India की इनोवेटिव लैब्स
इंसान के दिमाग में आइडियाज की कमी नहीं,बस जरूरत है उसे आधार देने की। पहले भी आइडियाज आते थे, लेकिन इन आइडियाज को बेस देने के लिए हमारे पास साधन नहींहुआ करते थे। मगर आज ऐसा नहीं है। आज हम अपने आइडियाज पर काम कर सकते हैं और इन्हें एक शक्ल देकर लाइफ को और आसान कर सकते हैं। इन आइडियाज को कामयाब बनाने में इनोवेटिव लैब्स स्टूडेंट्स के लिए आज वरदान साबित हो रही हैं। देशभर के ज्यादातर बड़े संस्थानों में बने ऐसे लैब्स इनोवेटर्स को भरपूर मौके दे रहे हैं, ताकि वे अपना प्रोजेक्ट पूरा कर सकें। इन लैब्स की मदद से आज इनोवेशंस पेटेंट में भी इजाफा हो रहा है। ऐसे लैब्स और इनोवेशंस की एक झलक..
2011 का वाकया है। आइआइटी खडगपुर के स्टूडेंट सिद्धार्थ कास्तगीर ने ब्रिटेन में होने वाले एक कॉम्पिटिशन के लिए फॉर्मूला मॉडल की रेसिंग कार बनाने का निर्णय किया। इसके लिए उन्हें आइआइटी से 9.5 लाख रुपये का फंड तो मिला, लेकिन कार पर काम करने के लिए उन्हें एक गोदामनुमा बेकार सी शेड मिली। हालांकि पिछले कुछ सालों में देश में काफी बदलाव आया है। अमेरिका की मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) के फैब लैब की तर्ज पर भारत में भी अब ऐसे लैब्स तैयार हो रहे हैं, जो न केवल स्टूडेंट्स के इनोवेटिव आइडियाज और उनकी क्रिएटिविटी को आगे ला रहे हैं, बल्कि फाइनेंशियली भी उनकी मदद कर रहे हैं। इसका फायदा यह हो रहा है कि सक्सेसफुल इनोवेशंस के चलते इन लैब्स के पास पेटेंट्स की संख्या तेजी से बढ रही है। आज आइआइटी खडगपुर, कानपुर, चेन्नई के अलावा तमाम इंस्टीट्यूट्स में ऐसे टिंकरिंग लैब बन रहे हैं, जहां वे अपने दिमाग में उमड रहे विचारों को मूर्त रूप देकर उसे रियल टाइम इंजीनियरिंग प्रोडक्ट में तब्दील कर सकते हैं। एमआइटी ने पहला फैब लैब 2001 में शुरू किया था। फिलहाल वह दुनिया के 34 देशों में ऐसे 134 लैब्स चला रहे हैं।
प्लेटफॉर्म फॉर इनोवेटर्स
जेएसएसएटीई साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर पार्क, नोएडा की सीनियर मैनेजर रितु दुबे का कहना है कि आज इनोवेटिव लैब्स स्टूडेंट्स के लिए?वरदान साबित हो रहे हैं। स्टूडेंट्स नए-नए आइडियाज लेकर आते हैं और इंस्टीट्यूट की मदद से अपने प्रोजेक्ट में सक्सेस पाते हैं। प्रोजेक्ट के दौरान इनोवेटिव लैब्स में स्टूडेंट्स को वे तमाम फैसेलिटीज दी जाती है, जिनकी उन्हें जरूरत होती है। सरकार की ओर से इनोवेटर्स को आर्थिक सहायता भी मुहैया कराई जाती है। आज इन इनोवेटिव लैब्स की मदद से हजारों स्टूडेंट्स को अपना करियर बनाने में मदद मिल रही है। साथ ही स्टूडेंट्स में भी एक कॉन्फिडेंस डेवलप हो रहा है। वे नए आडियाज पर काम कर रहे हैं।
हर आइडिया नायाब
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इनोवेटिव लैब मालवीय सेंटर फॉर इनोवेशन के कोऑर्डिनेटर पी.के.मिश्रा कहते हैं कि एक समय था कि साइंस बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स ही रिसर्च और इनोवेशन की फील्ड में आते थे, लेकिन आज ऐसा नहींहै। आर्ट्स बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स भी अपने इनोवेटिव आइडियाज लेकर आते हैं। अगर इंस्टीट्यूट को लगता है कि आइडिया में दम है, तो उन्हें सपोर्ट किया जाता है।क्लास 10 से लेकर हायर क्लास तक के स्टूडेंट्स से आइडियाज मंगाए जाते हैं। देशभर के स्टूडेंट्स प्रोजेक्ट भेजते हैं। सभी के प्रपोजल की स्टडी की जाती है। फिर फाइनल किए गए प्रोजेक्ट पर काम होता है। आज इस तरह के इनोवेटिव लैब्स से स्टूडेंट्स को काफी फायदा हो रहा है, साथ ही इनोवेशंस के नए आयाम भी विकसित हो रहे हैं।
चांस फॉर एवरीवन
आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर डॉ. बी.वी फणी कहते हैं, इनोवेटिव लैब्स की मदद से स्टूडेंट्स अपने सपने को हकीकत में तब्दील कर सकते हैं। ये लैब्स हर इनोवेटर को उनके प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए एक प्रॉपर प्लेटफॉर्म देते हैं। सिर्फ आइआइटी ही नहीं, बल्कि बाहरी स्टूडेंट्स को भी पूरा मौका दिया जाता है। टिंकरिंग लैब के अलावा इलेक्ट्रॉनिक, रोबो, एयरोमॉडलिंग जैसे क्लब्स या हॉबी ग्रुप्स भी हैं जहां स्टूडेंट्स को नए गैजेट्स के बारे में जानकारी देने के साथ ही उन्हें खुद की डिवाइस डेवलप करने में मदद की जाती है। इसके लिए समय-समय पर सेमिनार, लेक्चर्स, वर्कशॉप्स और प्रोजेक्ट्स होते रहते हैं। दरअसल, आज की तेजी से बदलती इस दुनिया में जहां हर दिन नई-नई टेक्नोलॉजी सामने आ रही है, उनसे खुद को अपडेट रखना कई बार मुश्किल हो जाता है। लेकिन अगर स्टूडेंट्स के बेसिक कॉन्सेप्ट्स स्ट्रॉन्ग होते हैं। उनकी इमैजिनेशन पॉवर को कोई रोक नहीं सकता है और वे नए इनोवेशंस कर, उन्हें एप्लीकेबल बना पाते हैं।
फुलटाइम करियर
इनोवेशन आज यूथ के लिए उत्साहजनक करियर बन चुका है। कंपनियां न सिर्फ उन्हें प्रोजेक्ट पूरा करने में सहायता कर रही हैं, बल्कि उनकी फाइनेंशियली हेल्प भी कर रही है। सैकडों की तादाद में इनोवेनशनल पेटेंट कराए जा रहे हैं। जेएसएस एकेडमी ऑफ टेक्निकल एजुकेशन, नोएडा के कपिल कुमार गर्ग कहते हैं कि बिना इंस्टीट्यूट की मदद के वह अपना रोबोटिक किट का प्रोजेक्ट पूरा नहींकर सकते थे। आज उनकी किट की मदद से स्टूडेंट्स मैथ्स और साइंस के कॉन्सेप्ट को आसानी से समझ पा रहे हैं।
आइडियाज का प्लेटफॉर्म टेक्नोलॉजी बेस्ड फील्ड्स में इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप को प्रमोट करने के मकसद से आइआइटी कानपुर में सिडबी इनोवेशन ऐंड इनक्यूबेशन सेंटर की स्थापना हुई थी। शुरू में सिडबी, यूपी गवर्नमेंट और आइआइटी ने मिलकर फंडिंग की थी, लेकिन आज यह सेल्फ सस्टेनेबल हो चुका है। यहां जॉब क्रिएशन से लेकर एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट पर जोर दिया जाता है। आइआइटी स्टूडेंट्स में एंटरप्रेन्योर स्किल्स डेवलप करने के अलावा बाहर के एंटरप्रेन्योर्स को भी अपने आइडियाज को इनोवेटिव मॉडल और फाइनेंशियल वायेबल इंटिटी में डेवलप करने का प्लेटफॉर्म मिलता है। उन्हें ह्यूमन रिसोर्स से लेकर तमाम तरह के टेक्निकल सपोर्ट दिए जाते हैं। इनक्यूबेटर्स को करीब दो साल के लिए मिनिमम रेंटल पर ऑफिस, रेजिडेंस, सेक्रेटेरियल फैसिलिटीज, कंप्यूटर, प्रिंटर जैसे रिसोर्सेज प्रोवाइड कराया जाता है। उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, लैब, लाइब्रेरी की सुविधा और मेंटर्स भी अवेलेबल कराए जाते हैं। जब एक इनक्यूबेटर अपना प्रोजेक्ट पूरा कर लेता है, तो उसे गवर्नमेंट और इंडस्ट्रीज की ओर से फाइनेंशियल सपोर्ट यानी सीड फंड दिलाया जाता है जो डीएसटी केअलावा इंडस्ट्रीज प्रोवाइड कराती हैं। अब तक 20 से ज्यादा इनक्यूबेटर्स यहां से ग्रेजुएट कर चुके हैं।
-डॉ.बी.वी.फणी, कोऑर्डिनेटर सिडबी इनो. ऐंड इनक्यूबेशन सेंटर
टिंकरिंग लैब्स फॉर इनोवेशन
क्रिएटिव माइंड्स के लिए टिंकरिंग लैब एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां उन्हें अपने थिंक स्पेस से बाहर निकलकर हैंड्स ऑन एक्सपीरियंस मिलता है और वे अपने आइडिया को रियल टाइम इंजीनियरिंग ऑब्जेक्ट्स यानी प्रोडक्ट में बदल पाते हैं। यहां मेंटर्स बताते हैं कि कैसे एक आइडिया जेनरेट होता है, कैसे कोई प्रोटोटाइप या एल्गोरिदम तैयार होता है और कैसे एक डिजाइन या प्रोडक्ट का पेटेंट कराया जाता है। आइआइटी कानपुर का टिंकरिंग लैब 2009 में शुरू हुआ, जो आज अच्छा-खासा डेवलप हो चुका है और स्टूडेंट्स इस टेक्नोलॉजिकल स्पेस का काफी फायदा भी उठा रहे हैं।
डेवलपिंग आइडियाज
आइआइटी कानपुर में फाइनेंस, इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप के एसोसिएट प्रोफेसर और सिडबी इनोवेशन ऐंड इनक्यूबेशन सेंटर के कोऑॅर्डिनेटर डॉ.बी.वी.फणि ने बताया कि जब एक स्टूडेंटस आइआइटी में एडमिशन लेता है, तो उनके लिए टेक्नोलॉजी एक्सेस करना आसान नहीं होता है। मशींस से फेमिलियर न होने और लैब्स की फिक्स्ड टाइमिंग्स होने से उन्हें अपने इनोवेटिव आइडियाज पर वर्क करने का मौका नहीं मिलता। इसी सबको देखते हुए उन्होंने एक ऐसा लैब बनाने का प्रस्ताव डिपार्टमेंट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के पास भेजा, जहां हर इयर के स्टूडेंट अपने इनोवेटिव आइडियाज पर बिना रोक-टोक के काम कर सकें। इसी के बाद कैंपस में टिंकरिंग लैब स्थापित किया गया। कोशिश की जा रही है कि आने वाले सालों में टिंकरिंग लैब चौबीसो घंटे ओपन रहे और स्टूडेंट्स जब चाहें, यहां आकर अपने आइडियाज पर काम कर सकें।
प्रोजेक्ट्स की फंडिंग
आइआइटी कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के थर्ड इयर के स्टूडेंट और टिंकरिंग लैब के कोऑर्डिनेटर साकेत कनोडिया ने बताया कि इंस्टीट्यूट के 1986 बैच ने दिसंबर 2010 में हुए सिल्वर जुबिली रीयूनियन के दौरान लैब बनाने के लिए 70 लाख रुपये का एक कॉरपस क्रिएट किया था। इसके बाद इंस्टीट्यूट ने भी इतना ही मैचिंग ग्रांट दिया। साथ ही सिडबी इनोवेशन ऐंड इनक्यूबेशन सेंटर, 4-आइ लैब और गुजरात के टीए 201 लैब और डीएसटी की फंडिंग से यह लैब शुरू हो सका। इस साल यानी जनवरी 2013 में 1976 के बैच ने भी कॉरपस में 50 लाख रुपये का योगदान दिया है। टिंकरिंग लैब में दो फुलटाइम लैब असिस्टेंट रहते हैं जो मशींस को हैंडल करने से लेकर, प्रोजेक्ट में उनकी मदद करते हैं। इसके अलावा स्टूडेंट्स स्पॉन्सरशिप, सिडबी फंडिंग, स्टूडेंट प्रोजेक्ट फंडिंग से बेसिक रॉ मैटेरियल ला सकते हैं।
मेकर्स ऑफ यूएवी- आरुष एक्स 1
अनमैन्ड एरिएल व्हीकल यानी मानवरहित यान का अब तक ग्रामीण इलाकों या जंगलों में सर्वेलेंस के लिए इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी के यूएएस की टेक्निकल टीम एक ऐसे यूएवी प्रोटोटाइप पर काम कर रही है, जिसे अर्बन एरियाज में भी यूज किया जा सकेगा। टीम ने आरुष एक्स-1 नाम का प्रोटोटाइप डिजाइन किया है जिसे अप्रूवल मिल गया है। इसका ट्रायल भी सक्सेसफुल रहा है। इसके बाद अब इंडियन मार्केट और इंडस्ट्री की डिमांड को देखते हुए नेक्स्ट जेनरेशन के प्रोटोटाइप पर काम शुरू हो गया है।
फंडिंग ऐंड मेंटरशिप
ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के थर्ड इयर के स्टूडेंट और आरुष एक्स 1 प्रोजेक्ट के लीडर लक्ष्य कहते हैं, 2009 में अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन कंपनी की मदद से यूएवी प्रोटोटाइप डेवलपमेंट का काम शुरू हुआ था। इसमें गवर्नमेंट, एकेडमिक और इंडस्ट्री तीनों साथ मिलकर काम कर रहे हैं। लॉकहीड कंपनी ने पहले फेज के लिए साढे तीन लाख यूएस डॉलर और दूसरे फेज के लिए 2 लाख यूएस डॉलर के फंड के अलावा मेंटरशिप प्रोवाइड कराई है जबकि डीआरडीओ और कंपनी दोनों समय-समय पर इसकी समीक्षा करते हैं। लक्ष्य ने बताया कि 2010 में यूएवी डिजाइनिंग टीम ने अपना कॉन्सेप्ट डिजाइन कंपनी को प्रेजेंट किया था। इसके बाद प्रोटोटाइप के प्रिलिमिनरी डिजाइन, डिटेल्ड डिजाइन, फैब्रिकेशन और टेस्टिंग का काम पूरा किया गया। 2011 में डीआरडीओ ने इस प्रिलिमिनरी डिजाइन की समीक्षा की और 2012 में आरुष एक्स 1 का फाइनल टेस्ट फ्लाइट करनाल के आर्मी एयरफील्ड में सक्सेसफुल रहा।
इफेक्टिव यूएवी प्रोटोटाइप
लक्ष्य के मुताबिक यूएवी लगातार छह घंटे उडान भर सकता है। इसमें 50 सीसी का गैसोलीन इंजन लगा है। वजन 40 किलो है और विंगस्पैन 12 फीट। इसमें एक कैमरा लगा है जो लाइव फीड भेज सकता है। सबसे खास बात यह कि इसके सारे इक्विपमेंट्स इंडिया मेड हैं। इसके अलावा बॉर्डर पेट्रोलिंग, पाइपलाइन सर्वेलेंस, डिजास्टर मैनेजमेंट, ट्रैफिक मैनेजमेंट, मेट्रोलॉजिकल ऑपरेशंस, माइनिंग सर्वेलेंस और सिविल लॉ इनफोर्समेंट में इसका इफेक्टिव इस्तेमाल हो सकता है। डीटीयू के इस यूएवी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की एक खासियत रही है कि सीनियर स्टूडेंट्स अपने जूनियर्स को नॉलेज ट्रांसफर करते हैं और प्रोजेक्ट बिना रुके चलता रहता है। लक्ष्य ने भी फर्स्ट इयर में इस प्रोजेक्ट को ज्वाइन किया था। वे बताते हैं, हर साल अलग-अलग ब्रांचेज से टीम यूएवी के लिए मेरिटोरियस स्टूडेंट्स को टेस्ट के जरिए सेलेक्ट किया जाता है।
इंडस्ट्री से स्पॉन्सरशिप
स्टूडेंट्स के लिए लर्निंग एनवॉयरनमेंट क्रिएट करने और उन्हें इनोवेशन के लिए स्पेस देने के मकसद से 2010 में दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी के नॉलेज पार्क में फिक्की और डीटीयू ने मिलकर टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित किया। यहां स्टूडेंट्स को उनके इनोवेशन को रिएलिटी में बदलने का एक प्लेटफॉर्म दिया जाता है।
यूनिवर्सिटी के अलावा अल्यूमिनाइ फंड्स के जरिए फाइनेंशियल सपोर्ट दी जाती है। कंपनीज भी प्रोजेक्ट्स स्पॉन्सर करती हैं, जिससे स्टूडेंट्स में इनोवेशन के साथ-साथ एंटरप्रेन्योर स्किल्स डेवलप होती हैं और वे कॉमर्शियल वायबिलिटी को ध्यान में रखकर नए प्रोडक्ट्स डेवलप करते हैं। यहां एक्सपर्ट्स के साथ-साथ सेक्रेटेरियल सपोर्ट भी दिया जाता है। हालांकि यहां के स्टूडेंट्स ने इस सेंटर के पहले भी इनोवेटिव आइडियाज पर काम करते हुए फॉर्मूला एसएइ कार, एसएइ मिनी बाजा, हाइब्रिड और सोलर कार के प्रोटोटाइप्स डिजाइन किए थे। 2005 में यहां की टीम द्वारा डिजाइन की गई हाइब्रिड कार को अमेरिका के ग्रीन कार कॉम्पिटिशन के स्टूडेंट कैटेगरी में पहला पोजिशन मिला था। इसी तरह सुपरमाइलेज व्हीकल को वर्ल्ड कॉम्पिटिशन में बेस्ट डिजाइन अवॉर्ड दिया गया था। इस तरह के कई इनोवेटिव डिजाइंस को इंटरनेशनल कॉम्पिटिशंस में सराहा गया है।
- प्रो.पी.बी.शर्मा
वाइस चांसलर,दिल्ली टेक्निकल यूनि. कॉन्सेप्ट हेल्प इन लर्रि्नग फॉर्मूला
रोबोटिक किट से एजुकेशन में मदद
जेएसएस एकेडमी ऑफ टेक्निकल एजुकेशन, नोएडा से 2008 में इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की डिग्री ली। करीब साढे तीन साल कंपनी में जॉब भी की, उसके बाद एक ऐसा किट डिजाइन करने का फैसला किया, जिसकी मदद से स्टूडेंट्स साइंस के प्रिंसिपल्स आसानी से याद कर सकें। कुछ साल की कडी मेहनत के बाद कपिल कुमार गर्ग को अपना प्रोजेक्ट कंप्लीट करने में कामयाबी मिल गई। कपिल ने क्लास चौथी से 12वीं और इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के लिए एक ऐसी किट डिजाइन की, जिसकी मदद से वे आसानी से साइंस और मैथ के कॉन्सेप्ट को समझ सकते हैं।
स्कूल स्टूडेंट्स के लिए रोबोटिक किट
रोबोटिक किट के डिजाइनर कपिल कुमार कहते हैं कि स्कूल में साइंस और मैथ्स को अलग-अलग पढाया जाता है, जबकि ये दोनों सब्जेक्ट एक दूसरे से को-रिलेट करते हैं। सब्जेक्ट अलग पढाए जाने के कारण स्टूडेंट्स इसे रिलेट नहीं कर पाते, इसलिए उनका कॉन्सेप्ट क्लियर नहीं हो पाता, जिससे उन्हें हायर क्लास में दिक्कत आती है। उन्होंने चौथी से 12वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए मैकेनजो नाम से एक रोबोटिक किट डिजाइन की है। इस किट में स्टूडेंट्स को इंटीग्रेशन ऐंड एप्लीकेशन ऑफ साइंस ऐंड मैथ्स के बारे में पढाया जाता है। स्कूल लेवल पर कपिल ने करीब 120 किट डिजाइन की हैं।
इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के लिए किट
स्कूल लेवल पर किट तैयार करने के बाद कपिल ने इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के लिए सेल्फ लर्निंग नाम से एक किट तैयार की। सेल्फ लर्निंग किट मैकेनजो का एडवांस वर्जन है। इस किट में स्टूडेंट्स को किट की डिजाइनिंग, गेयर रेशियो, सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग, कोडिंग, सेंसर की डिजाइनिंग, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के चयन आदि के बारे में पढाया जाता है।
किट की कॉस्ट
स्कूल लेवल पर किट की कॉस्ट पांच हजार से 12 हजार रुपये है। क्लास चौथी से पांचवीं तक की किट की कॉस्ट सात हजार रुपये, क्लास चौथी से आठवीं तक के स्टूडेंट्स के लिए 12 हजार रुपये और क्लास नौवीं से 12वीं तक स्टडेंट्स के लिए कॉस्ट 5 हजार रुपये रखी गई? है। अभी तक फॉरेन से आने वाली किट की कॉस्ट तकरीबन 30 हजार रुपये होती है। कपिल के रोबोटिक किट की डिमांड स्कूल्स से लेकर इंजीनियंरिग इंस्टीट्यूट तक में की जा रही है। आईआईटी मुंबई और आइएसएम धनबाद में किट की मदद से स्टूडेंट्स को पढाया जा रहा है। दिल्ली-एनसीआर के 40 पब्लिक स्कूल्स में भी किट की मदद ली जा रही है। रोबोटिक लैब सेट करने से पहले वह स्कूल और इंस्टीट्यूट के टीचर्स को ट्रेनिंग देते हैं।
खुद का सेटअप
किट डिजाइन करने के बाद कपिल और चैतन्य साहू ने साथ मिलकर thinnkware.com नाम से कंपनी शुरू की। कपिल रोबोटिक किट की डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग पार्ट को देखते हैं, जबकि चैतन्य मार्केटिंग और सेल्स का काम देखते हैं।
ओपन फॉर ऑल
जेएसएसएटीई साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर पार्क नोएडा की सीनियर मैनेजर रितु दुबे ने बताया कि सिर्फ इनहाउस स्टूडेंट्स को ही नहीं, बल्कि आउट साइडर को भी पूरा मौका दिया जाता है। इंस्टीट्यूट इनोवेटर्स के प्रोजेक्ट की स्टडी करता है। अगर ऐसा लगता है कि प्रोजेक्ट पर काम करना चाहिए, तो उन्हें इंस्टीट्यूट में ही ऑफिस, कंप्यूटर, फर्नीचर, स्टाफ और अन्य जरूरी सुविधाएं दी जाती हैं। नेशनल साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी एंटर प्रेन्योरशिप डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा प्रोजेक्ट के लिए 20 लाख रुपये तक की मदद भी इसमें शामिल है। स्टूडेंट्स के सामने तीन साल में प्रोडक्ट तैयार कर मार्केट में लाने का चैलेंज होता है।
कबाड से जुगाड
लेट्स आइडिया कम फ्रॉम एवरीव्हेयर इनोवेशन हर किसी के मन में होता है, चाहे वह छोटा-सा बच्चा हो या फिर कोई युवा, इसलिए इनोवेटिव आइडियाज कहींसे भी आएं, उनका स्वागत करता है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का मालवीय सेंटर फॉर इनोवेशन।
सेंटर के को-ऑर्डिनेटर पी.के .मिश्रा बताते हैं कि सेंटर दसवीं क्लास से लेकर रिसर्च तक के स्टूडेंट्स से इनोवेटिव आइडियाज इनवाइट करता है। इन आइडियाज को प्रोडक्ट में चेंज करते हैं। बिजनेस इनक्यूबेशन प्रोग्राम के तहत सेंटर के स्टूडेंट्स और एलुमिनी प्रोडक्ट को मार्केट तक ले जाते हैं। इसमें दो एजेंसियां डीएसआइआर और टी-फैक खासतौर पर इस सेंटर की मदद करती हैं। डीएसआईआर आइडियाज को प्रोडक्ट में कनवर्ट करने में मदद करता है। टी-फैक प्रोडक्ट के तैयार हो जाने पर उसका पेटेंट हासिल करने में मदद करता है।
इनोवेशन सेंटर फॉर ऑल
मालवीय सेंटर के मेंटर पी.के .मिश्रा ने बताया कि उनके सेंटर से एक कंपनी निकली सिग्रिड। इस कंपनी ने आई-नेक्स्ट अखबार और मालवीय सेंटर के साथ मिलकर एक ज्वाइंट वेंचर बनाया। यह देश भर के स्कूलों में इनोवेशन कॉन्टेस्ट कराती है। इसके अलावा केमिकल इंजीनियरिंग में तीन स्टूडेंट्स ने मिलकर एक कंपनी बनाई-ब्रिजडॉट लिमिटेड।?खास बात तो यह है कि इस सेंटर में दसवींक्लास से लेकर रिसर्च करने वाले स्टूडेंट तक आते हैं। इंजीनियरिंग ही नहींआर्ट्स बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स भी यहां आकर इनोवेटिव आइडियाज पर काम करते हैं। ऐसी ही एक कंपनी है कृतिका पॉलीकॉर्प लिमिटेड। इसने वैक्स से बेहतरीन कलाकृतियां तैयार की हैं।
भूसे की राख से सिलिका
मालवीय सेंटर में अपने आइडियाज को डेवलप करके केमिकल इंजीनियरिंग के तीन स्टूडेंट्स अभिषेक पोद्दार, तन्मय पांड्या और निखार जैन ने कबाड से जुगाड कर दिखाया। क्या आप सोच सकते हैं कि चावल के भूसे की राख का कुछ इस्तेमाल हो सकता है? शायद नहीं, लेकिन इन स्टूडेंट्स ने ऐसा कर दिखाया। हस्क कंपनी के लिए इन्होंने चावल की भूसी की राख से सिलिका डेवलप की, जिसका इस्तेमाल सिलिकॉन चिप से लेकर बडे-बडे सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में होता है।?2012-13 में इनकी कंपनी का टर्नओवर 9.5 लाख रुपये था। अब एक के बाद एक इन्हें प्रोजेक्ट मिलते जा रहे हैं।
न्यू टेक्नॉलॉजी ऑफ पॉलीमर
ब्रिजडॉट्स टेक सर्विसेज टेक्नॉलॉजिकल रिसर्च ऐंड कंसल्टेंसी कंपनी है और पॉलीमर, एडवांस मैटीरियल्स और वेस्ट मैनेजमेंट की फील्ड में नई-नई टेक्नोलॉजी डेवलप करती है। तन्मय पांड्या बताते हैं, नाम के मुताबिक ही कंपनी एकेडमिक और इंडस्ट्री के बीच ब्रिज का काम करती है।
फ्रीडम ऑफ इनोवेशन
निखार जैन बताते हैं, तन्मय और उनके दूसरे साथी जब मालवीय सेंटर फॉर इनोवेशन पहुंचे थे, तो उन्हें बहुत कुछ नहींपता था, बस दिल में जज्बा था कुछ करने का। सेंटर में स्टडी के दौरान स्टूडेंट्स को कुछ भी इनोवेटिव करने की पूरी आजादी होती है। अपनी सोच को साकार के करने के लिए उनके सामने थी सारी सुविधाओं से लैस इनोवेटिव लैब। बस फिर क्या था, केमिकल इंजीनियरिंग फील्ड में उन्होंने शुरू कर दिया कबाड से जुगाड करना।
ईजी टेक्सटाइल टेस्टिंग
आमतौर पर एक फैब्रिक सॉफ्ट या रफ, इसका पता हम उसे टच करके (सब्जेक्टिवली) लगाते हैं। लेकिन क्या आप (ऑब्जेक्टिवली) बता सकते हैं कि दो फैब्रिक में कौन सी ज्यादा सॉफ्ट है? थोडा मुश्किल होगा, हालांकि टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसा करना संभव है। हां, पहले इसमें थोडा ज्यादा वक्त लगता था, लेकिन फैब्रिक फील टेस्टर से मिनटों में फैब्रिक की क्वालिटी का पता लगाया जा सकता है। मतलब यह कि टेस्टिंग की प्रक्रिया पहले जैसी कॉम्प्लेक्स नहींरही, बल्कि कोई भी आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकता है। ये फैब्रिक फील टेस्टर बनाया है आइआइटी दिल्ली के टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. अपूर्ब दास ने। इस टेस्टर का पेटेंट भी कराया जा चुका है, जिसके बाद अहमदाबाद स्थित टेक्सटाइल, डाइ ऐंड केमिकल लैबोरेटरी, टेक्स लैब को इसके प्रोडक्शन का जिम्मा दिया गया। अब तक दो दर्जन फैब्रिक टेस्टर बन चुके हैं और उन्हें एक्सपोर्ट भी किया जा रहा है।
कम कीमत, ज्यादा असरदार
डॉ. दास ने बताया कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री में फैब्रिक की क्वॉलिटी का इवैलुएशन पहले भी होता था। पहले यह काम क्वॉॅबाटा इवैलुएशन सिस्टम के जरिए होता था। लेकिन यह मशीन इतनी महंगी ( करीब डेढ करोड रुपये) थी और इसे टेक्निकली यूज करना इतना मुश्किल था कि इंडस्ट्री में इसका कम ही इस्तेमाल हो पाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। फैब्रिक फील टेस्टर की कीमत (महज डेढ लाख रुपये) कम है। इससे टेक्सटाइल फैब्रिक्स की क्वॉलिटी, उसकी सॉफ्टनेस को कम समय में इवैलुएट किया जा सकता है। एप्लीकेशन भी ज्यादा आसान है। अलग-अलग फैब्रिक के लिए अलग डायमीटर वाले नॉजेल होते हैं। इसी तरह नॉजेल का मैटीरियल भी अलग होता है। ये मेटल और पॉलिमर दोनों का हो सकता है।
टेक्सटाइल इंडस्ट्री को फायदा
जहां तक फैब्रिक फील टेस्टर के यूज की बात है तो वीविंग और प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स, बाइंग और टेस्ट हाउसेज में इसका अच्छा-खासा इस्तेमाल होता है। केमिकल ट्रीटमेंट के बाद फैब्रिक में आने वाले चेंज का पता लगाया जा सकता है। एकेडेमिक और रिसर्च इंस्टीट्यूट में नए फैब्रिक के डेवलपमेंट में भी इसे यूज किया जा सकता है। इंडियन टेक्सटाइल फर्म्स को ग्लोबल लेवल पर कंपनीज के साथ काम करने में पहले से ज्यादा आसानी होगी। वे सिर्फ ई-मेल के जरिए फैब्रिक की पूरी जानकारी देश-विदेश के अपने क्लाइंट्स तकपहुंचा सकते हैं और उनका फीडबैक ले सकते हैं। जाहिर है, टेक्सटाइल इंडस्ट्री को इससे काफी फायदा हो सकता है।
एक्सप्लोर द आइडिया
आइआइटी मद्रास का सेंटर फॉर इनोवेशन (सीएफआइ) उन स्टूडेंट्स को एक प्लेटफॉर्म दे रहा है जिनकेपास आइडिया है और प्रोजेक्ट पर काम करने को लेकर कमिटमेंट। सिर्फ स्टूडेंट्स ही नहीं, वे तमाम लोग जो कुछ क्रिएट कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अपने एक्सपेरिमेंट या इनोवेशन के लिए सही जगह नहीं मिल पा रही है, वे भी इस सेंटर का फायदा उठा सकते हैं। सीएफआइ में आइबॉट, कंप्यूटर विजन जैसे कुछ क्लब्स भी हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि स्टूडेंट्स को उनके इंट्रेस्ट के फील्ड में इनोवेशन के लिए एनकरेज किया जा सके। इस समय यहां कम लागत वाले इलेक्ट्रिकल व्हील चेयर प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की कोशिशें भी चल रही हैं। नए इक्विपमेंट्स खरीदे जा रहे हैं।
लर्न ऐंड क्रिएट
आइआइटी मद्रास में इंडस्ट्रियल कंसल्टेंसी ऐंड स्पॉन्सर्ड रिसर्च के डीन और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर कृष्णन बालासुब्रह्मण्यम ने बताया कि सीएफआइ इंजीनियरिंग के फील्ड में स्टूडेंट्स के क्रिएटिव पोटेंशियल को बाहर लाना चाहता है। स्टूडेंट्स की दिलचस्पी इंजीनियरिंग में बनी रहे, इसकी कोशिश भी की जाती हैं। साथ ही उन्हें अपने आइडियाज को एक्सप्लोर करने के लिए एक प्लेटफॉर्म दिया जाता है, जहां वे सीखने के साथ-साथ कुछ क्रिएट भी करते हैं।
डेवलप एंटरप्रेन्योरशिप
प्रो. कृष्णन ने बताया कि स्टूडेंट्स में एंटरप्रेन्योर स्किल्स के विकास पर भी जोर दिया जाता है। इसमें इंस्टीट्यूट स्थित सेंटर फॉर सोशल इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप इंपॉर्र्टेट रोल निभा रहा है। सोशल इनोवेशन और एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम्स के जरिए स्टूडेंट्स को सोशल एंटरप्राइज बनाने के स्किल्स सिखाए जाते हैं। बाकायदा एक टीम की मदद से बिजनेस कॉन्सेप्ट्स डेवलप किए जाते हैं। प्रोफेसर ने बताया कि बीते सालों में इन्हीं स्टूडेंट्स ने इंस्टीट्यूट से निकलने के बाद तीन-चार कंपनीज बनाई हैं और कई लोगों को रोजगार दिया है।
सपोर्ट फ्रॉम एल्युमिनाइज
आइआइटी मद्रास के डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड मैकेनिक्स के प्रोफेसर महेश ने बताया कि सेंटर फॉर इनोवेशन को सबसे ज्यादा फाइनेंशियल सपोर्ट एल्युमिनाइ फंड्स से मिलता है। इसके अलावा इंडस्ट्रीज भी प्रोजेक्ट्स को स्पॉन्सरशिप करती हैं। स्टूडेंट्स इंडस्ट्रियल क्लाइंट्स के मुताबिक प्रोजेक्ट्स सेलेक्ट करते हैं। इनकी फंडिंग इंडस्ट्री से ही होती है। प्रो.महेश के अनुसार, आइआइटी रोपड और रुडकी में भी इस मॉडल को इंप्लीमेंट करने के लिए स्टडीज की जा रही हैं। वैसे, सीएफआइ खुद भी ऐसे प्रोजेक्ट्स की तलाश करता रहता है, जिसके जरिए सोसायटी को कुछ बेनिफिट मिल सके।
मनी सेवर कार
भला कौन नहीं चाहता कि उसके पास भी एक कार हो और वह उसमें घूमें, लेकिन कार की कीमत एवं इसके ईधन में लगातार हो रही बढोत्तरी के चलते हममें से अधिकतर लोग अपनी इस इच्छा को मार देते हैं। पैसा हमारे सपनों पर भारी पड जाता है, लेकिन शायद अब ज्यादा दिन तक स्थिति ऐसी नहीं रहेगी। नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी दिल्ली टेक्निकल यूनिवर्सिटी में 18 स्टूडेंट्स की एक टीम, इंजीनियरिंग की स्टूडेंट इशिता सहगल के नेतृत्व और फैकल्टी एडवाइजर दीप्ति जायसवाल के मार्गदर्शन में सस्ती और हाई माइलेज देने वाली फ्यूचर कार पर काम कर रही है, जिसके शुरुआती नतीजे सराहनीय आए हैं।
बांस से होगा विकास
इस कार का स्ट्रक्चर बहुत हद तक बांस आधारित होगा। बाकी पार्ट्स में भी जहां संभव होगा, ईको फ्रेंडली चीजों का ही यूज किया जाएगा। इस तरह की चीजों के यूज से इसके निर्माण में आने वाली लागत तो कम हो ही जाएगी, साथ ही यह बाजार में मौजूद दूसरी कारों से काफी हल्की और सेफ भी हो जाएगी।
बैकअप भी ज्यादा हो
इस इनोवेशन की ग्रुप लीडर इशिता सहगल मानती हैं कि उनकी इस हल्की और हाई माइलेज वाली कार इंजन के मामले में कहीं से कमजोर नहीं होगी। टीम यह कोशिश कर रही है कि इंजन बाकी कारों की तरह ही अपनी परफॉर्मेस दे। हम जानते हैं, लोगों के दिलों में उनकी यह थीम तभी जगह बना पाएगी, जब कार के पॉवर से भी वे संतुष्ट होंगे। हमारी कोशिश है कि कार का इंजन भी पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली हो और कम खपत में अधिक माइलेज पाने का लोगों का सपना पूरा कर सके।
डेवलपिंग स्टेज
इस इनोवेशन में स्टूडेंट्स की हेल्प कर रही फैकल्टी मेंबर दीप्ति जायसवाल कहती हैं कि आज दुनिया में जितने भी इनोवेशन हो रहे हैं, अधिकतर पर्यावरण को ध्यान में रख कर ही किए जा रहे हैं। हमारे यहां के स्टूडेंट भी कुछ इसी प्रयास के साथ इस फ्यूचर कार के कॉन्सेप्ट पर वर्क कर रहे है। प्रारंभिक रिजल्ट को देखते हुए हमें विश्वास है कि वे अपने इस सपने में कामयाब हो जाएंगे। इस कार का मॉडल लोगों के लिए कॉलेज में रखा गया है और इस इनोवेशन को और भी ज्यादा डेवलप करने की कोशिश की जा रही है। हम स्टूडेंट्स के इस इनोवेशन को साल 2014 में होने वाले आइ.इ.सेल ईको मैराथन में लोगों के सामने रखी जाएगी जो कि फिलिपींस की राजधानी मनीला में आयोजित होगी। अगर यह इनोवेशन लोगों और ऑटोमोबाइल कंपनियों को पसंद आएगा, तो आने वाले सालों में इस सेक्टर में काफी चेंज आपको देखने को मिलेंगे।
मेंटर्स और भी हैं
इंडिया में टेक्नोलॉजी बेस्ड इनक्यूबेशन और इनोवेशन सेंटर के अलावा सोशल इनक्यूबेशन सेंटर्स का रोल भी बढ रहा है। खासकर तब, जब लोग रिस्क लेकर इनोवेटिव स्टार्टअप्स शुरू कर रहे हैं और मार्केट के रूल्स बदल रहे हैं, तो आइआइएम जैसे प्रीमियर इंस्टीट्यूट्स भी बिजनेस इनक्यूबेशन सेंटर्स के जरिए स्टूडेंट्स में सोशल एंटरप्रेन्योरशिप स्किल्स डेवलप करने की कोशिश में जुट गए हैं। डालते हैं एक नजर उन इंस्टीट्यूट्स पर जहां क्रिएटिव बिजनेस सेटअप करने के गुर सिखाए जा रहे हैं :
आइआइएम, अहमदाबाद
यहां का सेंटर फॉर इनोवेशन, इनक्यूबेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप (सीआइआइइ) साल 2007 से कंपनीज को इनक्यूबेट कर रहा है यानी स्टूडेंट्स और दूसरे प्रोफेशनल्स को कंपनीज स्टैब्लिश करने में हर तरह की मदद कर रहा है। सीआइआइइ ने मोबाइल ऐंड इंटरनेट टेक्नोलॉजी, क्लीन टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और सोशल सेक्टर स्टार्टअप शुरू करने में इंपॉर्टेट रोल निभाया है। सेंटर क्लीनिक से लेकर आर्ट एग्जीबिशन, ग्लोबल वार्रि्मग से लेकर सोशल एंटरप्राइज फंड को मेंटर करने में लगा है।
फैकल्टी मैनेजमेंट स्टडीज, डीयू
दिल्ली यूनिवर्सिटी के फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज का एंटरप्रेन्योरशिप यानी ई-सेल, उन तमाम लोगों के सपने पूरे करने की कोशिश करता है जिनके पास नया सोशल स्टार्टअप शुरू करने का आइडिया है, लेकिन गाइडेंस न मिल पाने के कारण वे अपने ड्रीम को बीच में ही छोड देते हैं। ऐसे लोगों के लिए यहां स्पेशल मेंटरशिप प्रोग्राम्स और सेमिनार्स ऑर्गेनाइज किए जाते हैं।
टी-टीबीआइ, केरल
केरल का टेक्नोपार्क टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर (टीटीबीआइ) भी केरल सरकार के साथ मिलकर साल 2006 से अब तक सैकडों स्टूडेंट्स और प्रोफेशनल्स को नया वेंचर स्टार्ट करने में मदद कर चुका है। यहां एक्सपर्ट्स गाइडेंस के अलावा फाइनेंशियल मदद भी करते हैं।
कॉन्सेप्ट : अंशु सिंह, मो.रजा, शरद अग्निहोत्री और मिथिलेश श्रीवास्तव