्ट, ग्राम उत्थान जैसे उसके हेल्पिंग फील्ड पार्टनर्स हैं।

इंटरैक्शन : अंशु सिंह


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.