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धरोहरों में सोना

सोने जैसी बेशकीमती हजारों साल पुरानी तमाम प्राचीन सभ्यताएं हमारे देश में बिखरी पड़ी हैं, लेकिन बदकिस्मती से हम उन्हें ईट-पत्थर समझ कर उनमें हीरे-मोती या सोने-चांदी वाला खजाना ढूंढते हैं। देखा जाए तो विरासत में मिली ये सभ्यताएं हमारे लिए किसी खजाने से कम नहीं हैं। इसके लिए जौहरी का काम करता है एएसआई, जिसके लिए यह किसी सोने की खान से कम नहीं होते। ऐतिहासिक धरोहरों को बिना कोई नुकसान पहुंचाए सामने लाना एक बहुत बड़ी चुनौती होता है। ऐसे में आर्कियोलॉजिस्ट के लिए स्पेशलाइजेशन के अलावा पेशेंस और इच्छा शक्ति की भी जरूरत होती है। ऐसे किसी भी उत्खनन में दो महीने से लेकर दो साल तक का लंबा वक्त भी लग सकता है। तो आइए सोने-चांदी के खजाने का सपना देखने की बजाय इस फील्ड में करियर बना कर असली खजाने की खोज करके देश को फिर से सोने की चिडि़या बनाने में अपना योगदान दें..

By Edited By: Published: Wed, 06 Nov 2013 10:53 AM (IST)Updated: Wed, 06 Nov 2013 12:00 AM (IST)
धरोहरों में सोना

एक्सकेवेशन इज चैलेंज

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खुदाई के दौरान एक आर्कियोलॉजिस्ट अज्ञात रहस्यों की ओर बढता है। स्टेप-बाय-स्टेप खुदाई को फॉलो किया जाता है। आधुनिक तकनीक ने ऑर्कियोलॉजी के काम को काफी आसान बना दिया है..

प्रोटेक्ट ऑवर मॉन्यूमेंट्स

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इस समय पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। उन्नाव के डौंडियाखेडा में तथाकथित हजार टन सोना दबा होने की उम्मीद के बाद बहुत से लोग पहली बार आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के नाम से रूबरू हुए, लेकिन आज भी लाखों लोग आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के कामकाज से वाकिफ नहीं हैं। ज्यादातर यही समझते हैं कि जमीन में दबे कीमती सामान को खोजने का काम आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट करता है, जबकि यह पूरी तरह से सच नहीं है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का काम खजाना खोजना नहीं, बल्कि प्राचीन सभ्यता का पता लगाना, उस सभ्यता में रहने वाले लोगों के कल्चर, सभ्यता के खत्म होने के कारणों का पता लगाकर और आज की जेनरेशन को विलुप्त हो चुकी सभ्यताओं से परिचित कराना है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर सैयद जमाल हसन कहते हैं कि आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट का काम जितना आसान हम और आप समझते हैं, हकीकत में वह उतना ही चैलेंजिंग है। किसी क्षेत्र में प्राचीन सभ्यता का पता लगाना आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के लिए रेत में सूई ढूंढने जैसा होता है। आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट को किसी क्षेत्र में खुदाई के दौरान तमाम तरह के चैलेंजेज फेस करने पडते हैं। खुदाई में खोजी गई प्राचीन धरोहरों को संभाल कर भावी पीढी के लिए संरक्षित किया जाता है। उन्होंने बताया कि आर्कियोलॉजी का दायरा बेहद विस्तृत है। इमारतें, शिलालेख, मोहर, बर्तन, औजार जैसे तमाम छोटे-बडे साक्ष्य मुख्य आधार होते हैं। इन साक्ष्यों की वैज्ञानिक छानबीन कर एक तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचना ही ऑर्कियोलॉजी का मुख्य उद्देश्य है। अर्कियोलॉजी की मुख्य शाखाओं की बात करें, तो इनमें न्यूमिस्मैटिक्स, एपिग्राफी, आर्काइव्स और म्यूजियोलॉजी हैं।

जानकारों का कहना है कि यह एक मल्टीडिसिप्लिनरी फील्ड है, जिसके प्रोफेशनल्स मानव विज्ञान, समाजशास्त्र, आर्किटेक्चर, पेलियोजियोलॉजी, पेलियोबॉटनी, स्ट्रक्चरल कंजरवेशन ऑफ मॉन्यूमेंट्स, हैरिटेज मैनेजमेंट, अंडरवाटर आर्कियोलॉजी आदि विषयों के भी जानकार होते हैं।

सर्वे है इंपॉर्र्टेट

आर्कियोलॉजी अपने आप में बहुत बडी फील्ड है। आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट को जब किसी स्थान पर खुदाई करनी होती है, तो सबसे पहले उस एरिया का सर्वे किया जाता है। डिपार्टमेंट के लोग इलाके के बुजुर्ग लोगों से, पुराने लिटरेचर से उस एरिया के बारे में जानकारी हासिल करते हैं और सारे तथ्यों की डिटेल में स्टडी करते हैं। पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर विभाग उस क्षेत्र में काम करने के लिए प्रपोजल बनाकर हायर अथॉरिटीज को देता है। सीनियर अथॉरिटीज से परमिशन मिलने के बाद डिपार्टमेंट उस पूरे एरिया का मैप तैयार कराता है। किस तरह से खोदाई का काम शुरू क रना है, इस पर बारीकी से काम किया जाता है।

सावधानी से खोदाई

एक्सप्लोरेशन ऐंड एक्सकेवेशन यानी खोज और खोदाई में सबसे ज्यादा रिस्क और सावधानी बरती जाती है। इस काम में आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट को सबसे ज्यादा चैलेंज फेस करने पडते हैं। खोदाई में कितना समय लगेगा, इस बारे में किसी को कोई अंदाजा नहीं होता है। खुदाई में जब तक चीजों का मिलना जारी रहता है, खोदाई जारी रहती है। इस काम में आर्कियोलॉजिस्ट अज्ञात रहस्यों की ओर बढता है। खोदाई में प्राप्त अवशेषों को ट्रौवेल (खुरपी) तथा टॉक की सहायता से उठाकर बाल्टियों में भरकर बाहर लाया जाता है। कई उपकरणों, जिनमें कई तरह के ब्रश, चाकू, तौलिया आदि का इस्तेमाल किया जाता है। खोदाई में प्राप्त चीजों की आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट स्टडी करता है। स्टडी के बाद इन चीजों को करीब के म्यूजियम में रखा जाता है।

लेयर की पहचान

लेयर यानी मिट्टी की परत की पहचान बहुत जरूरी है। लेयर के आधार पर ही चीजों की प्राचीनता की जानकारी मिलती जाती है। महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक के हेड ऑफ हिस्ट्री डिपार्टमेंट, प्रो. अमर सिंह बताते हैं कि सामान्य रूप से लेयर की पहचान उसके रंग, कंपोजिशन और कंटेंट के आधार पर की जाती है। खोदाई में अगर अलग-अलग लेयर मिलती हैं, तो उससे पता चलता है कि यहां कई प्राचीन सभ्यताएं रह चुकी हैं।

ड्राइंग

खोदाई से पहले उस एरिया की ड्राइंग तैयार की जाती है। यह एक तरह से खोदाई करने वाली जगह का एक संभावित नक्शा होता है, जिससे वहां पर खोदाई करने में ऑर्कियोलॉजिस्ट को काफी मदद मिलती है।

खोदाई का पैमाना

प्रत्येक साइट (सभ्यता) का अपना एक नेचर होता है। आमतौर पर एक दिन में 2 से 4 सेमी. तक डिगिंग की जाती है। इस दौरान मिट्टी को कई स्टेप में चेक किया जाता है। पहले मिट्टी को छानते हैं, फिर पानी में डालकर ग्रेंस चेक करते हैं। उसमें मिलने वाले ग्रेंस का आर्कोबॉटनिस्ट लैब में टेस्ट करता है। जैसे-जैसे ऑब्जेक्ट या सभ्यता के नमूने मिलने शुरू होते हैं, खोदाई की रफ्तार धीमी होती चली जाएगी।

फोटोग्राफी ऐंड रिकॉर्डिंग

पूरी प्रक्रिया की फोटोग्राफी और रिकार्डिंग कराई जाती है। स्टेप-बाय-स्टेप सारा प्रॉसेस रिकॉर्ड कराया जाता है। खोदाई के बाद अगर जगह बहुत ज्यादा इंपॉटेंट नहीं है, तो आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट उन गड्ढों को बंद कर देता है। इसके बाद खोदाई में प्राप्त चीजों की स्टडी की जाती है और कहीं कोई कमी रह जाती है, तो फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी की मदद ली जाती है।

खोदाई के लिए समय निर्धारित

खोदाई के लिए समय निर्धारित होता है। ऑर्कियोलॉजिस्ट बारिश के दिनों खोदाई का काम नहीं करते हैं। बारिश में मिट्टी के धंसने का खतरा ज्यादा होता है, जिससे अवशेषों के नष्ट होने की आशंका अधिक होती है।

इतिहास की नॉलेज जरूरी

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के डायरेक्टर सैयद जमाल हसन कहते हैं कि एक ऑर्कियोलॉजिस्ट को इतिहास के बारे में डिटेल नॉलेज होना बहुत जरूरी है। अगर आपको सब्जेक्ट की कंप्लीट जानकारी नहीं होगी, तो आप सिविलाइजेशन को ठीक से समझ नहीं सकेंगे। हमारी नॉलेज ही खोदाई में प्राप्त हुई चीजों को समझने में मदद करती है। अपनी नॉलेज और एक्सपीरियंस के आधार पर ही हम प्राप्त चीजों को संबंधित सभ्यता से जोड पाते हैं।

मॉन्यूमेंट्स की देखभाल

मॉन्यूमेंट्स की देखभाल करना भी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के लिए एक बडी चुनौती होता है। भारत में करीब 3778 मॉन्यूमेंट्स हैं। इन सभी मॉन्यूमेंट्स की देखभाल की जिम्मेदारी ऑ‌िर्र्कयोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास है। इसके अलावा 31 मॉन्यूमेंट्स व‌र्ल्ड हैरिटेज में आते हैं। इन मॉन्यूमेंट्स को देखने के लिए हर साल लाखों विदेशी टूरिस्ट आते हैं, इसलिए इनकी विशेष रूप से देखभाल की जाती है। इनके संरक्षण में हर साल लाखों रुपये का खर्च आता है।

आधुनिक तकनीक

कहते हैं कि सभ्यता की खोज औजारों से नहीं, बल्कि हौसले के भरोसे की जाती है। नई-नई टेक्नोलॉजी और एडवांस औजारों ने एएसआई के कामकाज को पहले से आसान बना दिया है। जीपीएस और रिमोट सेंसिंग से मदद ग्लोबल पोजिशिनिंग सिस्टम के जरिये जमीन में दबी धातुओं का पता लगाया जाता है। वहीं एरियल सेंसर टेक्नोलॉजी की भी मदद ली जाती है, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन या सिग्नल्स की मदद से ऑब्जेक्ट को फिजिकली टच किए बिना उसकी लोकेशन और उसके आकार के बारे में पता लगाया जाता है।

फ्यूचर इन मॉन्यूमेंट्स

इतिहास में इंट्रेस्ट रखने वालों के लिए आर्कियोलॉजी एक दिलचस्प और उभरता हुआ फील्ड है। इस क्षेत्र में डिग्री और डिप्लोमा करने वाले स्टूडेंट्स के लिए देश-विदेश मेंतमाम जॉब ऑप्शन मौजूद हैं..

क्या है र्ऑर्कियोलॉजी ?

ऑर्कियोलॉजी के अंतर्गत प्राचीन मानव संस्कृति को खंगाला जाता है। ऑर्कियोलॉजी ऐतिहासिक खोज की वह शाखा है, जो विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक है। ऑर्कियोलॉजी में प्राचीन चीजों और अवशेषों की स्टडी की जाती है। जैसे प्राचीन सिक्के, बर्तन, चमडे की किताबें, भोजपत्र पर लिखित पुस्तकें, शिलालेख, मिट्टी के नीचे दफन शहरों के खंडहर या फिर पुराने किले, धार्मिक स्थल और हर प्रकार के प्राचीन अवशेष, वस्तुओं आदि का अध्ययन आर्कियोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है। इसके अलावा ऑर्कियोलॉजी में मॉन्यूमेंट्स, आ‌र्ट्स एंड क्राफ्ट्स, क्वॉयन, सील, बीड, लिटरेचर और नेचुरल फीचर्स के संरक्षण एवं प्रबंधन का कार्य आर्कियोलॉजी के अंतर्गत आता है। आर्कियोलॉजिस्ट न केवल इन चीजों का ज्ञान रखता है, बल्कि उनकी खोज भी करता है।

करियर इन ऑर्कियोलॉजी

आप में अगर इतिहास को जानने की दिलचस्पी है और आप आम लोगों को खत्म हो चुकी सभ्याताओं के बारे में बताना चाहते हैं, तो ऑर्कियोलॉजी फील्ड आपके लिए एक बेहतर करियर साबित हो सकता है। आज इस फील्ड का तेजी से विकास हो रहा है। इस फील्ड में करियर  बनाने वालों के लिए देश के साथ-साथ विदेशों में काफी अवसर हैं।

एलिजिबिलिटी

ऑर्कियोलॉजिस्ट बनने के लिए आपको तीन वर्षीय बीए इन ऑर्कियोलॉजी डिग्री लेनी होगी, जिसके लिए 12वीं स्तर पर एक विषय के रूप में इतिहास की पढाई जरूरी है। यदि आगे आप एमए इन ऑर्कियोलॉजी करना चाहते हैं, तो इसकी न्यूनतम योग्यता बीए इन ऑर्कियोलॉजी या ग्रेजुएशन में हिस्ट्री सब्जेक्ट या समकक्ष होना चाहिए। इस क्षेत्र में जाने के लिए कम्युनिकेशन स्किल और आईटी स्किल की भी बहुत जरूरत है।

जॉब अपॉच्र्युनिटी

एक करियर के रूप में ऑर्कियोलॉजी में असीम संभावनाएं हैं। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अलावा देश-विदेश में ऐसे बहुत से पुरातत्व संबंधी संस्थान हैं जहां निदेशक, शोधकर्ता, सर्वेक्षक और आर्कियोलॉजिस्ट, असिस्टेंट आर्कियोलॉजिस्ट आदि पदों पर रोजगार उपलब्ध हैं। म्यूजियम्स, आर्ट गैलरीज, विदेश मंत्रालय के हिस्टोरिकल डिवीजन, शिक्षा मंत्रालय, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, विश्वविद्यालयों आदि में भी रोजगार के अच्छे मौके मिलते हैं। सरकारी संस्थानों और शिक्षण संस्थानों में नौकरी करने वाले पुरातत्वविदों को बहुत अच्छे वेतन पर नियुक्ति मिलती है, जिन्हें समय और अनुभव के आधार पर प्रमोशन भी मिलते हैं। आर्कियोलॉजी में डिग्री लेने के बाद शोध संस्थानों, ट्रैवल एंड टूरिज्म इंडस्ट्री आदि में भी जॉब अपॉच्र्युनिटीज उपलब्ध हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ ऑर्कियोलॉजी के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एसके मंजुल के मुताबिक, इस फील्ड में संभावनाएं तेजी से बढ रही हैं। कोर्स करने के बाद स्टूडेंट्स सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह से जॉब कर सकते हैं। इसके अलावा विदेश में भी इस सब्जेक्ट के जानकारों के पास जॉब के काफी अवसर मौजूद हैं। आप वहां जाकर भी इस फील्ड में नाम और शोहरत कमा सकते हैं।

इंस्टीट्यूट

-www.bhu.ac.in

-www.ranchiuniversity.org.in

-www.utkaluniversity.ac.in

-www.apsurewa.ac.in

-www.allduniv.ac.in

-www.patnauniversity.ac.in

-www.msubaroda.ac.in

-www.kud.ac.in

-www.dhsgsu.ac.in

-www.asi.nic.in

-www.mjpru.ac.in

-www.unom.ac.in

म्यूजियोलॉजी से एंट्री

ऐतिहासिक धरोहरों के करीब रहना चाहते हैं, उनके बारे में गहराई से जानना चाहते हैं, तो म्यूजियोलॉजी का फील्ड आपको ये सुनहरा मौका देता है। आप म्यूजियम में प्राचीन धरोहरों के संरक्षक के तौर पर काम कर सकते हैं..

भारत में अब तक यह एक पॉपुलर कोर्स नहीं रहा है, लेकिन धीरे-धीरे युवाओं की दिलचस्पी इसमें बढी है और वे म्यूजियोलॉजी कोर्स में दाखिला ले रहे हैं। एक बार पढाई पूरी करने पर देश ही नहीं, विदेश में भी इनके लिए कई सारे रास्ते खुलते जा रहे हैं। पूर्व की रॉयल फैमिलीज अपने कलेक्शन को मैनेज और डॉक्यूमेंट करने के लिए भी इन प्रोफेशनल्स को हायर करने लगी हैं।

क्या है म्यूजियोलॉजी?

म्यूजियोलॉजी एक तरह का साइंस है, जिसमें म्यूजियम के एडमिनिस्ट्रेशन और मैनेजमेंट की स्टडी की जाती है। इसमें स्टूडेंट्स को एक खास पीरियड या देश के कल्चरल हैरिटेज के प्रिजर्वेशन और कंजर्वेशन पर फोकस करना होता है। इस कोर्स में स्टूडेंट्स को म्यूजियम के दर्शन और बदलते वक्त के साथ इसमें आ रहे नए बदलाव आदि के बारे में जानकारी दी जाती है। साथ ही आर्ट गैलरी की देखभाल, सब्जेक्ट्स पर प्रेजेंटेशन, संरक्षण, प्रदर्शित कलाओं की जानकारी, कलेक्शन, डिजाइनिंग, आर्टिफैक्ट्स के डॉक्यूमेंटेशन के बारे में भी पढाया जाता है। इसके अलावा, सब्जेक्ट से जुडी मार्केटिंग क्वॉॅलिटीज भी बताई जाती हैं, ताकि स्टूडेंट्स को जॉब मिलने में कोई परेशानी न हो।

स्किल्स ऐंड एलिजिबिलिटी

किसी भी स्ट्रीम में ग्रेजुएशन करने वाले म्यूजियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकते हैं। वैसे, हिस्ट्री, एंशिएंट हिस्ट्री, आर्कियोलॉजी, एंथ्रोपोलॉजी, संस्कृति, फाइन आ‌र्ट्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री, बॉटनी, जूलॉजी, ज्योलॉजी, अर्थ साइंस, एग्रीकल्चर, एनवॉयरनमेंटल साइंस और मरीन साइंस बैकग्राउंड के स्टूडेंट्स भी म्यूजियोलॉजी में पीजी कर सकते हैं।

कई इंस्टीट्यूट और म्यूजियम, स्टूडेंट्स को इंटर्नशिप करने का मौका भी देते हैं। जहां तक स्किल्स की बात है, तो एक म्यूजियोलॉजिस्ट के पास मैनेजमेंट, विजुअल सेंस के साथ कम्युनिकेट करने की कैपिबिलिटी, स्ट्रॉन्ग टीम स्पिरिट और रिसर्च स्किल्स होनी चाहिए।

करियर स्कोप

कोर्स के बाद नेशनल म्यूजियम, आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम, आर्ट गैलरी में जॉब मिल जाती है। स्टूडेंट्स चाहें, तो म्यूजियम में क्यूरेटर, डिप्टी क्यूरेटर, रिसर्च एसोसिएट, मैनेजर आदि के रूप में काम कर सकते हैं। इसके अलावा, प्राइवेट सेक्टर में भी काफी अवसर हैं।

म्यूजियोलॉजी में डिग्री रखने वालों की सैलरी 25 हजार रुपये से शुरू होकर 50 हजार रुपये मंथली तक हो सकती है, जबकि एक्सपीरियंस और स्किल के साथ सैलरी लाखों में पहुंच सकती है। व‌र्ल्ड बैंक या दूसरे बडे म्यूजियम के प्रोजेक्ट्स के साथ कंसल्टेंट के तौर पर जुड कर काम कर सकते हैं। वहीं, लाइब्रेरियन, हिस्टोरियन और आर्काइविस्ट भी म्यूजियोलॉजिस्ट के तौर पर करियर बना सकते हैं।

इंस्टीट्यूट्स

-www.nmi.gov.in

-www.visva-bharati.ac.in

-www.bhu.ac.in

-www.jiwaji.edu

-www.msubaroda.ac.in

एंथ्रोपोलॉजी से मौका

आर्कियोलॉजी में करियर बनाना हो तो एंथ्रोपोलॉजी में ग्रेजुएशन करके भी इस फील्ड से जुडा जा सकता है। इस सब्जेक्ट की मदद से अलग-अलग समय काल में मानव के विकास के बारे में जानकारी मिलती है..

एंथ्रोपोलॉजी की स्टडी में यह पता लगाया जाता है कि इंसान धरती पर मौजूद बाकी जीवों से किस तरह से अलग है, समाज के किस काल, संस्कृति के किस दौर और इतिहास के किस पल का उस पर सबसे ज्यादा असर हुआ है, वह कौन से कारण हैं, जिन्होंने मानव को बदलने का काम किया है। डेवलपमेंट स्कीम में इस सब्जेक्ट को ही बेस बनाया जाता है। इस चैलेंजिंग फील्ड के साथ जुडकर अगर आप काम करना चाहते हैं, तो सबसे पहले इस सब्जेक्ट से रिलेटेड किसी यूनिवर्सिटी या कॉलेज से इसकी डिग्री हासिल करें।

स्कोप हैं बहुत

एक अच्छे एंथ्रोपोलॉजिस्ट के लिए जॉब के कई ऑप्शन्स खुले हैं। किसी नॉन-गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन के साथ जुडकर वर्क कर सकते हैं, जहां अभी डेवलपमेंट नहीं हुआ है। व‌र्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन, यूनेस्को, यूनिसेफ जैसी इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन्स के साथ भी काम करने के अच्छे चांस हमेशा मौजूद रहते हैं। जिन लोगों ने इस सब्जेक्ट में पीएचडी की हुई है, वे चाहें तो किसी यूनिवर्सिटी के साथ जुडकर टीचिंग प्रोफेशन में जा सकते हैं।

एलिजिबिलिटी

बैचलर डिग्री प्रोग्राम में एडमिशन के लिए स्टूडेंट का हायर सेकंडरी पास होना कंपल्सरी है। बैचलर डिग्री कोर्स का पीरियड तीन साल का है। मास्टर डिग्री प्रोग्राम के लिए इसी सब्जेक्ट से स्टूडेंट का बैचलर होना जरूरी है। मास्टर कोर्स का पीरियड दो साल का है। इस सब्जेक्ट में पीएचडी के लिए जरूरी है कि कैंडिडेट ने इसी सब्जेक्ट में पीजी किया हो।

सैलरी

एक एंथ्रोपोलॉजिस्ट के लिए शुरुआती सैलरी पैकेज 12 से 15 हजार रुपये प्रतिमाह का होता है। यूनेस्को, डब्ल्यूएचओ जैसे इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन्स के साथ वर्क करने वालों को यह पैकेज इसकी तुलना में कई गुना ज्यादा मिलता है। कॉन्टै्रक्ट के तौर पर भी इस फील्ड में पैकेज डिसाइड किया जाता है। इस तरह का वर्क और उसमें लगने वाले टाइम पर डिपेंड करता है।

मेन कोर्स

-बैचलर ऑफ आ‌र्ट्स इन एंथ्रोपोलॉजी

-बैचरल ऑफ साइंस इन एंथ्रोपोलॉजी

-मास्टर ऑफ फिलॉसिफी इन एंथ्रोपोलॉजी

-डॉक्टर ऑफ फिलॉसिफी इन एंथ्रोपोलॉजी

स्पेशलाइजेशन

एंथ्रोपोलॉजी के अंतर्गत स्टूडेंट एप्लाइड एंथ्रोपोलॉजी, बिजनेस एंथ्रोपोलॉजी, फिजिकल एंथ्रोपोलॉजी, लिंग्विस्टिक एंथ्रोपोलॉजी, मेडिकल एंथ्रोपोलॉजी, विजुअल एंथ्रोपोलॉजी आदि में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं। करियर के लिहाज से ये सभी ब्रांचेज अच्छी मानी जाती हैं।

मेन इंस्टीट्यूट्स

-www.allduniv.ac.in

-www.puchd.ac.in

-www.du.ac.in

-www.patnauniversity.ac.in

-www.ansi.gov.in

टेक्नोलॉजी से खोज

ऑर्कियोलॉजी में ज्योआर्कियोलॉजी एक मल्टी डिसिप्लिनरी, मॉडर्न और ग्रोइंग करियर अप्रोच है। इसमें हम जीआईएस यानी ज्योग्राफिक इंफॉर्मेशन सिस्टम और रिमोट सेंसिंग से जमींदोज चीजों की जानकारी हासिल करते हैं..

क्या है जीआईएस?

जीआईएस एक ऐसी टेक्निक है, जिसके तहत एडवांस सॉफ्टवेयर्स की मदद से टारगेट एरिया की मैपिंग की जाती है। यह एक हाईटेक तकनीक है, जिसमें किसी भी डाटा को एनालॉग से डिजिटल तकनीक में बदला जाता है। ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम को रिमोट सेंसिंग टेक्निक का सिमेट्रिकल भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें किसी भी जगह की स्थिति उस जगह गए बिना ही अपने कंप्यूटर पर देखी और बनाई जा सकती है। ज्योग्रॉफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम से ज्यॉग्रॉफिक चेंजेज को जाना जा सकता है।

रिमोट सेंसिंग क्या है?

दुनिया में जब कहीं भी बाढ, सुनामी या भूंकप जैसी प्राकृतिक आपदा आती है, तो कुछ वैज्ञानिक सीधे तौर पर उसकी स्टडी के लिए जुड जाते हैं। रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट इसके लिए आंकडे मुहैया कराती है। सैटेलाइट की तस्वीरों से खतरे का बेहतर अंदाजा लगता है। पता चलता है कि कौन सी गली में क्या हो रहा है और कहां राहतकर्मी नहीं जा पाएंगे। आंकडों की एनालिसिस पूरी टीम करती है. इस तरह इमरजेंसी आते ही सबको पता रहता है कि कौन क्या करेगा।

करियर इन डिमांड

न सिर्फ सरकारी संस्थानों को, बल्कि प्राइवेट कंपनियों को भी जीआईएस और रिमोट सेंसिंग प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है। कई ऐसी फील्ड्स हैं, जैसे भौगोलिक नक्शे बनाना, टाउन प्लानिंग, फॉरेस्ट डेवलपमेंट, नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट, वेस्ट लैंड मैपिंग, एग्रीकल्चर एरिया मैपिंग, टूरिस्ट साइट मैनेजमेंट एंड प्लानिंग, जहां अच्छी-खासी सैलरी पर इसके प्रोफेशनल्स की मांग बनी रहती है।

एलिजिबिलिटी

ज्योलॉजी, एप्लॉइड ज्योलॉजी, अर्थ साइंस, ज्योग्राफी, ज्योसाइंस जैसे सब्जेक्ट्स से ग्रेजुएशन करने के बाद आप ये कोर्सेज कर सकते हैं।

जॉब अपॉच्र्युनिटीज

-इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो)

-नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी (एनआरएसए)

-नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी)

-स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर

-अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी, म्यूनिसिपल बॉडीज

-नेचुरल रिसोर्स ऐंड इमरजेंसी मैनेजमेंट

-मिलिट्री कमांड, बिजनेस एप्लीकेशन

-सोशियो-इकोनॉमिक डेवलपमेंट

प्रमुख इंस्टीट्यूट्स

-www.iirs.gov.in

-www.allduniv.ac.in

-www.bitmesra.ac.in

-www.mdsuajmer.ac.in

-www.iitr.ac.in

-www.iitk.ac.in

-www.cdacnoida.in

-www.esriindia.com

-www.mnnit.ac.in

फास्ट ग्रोइंग

यह एक तेजी से बढता करियर ऑप्शन है, क्योंकि यह मल्टी डिसिप्लिनरी फ्रील्ड है। ज्योग्राफी, ऑर्कियोलॉजी, हिस्ट्री और एस्ट्रोलॉजी हर फील्ड में इसकी डिमांड है। 2020 तकइस फील्ड के टेक्नॉलॉजिस्ट्स और साइंटिस्ट्स की डिमांड 3 से 9 प्रतिशत बढने वाली है।

शालिनी सिंह, को-ऑर्डिनेटर, सी-डैक, नोएडा

आर्ट ऐंड रीस्टोरेशन

कंजर्वेशन के लिए ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम समय-समय पर मॉन्यूमेंट्स का निरीक्षण करती है। मॉन्यूमेंट्स की स्थिति को देखते हुए उस पर कंजर्वेशन वर्क होता है..

सैकडों साल पुराने मॉन्यूमेंट्स को संरक्षित रखना ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के लिए एक बडा चैलेंज है। इसका सबसे ताजा उदाहरण दिल्ली में स्थित हुमायूं के मकबरे का पुनरुद्धार-पुनर्निर्माण करने में छह साल से ज्यादा का वक्त लग जाना है। 1500 स्किल्ड कारीगर लगाने के बावजूद इतना वक्त लग गया। असिस्टेंट ऑर्कियोलॉजिस्ट डॉ. सज्जन कुमार जालेंद ्र के मुताबिक, एएसआई समय-समय पर पुराने मॉन्यूमेंट्स के रख-रखाव के लिए टीम बनाकर इंस्पेक्शन करती है, ताकि मॉन्यूमेंट्स की लाइफ को बढाया जा सके। कंजर्वेशन के दौरान एएसआई मॉन्यूमेंट्स की एक्चुअल शेप में किसी प्रकार का चेंज नहीं करती है। ऑर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट पुराने मॉन्यूमेंट्स की मरम्मत दो तरह से करता है, एक प्लान बनाकर और दूसरा बिना प्लान के। इसके लिए ऑर्कियोलॉजिस्ट की एक टीम बाकायदा सर्वे करती है और जैसी सिचुएशन होती है, मॉन्यूमेंट्स पर काम करती है। टीम में एक सिविल इंजीनियर भी होता है, जो मॉन्यूमेंट्स की स्थिति के बारे में अधिकारियों को बताता है कि मॉन्यूमेंट्स को मरम्मत की कितनी जरूरत है। ऑर्कियोलॉजी की एक पूरी टीम टाइम टु टाइम मॉन्यूमेंट्स का सर्वे कर उनकी मरम्मत करती रहती है।

कंजर्वेशन इज आर्ट

मॉन्यूमेंट्स की मरम्मत भी अपने आप में एक आर्ट है। सैकडों साल पुरानी धरोहरों को वैसे ही मेनटेन कर रखना अपने आप में एक बडा अचीवमेंट है। कंजर्वेशन के दौरान ऑर्कियोलॉजी वही तकनीक अपनाती है जैसी तकनीक का इस्तेमाल उसमें की गई थी। इसमें एक्सपर्ट की भी मदद ली जाती है।

मैटेरियल की खोज

ऑर्कियोलॉजिस्ट डॉ. सज्जन कुमार बताते हैं कि सैकडों साल पुराने मॉन्यूमेंट्स को बनाने में कई तरह की टेक्नोलॉजी और मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया था। आज उस तरह का मैटेरियल मिलना काफी मुश्किल है। मॉन्यूमेंट्स की मरम्मत से पहले उसका सर्वेक्षण किया जाता है। उसमें किस तरह का मैटेरियल यूज किया गया है, इसकी रिसर्च की जाती है उसके बाद वैसा ही मैटेरियल तैयार किया जाता है और तब जाकर उसकी मरम्मत का काम शुरू किया जाता है।

आर्टिस्ट की खोज

हर मॉन्यूमेंट्स की अपनी अलग पहचान और सभ्याता होती है। उन मॉन्यूमेंट्स में की गई शिल्पकारी भी अलग-अलग तरह की होती है। आज उस तरह के आर्टिस्ट बहुत कम हैं। किसी मॉन्यूमेंट्स की मरम्मत करने से पहले उस पर काम करने वाले आर्टिस्ट को खोजना भी अपने आप में बडा चैलेंज है। ऑर्कियोलॉजी एक्सपर्ट कंजर्वेशन में उसी आर्ट का यूज करते हैं जैसा किउस मॉन्यूमेंट को बनाने में किया गया था।

एजिंग

एजिंग के दौरान मॉन्यूमेंट्स में कोई चेंज नहींकिया जाता है। उसे वैसा ही रखा जाता है, जैसा वह पहले दिखाई देता था। एजिंग में जो एरिया खराब हो जाता है, उसमें प्लास्टर कर उसके कुछ हिस्सों में जहां आर्ट सही होती है, उसे वैसा ही छोड दिया जाता है, ताकि पहले की आर्ट के बारे में लोगों को पता चल सके। इसमें पुरानी शिल्पकारी और आर्ट को बचाने की कोशिश की जाती है।

कॉन्सेप्ट : एम. रजा, अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव और शरद अग्निहोत्री।


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