पॉयलट्स ऑफ इनक्रेडिबल इंडिया
पहले ट्रैवल का मतलब सिर्फ तीर्थयात्रा, पहाड़, हनीमून डेस्टिनेशन या स्मारकों को एक्सप्लोर करना ही समझा जाता था। सरकार ने अतिथि देवो भव: और इनक्रेडिबल इंडिया के जरिए टूरिज्म को नई दिशा देने की कोशिश की लेकिन अतुल्य भारत या इनक्रेडिबल इंडिया के स्लोगन को इंप्लीमेंट किया कुछ यंगस्टर्स ने। उन्होंने अपने इनोवेशंस के जरिए न सिर्फ नए-नए एरियाज को एक्सप्लोर किया, बल्कि ट्रेडिशनल ट्रैवल को एक नई डेफिनेशन भी दी है। वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन की हालिया स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक इंडिया आने वाले इंटरनेशनल टूरिस्ट्स में से 20 परसेंट की एज 18 से 25 साल के बीच है और ये नए डेस्टिनेशंस में इंट्रेस्ट ले रहे हैं। खास बात ये है कि नए प्लेसेज को एक्सप्लोर करने में ऑनलाइन ट्रैवल इंडस्ट्री इंपोर्र्टेट रोल प्ले कर रही है। इन्होंने साइट सीन्स की बजाय लोकल स्पेशएलिटीज की तरफ टूरिस्ट्स को अट्रैक्ट किया है और ट्रैवल एंड टूरिज्म सेक्टर में एक नया सेगमेंट क्रिएट किया है..
प्लान ट्रिप इन 15 मिनट
क्या कभी सोचा है कि 15 मिनट में भी ट्रिप प्लान कर सकते हैं? वर्ल्ड के अट्रैक्टिव डेस्टिनेशंस में से अपनी फेवरेट लोकेशन को चूज कर सकते हैं और वह भी बिना ज्यादा टाइम वेस्ट किए। माईगोला डॉट कॉम पर यह पॉसिबल है। वहां इटिनेररीज (ट्रैवल गाइड बुक) में चेंजेज कीजिए, पसंद का होटल सेलेक्ट कीजिए, फ्रेंड्स से एडवाइस लेकर खुद का इटिनेररी (गाइड बुक) बना अपने डेस्टिनेशन पर पहुंच जाइए।
ट्रैवलिंग नहींप्रॉब्लम
माईगोला के फाउंडिंग मेंबर और सीओओ प्रतीक कहते हैं, कोई भी ट्रिप प्लान करते समय सबसे कॉमन कंप्लेन रहती है कि कहां से स्टार्ट करें। इंटरनेट पर न्यूयॉर्क टाइम्स या वर्ल्ड ट्रैवलर के ब्लॉग्स या फोरम डिस्कशंस को सर्च कर इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करने की कोशिश होती है। बात फिर भी नहीं बनती। खासकर अगर लॉन्ग ट्रिप और वर्ल्ड के किसी अननोन प्लेस पर जाना हो, तो कई बार 20-30 वेबसाइट सर्च करने के बाद भी कंफ्यूजन दूर नहीं होता। प्रतीक ने बताया कि अंशुमान बापना और वे आईआईटी, मुंबई में साथ-साथ थे। बापना ने 2000 में ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद वे स्टैनफोर्ड से एमबीए करने चले गए और फिर गूगल की स्ट्रैजिक पार्टनरशिप टीम से जुड गए, जबकि उन्होंने 2002 में ग्रेजुएशन करने के बाद एक स्टार्टअप कंपनी तेजस नेटवर्क ज्वाइन कर लिया था। प्रतीक कहते हैं, कोर्स कंप्लीट होने पर दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए थे, लेकिन फिर बात हुई कि ट्रैवल प्लानिंग कितनी बडी प्रॉब्लम है। इसी का सॉल्यूशन निकालने के इरादे से उन्होंने 2009 में अंशुमान के साथ मिलकर माईगोला डॉट कॉम बनाया।
क्रिएट पर्सनल गाइड बुक
प्रतीक ने बताया कि ज्यादातर ट्रैवलर्स वर्ल्ड क्लास ट्रैवलर्स की इटिनेररी को कॉपी करना चाहते हैं, इसलिए हमने एक ऐसा पेटेंट पेंडिंग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गॉरिदम क्रिएट किया है, जिसकी मदद से कोई भी ट्रैवलर इन फॉरेन आर्टिकल्स को अपनी इटिनेररी में कनवर्ट कर सकता है और फिर उसे अपने हिसाब से चेंज कर सकता है। यह स्ट्रक्चर्ड इटिनेररी वर्ल्ड का सबसे बडा डाटाबेस है। इसके सोर्स न्यूयॉर्क टाइम्स, नेशनल ज्योग्राफिक, इंडिपेंडेंट, लोनली प्लैनेट जैसे पेपर्स और मैगजीन्स हैं। इस तरह कोई भी ट्रैवलर 15 मिनट में माईगोला पर पर्सनलाइज्ड इटिनेररी (गाइड बुक) बना सकता है। इतना ही नहीं, अब तो आप अपने एपल आईपैड पर भी इसकी ट्रैवल प्लानिंग सर्विस अवेल कर सकते हैं। इसके लिए आपको आईट्यून स्टोर से सिर्फ फ्री एप डाउनलोड करना होगा। प्रतीक बताते हैं कि माईगोला पहला ऐप है, जिसकी मदद से एक ट्रैवलर दुनिया के 20 हजार से ज्यादा डेस्टिनेशंस के लिए ट्रिप प्लान कर सकता है। कह सकते हैं कि इससे ट्रैवल प्लान करना किसी फन एक्टिविटी जैसा है। इसके अलावा माईगोला पर यूट्रिप, प्लानर, टूरिस्टआई, सिटीबॉट जैसे यूनीक फीचर्स भी हैं।
होटल सर्च बना चैलेंज
प्रतीक कहते हैं कि स्टार्टिग में इटिनेररी फ्रेम करना थोडा मुश्किल था। होटल्स ढूंढने में भी मुश्किल आई। सब में बहुत समय गया, लेकिन धीरे-धीरे सब सिस्टेमैटिक हो गया। शुरू में फंडिंग की भी प्रॉब्लम थी लेकिन ब्लूमबर्ग कैपिटल, डेव और 500 स्टार्टअप्स की हेल्प से काफी फंड कलेक्ट हो गया। प्रतीक ने बताया कि उन्होंने हर चैलेंज को एक्सेप्ट किया और ट्रैवलर को वह दिया, जो उसे चाहिए था। इसलिए आज उनकी मार्केट में डिमांड है।
कस्टमर सैटिस्फैक्शन
बीते तीन साल में माईगोला 2 मिलियन से ज्यादा ट्रैवलर्स को अमेजिंग ट्रिप्स पर भेज चुकी है। माईगोला का हेडक्वॉर्टर तो यूएस में है, लेकिन बेंगलुरु में इसका इंजीनियरिंग ऑफिस है। अगर कस्टमर्स की बात करें, तो इंडिया के अलावा यूएस से काफी लोग माईगोला की सर्विसेज यूज करते हैं। कई कस्टमर्स ने माना है कि यहां से ट्रिप प्लान करना किसी टैक्सी को हायर करने जैसा ईजी है। प्रतीक की यंग एंटरपे्रन्योर्स को एडवाइस है कि कोई भी नया स्टार्टअप शुरू करते वक्त सारा कैपिटल न इनवेस्ट करें। धीरे-धीरे आगे बढें।
माईगोला टीम
प्रतीक और अंशुमान के इस वेंचर में दो दर्जन से ज्यादा एम्प्लाइज फुलटाइमर्स हैं। इसके अलावा काफी लोग फ्रीलांसर के तौर पर इस ट्रैवल पोर्टल से जुडे हुए हैं। प्रतीक बताते हैं, हमें हमेशा एक अच्छे ट्रैवल प्लानर की तलाश रहती है। इसके लिए बाकायदा एंट्रेंस टेस्ट लिया जाता है, जिसके क्लियर होने के बाद एक स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम कंडक्ट किया जाता है। तब जाकर कहींवे माईगोला टीम के साथ काम कर पाते हैं। इस तरह नए स्पेस और नए कस्टमर्स को डील करने में ये एक्सपर्ट बन चुके हैं।
Prateek Sharma
Age: 32
Venture :
www.mygola.com Started: 2009
Education
Graduation from IIT, Mumbai. Worked with Tejas Network.
ऑर्डर फूड इन ट्रेन
प्रीति को अक्सर ट्रेन से लॉन्ग डिस्टेंस ट्रैवल करना होता है। पैंट्री का खाना उन्हें पसंद नहीं है। दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं होता है। प्रीति जैसे हजारों पैसेंजर्स अक्सर यह प्रॉब्लम फेस करते रहते हैं, लेकिन अब नहीं। आज ट्रेन में मूव करते हुए आप ट्रैवलखाना डॉट कॉम से ऑनलाइन फूड ऑर्डर कर सकते हैं, जिसकी डिलीवरी भी आपको ट्रेन में ही कर दी जाएगी। दरअसल, ट्रैवल खाना डॉट कॉम इंडिया का पहला वाइड मील बुकिंग प्लेटफॉर्म या मार्केट प्लेस है, जो पैसेंजर्स को इंडियन रेल नेटवर्क में आने वाले रेस्टोरेंट्स से जोडता है।
इश्यू ऑफ क्वॉलिटी फूड
ट्रैवलखाना डॉट कॉम के फाउंडर और सीईओ पुष्पिंदर सिंह हाल तक आईएनसीए इंफॉर्मेटिक्स के वीपी (टेक्नोलॉजी) और एक्टिंग सीटीओ के रूप में काम कर रहे थे। इसके अलावा इन्होंने क्वॉर्क, एआरआई लैब्स और एप्लिओन नेटवर्क्स के लिए कई प्रोडक्ट्स डेवलप किए हैं। ट्रैवलिंग के शौकीन पुष्पिंदर कहते हैं कि एक दिन इन्हें ख्याल आया कि एक बार पैसेंजर टिकट खरीदता है, उसके बाद फूड, लोकल ट्रांसपोर्ट या लोकल लॉजिंग के लिए टेक्नोलॉजी से किसी तरह का हेल्प नहीं मिल पाती। ट्रेन पैसेंजर्स के सामने तो ये सबसे बडा इश्यू होता है। मुझे यहां डिमांड और सप्लाई में बडा गैप नजर आया। इस तरह ट्रैवलखाना डॉट कॉम वेंचर अगस्त 2012 में स्टार्ट हुआ। कंपनी ने अब तक करीब 200 रेस्टोरेंट्स और 80 से ज्यादा स्टेशनों पर मौजूद कैटरर्स के साथ टाई-अप कर रखा है।
इन रेस्टोरेंट्स का खाना क्वॉलिटी चेक करने और कस्टमर्स से फीडबैक लेने के बाद ही पैसेंजर्स तक पहुंचाया जाता है। इस समय डेली करीब 50 डिलीवरीज की जाती हैं। पुष्पिंदर ने बताया कि जीपीएस इनेबल्ड मोबाइल एप से ट्रेन डिले या डाइवर्जन के बारे में उन्हें सारी इन्फॉर्मेशन मिलती रहती है। अगर किसी वजह से डिले होता है, तो स्टेशन पहुंचने पर भी फूड की डिलीवरी की जाती है। पैसेंजर्स को वेजिटेरियन और नॉन-वेजिटेरियन दोनों तरह का खाना सर्व किया जाता है।
एसएमएस से बुकिंग
पुष्पिंदर बताते हैं कि हर साल लॉन्ग डिस्टेंस ट्रेन ट्रैवलर्स 3 करोड से ज्यादा मील का कंजप्शन करते हैं, लेकिन ट्रेन में बाहर से खाना ऑर्डर करना आज भी एक बडा चैलेंज है। इंडियन रेलवे जिन फूड वेंडर्स को इंपैनल करती है, वही पैसेंजर्स को सर्व कर सकते हैं। इससे पैसेंजर्स के पास पैंट्री से पुअर क्वॉलिटी, अन-हाइजिनिक और ओवर प्राइस्ड फूड लेने के अलावा दूसरा कोई ऑप्शन नहीं बचता है। ऐसे में वे वेबसाइट, फोन, एसएमएस या मोबाइल एप से खाने की बुकिंग करा सकते हैं। पुष्पिंदर के मुताबिक वे जल्द ही 30 नए स्टेशंस और नए आउटलेट्स के साथ कोलेबोरेशन का प्लान कर रहे हैं।
Pushpinder Singh
Age: 40
Venture :
www.travelkhana.com Started: 2012
Education
Graduation from IIT, BHU. PG from BITS, Pilani.Worked with INCA Informatics.
पधारो म्हारे देश
एब्रॉड से आने वाले बहुत से टूरिस्ट्स के लिए इंडिया काफी अनफ्रेंडली कंट्री रहा है। अतिथि देवो भव: के स्लोगन के बावजूद भारत में फॉरेन टूरिस्ट्स के साथ मिसबिहैव की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। टूरिस्ट्स गाइड्स, टैक्सी ड्राइवर्स, वेंडर्स सभी उनसे ज्यादा पैसा वसूलने या उन्हें मिसगाइड करने की फिराक में रहते हैं। इससे कई बार उनकी पूरी ट्रिप का मजा किरकिरा हो जाता है। ऐसे वक्त में पधारो डॉट कॉम ने टूरिस्ट्स के सच्चे फ्रेंड के तौर पर उन्हें गाइड करना शुरू किया। यह इंडिया का पहला विजिटर वेलकम प्रोग्राम है।
रशियन ट्रिप में आया आइडिया
पधारो डॉट कॉम के दोनों फाउंडर इश जिंदल और सौरभ जैन 2011 में एक यूथ कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में मॉस्को गए हुए थे। दोनों के पास गूगल मैप और ट्रैवल बुक्स थे, लेकिन वहां की स्ट्रीट्स पर इंग्लिश साइन बोर्ड न होने से उन्हें काफी परेशानी हुई। इश कहते हैं, हमारी एक लोकल फ्रेंड ने बेहद इकोनॉमिकल तरीके से हमें मॉस्को के डिफरेंट प्लेसेज की सैर कराई। तभी हमने सोचा कि कैसे फॉरेन से इंडिया आने वाले टूरिस्ट्स भी कुछ इसी तरह की प्रॉब्लम्स फेस करते होंगे। हमें लगा कि फॉरेन कंट्री या सिटी में जाने पर अगर वहां का कोई लोकल, कंपैनियन के तौर पर साथ रहे, तो कितना अच्छा रहेगा। इस तरह पधारो डॉट कॉम बनाने का डिसीजन लिया।
टूरिस्ट्स के कंपैनियन
इश ने बताया कि पधारो के रिलायबल फ्रेंडली ग्रीटर्स टूरिस्ट्स को सेफ ट्रैवलिंग के अलावा एंटरटेनिंग एक्सपीरियंस देते हैं। इन ग्रीटर्स में एनआईटी और आईआईटी के स्टूडेंट्स, रिटायर्ड सिटीजंस और एजुकेटेड हाउस वाइव्स के अलावा वर्किंग प्रोफेशनल्स शामिल हैं। इश कहते हैं, हम टूरिस्ट्स को फन लोकेशंस के अलावा अलग-अलग जगहों के स्पेशल डिशेज टेस्ट कराते हैं। उन्हें लोकल फैमिलीज के साथ ठहराते हैं, जिससे वे इंडिया को बेहतर तरीके से जान सकें। हमारे लिए अतिथि देवो भव: सिर्फ एक स्लोगन नहीं, हम इसकी प्रैक्टिस करते हैं। पधारो की टीम दिल्ली, आगरा, जयपुर, जैसलमेर, पुणे,बेंगलुरु, कोलकाता, मुंबई, शहरों में अपनी सर्विस प्रोवाइड करा रही है।
Ish Jindal
Age: 22
Venture :
www.padhaaro.com
Started: 2012
एडवेंचर का वन स्टॉप
कोई वह नहीं कर पाता है, जो उसका दिल चाहता है, लेकिन अभिषेक और चित्रा डागा के साथ ऐसा कुछ नहीं था। वे इंडिया में एडवेंचर टूरिच्म का वन स्टॉप प्लेटफॉर्म क्रिएट करना चाहते थे। इस तरह साल 2009 में दोनों ने थ्रिलोफीलिया डॉट कॉम स्टार्ट किया। इसके बाद आउटडोर एक्सपर्ट के तौर पर अरूण इससे जुडे क्योंकि उन्हें पूरा कॉन्सेप्ट बहुत पसंद आया था। 2012 में कंपनी को नेक्स्ट लेवल पर ले जाने के लिए कैप्टन सुजॉय और सलील थ्रिलोफीलिया के साथ अटैच हुए। ये सभी डिफरेंट बैकग्राउंड से थे, मगर एक कॉमन पैशन था- ट्रैवलिंग।
ट्रैवल एजेंट्स का चक्कर
थ्रिलोफिलिया के को-फाउंडर अभिषेक डागा कहते हैं, मैं और चित्रा बेंगलुरु की मल्टीनेशनल कंपनीज में काम करते थे। उसी दौरान महसूस किया कि मार्केट में एक बडा गैप था। एक बार डेस्टिनेशन पर पहुंच गए तो ज्यादातर समय वेंडर पर ही डिपेंडेंट रहना पडता है। ट्रैवल एजेंट्स के चक्कर में पडकर एडवेंचर का मजा भी किरकिरा हो जाता है। हमें यहां एक बिजनेस अपॉर्च्युनिटी नजर आई। हमने पूरा इंडिया ट्रैवल किया और वहां के बेस्ट लोकल सर्विस प्रोवाइडर्स का पता लगाया। इसके बाद वैसे लोग साथ जुडते गए, जो कुछ डिफरेंट करना चाहते थे। जिन्हें वीकेंड हाइक्स, वाइल्डलाइफ सफारी, बाइकिंग ट्रिप्स, पैरा ग्लाइडिंग जैसे एडवेंचर स्पोर्ट्स का पैशन था।
ट्रिप टु ऑफबीट प्लेसेज
थ्रिलोफीलिया ट्रैवलर्स को ऑफबीट एक्सपीरियंस कराता है, जो किसी दूसरे ऑनलाइन पोर्टल पर अवेलेबल नहीं है। फिर चाहे वह जंगल सर्वाइवल आउटडोर कैंप हो, जंगल में सात दिनों की हॉर्स सफारी या सी कयाकिंग एक्सपीडिशन हो, ऐसी तमाम एडवेंचर एक्टिविटीज, जिन्हें भी अट्रैक्ट करती है, वे थ्रिलोफीलिया से फौरन कॉन्टैक्ट करते हैं। अभिषेक के अनुसार, आज बहुत से कॉरपोरेट हाउसेज इस तरह के ट्रैवल एक्सपीरियंसेज के लिए उनसे कॉन्टैक्ट कर रहे हैं। जो लोग अनएक्सप्लोर्ड लोकेशंस पर जाना चाहते हैं, अपने एक्सपीरियंस शेयर करना चाहते हैं या एडवेंचर्स ट्रैवेलॉग्स पढना चाहते हैं, उन सबके आंसर्स थ्रिलोफिलिया के पास हैं। अभिषेक ने बताया कि 40 हजार से ज्यादा कस्टमर्स को उनकी सर्विस से खुशी मिली है। आज थ्रिलोफीलिया में 30 एम्प्लॉइज हैं। एक फुलफ्लेच्ड आउटडोर टीम है, जो ट्रैवल करती है और लोकल एक्सपीरियंसेज शेयर करती है।
इनवेस्टमेंट वॉज चैलेंज
अभिषेक कहते हैं, 2011 तक उनके पास किसी तरह की फंडिंग नहीं थी, लेकिन इसी साल एक एनआरआई महेंद्र मेहता ने कंपनी में पहला इनवेस्टमेंट किया। इस तरह बेंगलुरु के वन बीएचके फ्लैट से शुरू हुआ ट्रैवल पोर्टल का बिजनेस सात महीने के अंदर ही पॉश लोकैलिटी के एक कमर्शियल ऑफिस में शिफ्ट हो गया। इस समय कंपनी के सामने सबसे बडा चैलेंज लोकल सप्लायर ढूंढना है, जो क्वॉॅलिटी को मेनटेन कर सके। साथ ही वेंडर साइड से भी थोडा चैलेंज है जिसे दूर करने की कोशिश हो रही है।
बेस्ट एडवेंचर कंपनी
आज अगर थ्रिलोफीलिया एक महीने में 2200 कस्टमर्स को डील कर रही है, उन्हें टॉप नॉच सर्विस दे रही है, तो उसके पीछे इसी टीम का हार्ड वर्क है।
इनके पास 500 से ज्यादा कॉरपोरेट क्लाइंट्स हैं। अभिषेक ने बताया कि वे थ्रिलोफीलिया को नेक्स्ट लेवल पर ले जाना चाहते हैं। उसे इंडिया की बेस्ट एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनी बनाना चाहते हैं, जिससे कि कोई भी यूजर बिना टाइम वेस्ट किए ट्रिप प्लान कर सके, उसकी बुकिंग कर सके। वे कहते हैं, आज थ्रिलोफीलिया कैश पॉजिटिव है। मुमकिन है कि आने वाले दिनों में कंपनी में कुछ और बडे इनवेस्टमेंट्स हों। कंपनी का फर्म बिलीफ है कि टफ पीपल लास्ट, टफ टाइम्स डोंट।
Abhishek Daga
Age: 29
Education
Graduation from IIT, BHU. Worked with Multinational Companies.
एक्सप्लोर अनएक्सप्लोर्ड
किसी अनएक्सप्लोर्ड लोकेशन को डिस्कवर करना चाहते हैं, लेकिन बहुत सारी साइट्स सर्च करने के बाद भी पूरी इंफॉर्मेशन नहीं मिलती है। फिर सोचते हैं, काश कोई ऐसा होता जो सारी जानकारी दे देता। क्यों नहीं? कुछ इन्हीं सब क्वैश्चंस का सॉल्यूशन देता है जोगुरु डॉट कॉम। यह एक ऑनलाइन सोशल ट्रैवल नेटवर्क है, जिसकी हेल्प से कोई भी शख्स फेलो, लाइक माइंडेड ट्रैवलर्स से मिल सकता है और इटिनेररी कस्टम कर सकता है, अपनी गाइड बुक बना सकता है और अपने डेस्टिनेशन पर जा सकता है।
गाइडिंग द ट्रैवलर्स
कंपनी के फाउंडर और सीईओ प्रवीण कुमार को नए प्लेसेज एक्सप्लोर करना, बिना प्लानिंग किए बैकपैक कर घूमने निकल जाना पसंद था। ऐसे ही एक बार इन्होंने बाइक से लेह जाने का ट्रिप प्लान किया। प्रवीण ने बताया कि उन्हें महीने भर से ज्यादा लगा इंटरनेट पर सर्च कर यह पता करने में कि लेह कैसे जाएंगे, बाइक के कौन से स्पेयर पार्ट्स ले जाना ठीक होगा, फ्यूल कहां रिचार्ज कराएंगे, खाएंगे और रहेंगे कहां? तभी उन्हें समझ में आया कि लोग सेल्फ वैकेशन प्लान करने में अपना कितना टाइम इंटरनेट पर वेस्ट कर देते हैं। यही सोचकर प्रवीण को जोगुरु डॉट कॉम क्रिएट करने का आइडिया आया। उन्होंने एचसीएल में काम कर रहे अपने कलीग्स साकेत और कार्तिक से इसे शेयर किया। सबको कॉन्सेप्ट क्लिक कर गया और आखिरकार 2012 में जोगुरु ट्रैवल पोर्टल लॉन्च हो गया। प्रवीण कहते हैं कि गुडगांव के एमडीटी से एमबीए करने और फिर तोशिबा, सीईएटी टायर्स जैसी कंपनियों में जॉब करने वाले साकेत और आईआईएम इंदौर से एमबीए करने वाले कार्तिक साथ आ गए।
प्लान पर्सनल इटिनेररी
जब आप इसकी वेबसाइट पर जाएंगे, तो कई तरह के फूड ऑप्शंस, ईटिंग आउट्स, टूरिस्ट अट्रैक्शंस के बारे में रिव्यू पढने का मौका मिलेगा। इससे आप सही ट्रिप प्लान कर सकेंगे। इसकी सबसे बडी स्पेशिएलिटी इसका पर्सनल इटिनेररी प्लानर फीचर है। इसके बारे में प्रवीण ने बताया कि एल्गॉरिदम की मदद से ट्रैवलर अपना रूट चूज कर सकता है। डेस्टिनेशन तक कैसे पहुंचा जा सकता है, कितना टाइम लगेगा, पैदल जाना आसान होगा या किसी वेहिकल से, ऐसी सारी इंफॉर्मेशन मिनटों में मिल जाएगी। जाहिर है, एक ट्रैवलर को पता होगा कि ट्रिप में उसे ब्रेकफास्ट, लंच या डिनर में से किसका इंतजाम रखना होगा। अगर आप भी अपनी पर्सनल इटिनेररी बनाना चाहते हैं, तो वेबसाइट पर दिए गए हिंट्स को फॉलो करके क्रिएट कर सकते हैं। इस तरह जब भी कोई टूरिस्ट प्लेस जाना हो, तो वहां के करीबी ईटिंग आउट्स, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, पार्किंग, ओपनिंग और क्लोजिंग टाइम के बारे में पता कर सकते हैं। किसी से पूछने या बहुत सी वेबसाइट्स को खंगालने की जरूरत नहीं पडेगी।
बिलीव इन योरसेल्फ
स्टीव जॉब्स को अपना इंस्पीरेशन मानने वाले और उन्हीं के मंत्र स्टे हंग्री, बी फूलिश को फॉलो करने वाले प्रवीण और उनकी टीम इंडियन नहीं, बल्कि यूएस और यूरोपियन कंपनीज को अपना कॉम्पिटिटर मानती है और ग्लोबल लेवल पर कंपनी को स्टैब्लिश करना चाहती है। प्रवीण का मानना है कि अगर हम गिव अप नहीं करेंगे, तो सक्सेस एक न एक दिन मिलेगी ही। इसलिए वही करें जिसमें बिलीव करते हों। टीम की कोशिश है कि सोशल मीडिया, पीआर, ट्रैवल ब्लॉग्स की मदद से वे 500 से ज्यादा सिटीज को अपनी इटिनेररी में शामिल करें।
Praveen Kumar
Age: 33
Venture :
www.joguru.com Started: 2012
फील राइट एट होम
ओरावेल डॉट कॉम के फाउंडर और थील फेलोशिप जीतने वाले पहले एशियाई रीतेश अग्रवाल की उम्र महज 19 साल है। वे एक अनोखा कॉन्सेप्ट लेकर टूरिज्म इंडस्ट्री में आए हैं। वे टूरिस्ट को होटल की जगह एक ऐसी जगह ठहराते हैं, जो सिंपल होने के साथ-साथ बजट में आती है और होम स्टे का फील कराती है। जिस तरह से लोग इसके कॉन्सेप्ट से प्रभावित हो रहे हैं, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि ये उन गिने-चुने लोगों में से एक हैं, जिन्होंने इंडियन टूरिज्म सेक्टर को बदलने की शुरुआत की है।
ड्रॉप आउट हैं तो क्या?
रीतेश कॉलेज ड्रॉप आउट हैं। उन्होंने अपने कॉन्सेप्ट में उन लोगों को जोडा है, जिनके घर खाली पडे हैं। ये ऐसे ही घर टूरिस्ट्स को रेंट पर दिलाते हैं। इसकी वेबसाइट पर जाकर शहरों के हिसाब से रूम्स खोज सकते हैं। रेंट की इन्फॉर्मेशन भी वेब पर मिल जाएगी। कई शहरों में ये अपने कॉन्सेप्ट के साथ वर्क कर रहे हैं। वे बताते हैं कि विजिट के दौरान कई बार रुकने की सस्ती और अच्छी जगह को लेकर प्रॉब्लम हुई, तो सोचा क्यों न इसी में कुछ नया करके इस प्रॉब्लम को सॉल्व किया जाए। रीतेश ने इस कॉन्सेप्ट पर जब काम करना शुरू किया, तो उस समय वे और उनका एक साथी ही इसमें शामिल थे। आज अपनी क्वॉलिटी और सर्विस के जरिए ओरावेल टूरिज्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाती जा रही है। उनकी कंपनी में आज 17 सदस्य शामिल हैं।
ARitesh grawal
Age: 19
Venture :
Oravel.com
घर बैठे पाएं प्रसाद
न्यूयॉर्क में रह रहे डॉ. अशोक कई साल से इंडिया आने की प्लानिंग कर रहे थे, ताकि शिरडी में साई बाबा के दर्शन कर सकें, लेकिन हर बार ट्रिप फेल हो जाता। एक दिन इंटरनेट पर कुछ सर्च करते टाइम, उनके सामने ऑनलाइन प्रसाद डॉट कॉम साइट आई। देखते ही मुंह से निकल पडा, व्हॉट एन आइडिया। फिर क्या था, डॉ.अशोक ने पोर्टल को कॉन्टैक्ट किया और पांच से छह दिन में उनके पास शिरडी का प्रसाद पहुंच गया। चौंक गए, लेकिन यह रिएलिटी है। बिट्स पिलानी के इंजीनियरिंग ग्रेजुएट गुंजन मॉल ने फेथ और टेक्नोलॉजी को कम्बाइन कर ऑनलाइन प्रसाद डॉट कॉम बनाया है।
प्रसाद लेना नहींरहा टफ
ऑनलाइन प्रसाद डॉट कॉम के फाउंडर और सीईओ गुंजन मॉल ने बताया कि 2011 के नवरात्र के दौरान वह अपने नेटिव विलेज देशनोक गए हुए थे। वहीं से करणी माता के मंदिर में दर्शन के लिए जाना हुआ। मंदिर में घंटों लाइन में खडे होने के बाद कहीं जाकर दर्शन हो पाया और वे प्रसाद चढा पाए। गुंजन कहते हैं, ऐसा लगा कि जिस तरह से रिलीजन में लोगों का फेथ बढ रहा है, उस हिसाब से मंदिर एडमिनिस्ट्रेशन श्रद्धालुओं की भीड को कंट्रोल नहीं कर पा रहा है। नतीजतन दर्शन करना और प्रसाद लेना दिनोंदिन चैलेंजिंग होता जा रहा है। तभी मैंने डिसाइड किया कि एक ऐसा पोर्टल होना चाहिए, जो इस प्रॉब्लम को सॉल्व कर सके। मैंने लोगों से बात की। सबको कॉन्सेप्ट पसंद आया और मैंने जनवरी 2012 में वेबसाइट लॉन्च कर दी।
ट्रस्ट डेवलपमेंट था चैलेंज
गुंजन उस समय बेन एंड कंपनी में सीनियर कंसलटेंट के तौर पर काम कर रहे थे। अच्छी सैलरी थी, तो उसे ही इस वेंचर में इनवेस्ट किया, लेकिन फिर कंपनी से रिजाइन कर फुलफ्लेच्ड इसमें लग गया। पहला प्रसाद झुंझूनू के रानी सती मंदिर में चढाया गया और फिर उसे कुछ कस्टमर्स को डिलीवर किया गया। शुरू में लोगों को प्रसाद की ऑथेंटिसिटी पर विश्वास नहीं हो पा रहा था, लेकिन जब फेसबुक पेज पर मंदिर और प्रसाद की फोटो पब्लिश की गई, तो लोग बिलीव करने लगे।
पूजा-हवन भी हुआ इजी
आज इंडिया के 50 से ज्यादा बडे मंदिरों के प्रसाद ऑनलाइन प्रसाद डॉट कॉम के जरिए मंगाए जा सकते हैं। आम दिनों के अलावा उत्सव स्पेशल प्रसाद भी घर बैठे हासिल किए जा सकते हैं, यानी मंदिरों में धक्के खाने की जरूरत नहीं पडेगी। अगर जाने में असमर्थ हों या टाइम न हो, फिर भी मां वैष्णो देवी, झझूनूु माता जैसे कई और मंदिरों का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
ऑनलाइन प्रसाद डॉट कॉम की कुछ और स्पेशिएलिटीज भी हैं। अगर किसी को अपने पूर्वज का श्राद्ध करवाना हो, ब्राह्मणों को भोज करवाना हो या किसी मंदिर में चढावा चढाना हो तो सीधे वेबसाइट से कंसल्ट करें। आपका काम हो जाएगा। वहीं, अगर किसी को रुद्राक्ष पहनना हो, लेकिन समझ नहीं पा रहे कि कहां से खरीदें तो इस पोर्टल से कॉन्टैक्ट कर सकते हैं। यहां हर मायने में सर्टिफाइड रुद्राक्ष आपको मिल जाएंगे। गुंजन कहते हैं कि अप्रैल 2013 से उन्होंने ये पैकेजेज देने शुरू किए और आज इसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। फेसबुक पेज पर इसके फैन फॉलोअर्स की संख्या बढती ही जा रही है क्योंकि लोग घर बैठे ही ईश्वर का आशीर्वाद हासिल करके ले रहे। प्रसाद पा ले रहे हैं।
अजमेर शरीफ होगा ऑनलाइन
गुंजन कहते हैं कि उनकी टीम में 11 फुलटाइम एम्प्लाइज हैं और 40-50 पार्ट टाइमर्स हैं। ये लोग कस्टमर की डिमांड पर मंदिर में प्रसाद चढाते हैं और फिर उन्हें घर पर डिलीवर किया जाता है। अगर कस्टमर्स की बात करें, तो इंडिया के अलावा यूएस और सिंगापुर से लोग प्रसाद मंगाते हैं। इनमें एनआरआई की संख्या अच्छी-खासी होती है। अपने फ्यूचर प्लांस के बारे में वे बताते हैं कि इंडिया के बाकी मंदिरों के प्रसाद भी श्रद्धालुओं को पहुंचाना चाहते हैं। इसके अलावा, वे अजमेर शरीफ से भी लोगों को ऑनलाइन जोडने की कोशिश में हैं। यानी गुंजन हर फेथ के लोगों को साथ लेकर चलने में बिलीव करते हैं।
Goonjan Mall
Age: 25
Education
Graduation from BITS Pilani.Worked with Bain And Company.
वूमन नॉट अलोन
आज हर जगह महिलाओं के लिए अलग इंतजाम होते हैं, चाहे वह बस हो, मेट्रो हो, एजुकेशन हो, जॉब हो या कुछ और, लेकिन क्या आपको लगता है कि महिलाओं के लिए अलग टूरिज्म की भी व्यवस्था हो तो कितना अच्छा हो ! द्दह्रञ्जद्द यानी द्दद्बह्मद्यह्य श्रठ्ठ ह्लद्धद्ग द्दश्र एक ऐसा पोर्टल है जो केवल वूमन ट्रैवल क्लब है, जो उन्हें नए और एक्जोटिक डेस्टिनेशन, जैसे- लद्दाख, नागालैंड, मिस्र, स्पेन, अंटार्कटिका की सैर कराता है, बेहद अफोर्डेबल खर्च में और ये सब मुमकिन बनाया है क्लब की फाउंडर पिया बोस ने।
ब्रेकफ्री ट्रैवल फॉर वूमन
पिया बोस बताती हैं, 2008 की बात है, मैंने जॉब छोड दी और निकल पडी माउंट एवरेस्ट की यात्रा पर। फिर मुझे ख्याल आया कि ये काम केवल पैसे कमाने के लिए करना बडे शर्म की बात होगी। इसलिए मैंने कुछ ऐसा करने की ठानी, जिससे सोसायटी का भला हो। अकेले घूमना कुछ अजीब-सा लगने लगा, लेकिन किसी लडके के साथ जाना उन्हें गंवारा नहीं था। यहां मत जाओ, ये मत करो, वो मत करो, ऐसे कपडे मत पहनो, यहां मत घूमो, इस तरह की टोका-टाकी से वो बहुत ऊब चुकी थीं। जब उन्होंने कुछ लेडीज से बात की, तो उनके साथ भी ऐसा ही था। वे भी पूरी दुनिया घूमना चाहती थीं, लेकिन पुरुषों के साथ नहीं। बस फिर क्या था, प्रिया ने एक क्लब ही बना लिया ऐसी लेडीज का, जो घुमक्कड थीं, लाइफ को एन्ज्वॉय करना चाहती थीं। इस तरह आज उनके हस्बेंड साथ हों न हों, वे बिजनेस टूर पर हों, जॉब में बिजी हों, इन्हें कोई फर्क नहीं पडता। वे अपने क्लब मेंबर्स के साथ बिंदास निकल पडती हैं वर्ल्ड टूर पर।
मनी नहीं, स्ट्रांग विल चाहिए
पिया की फैमिली और फ्रेंड्स ने उन्हें कई बार जॉब न छोडने के लिए समझाया क्योंकि वे 70,000 रुपये हर मंथ अर्न करती थी, जो एक अच्छी सैलरी कही जाती है। सब इस बात से परेशान थे कि वे ऐसी फील्ड में एंट्री रही हैं, जहां अभी तक कोई इनवेस्टमेंट नहीं हुआ है, लेकिन पिया बोस यही कहती हैं, किसी भी बिजनेस को शुरू करने के लिए मनी जरूरी नहीं है, ज्यादा जरूरी है, स्ट्रांग विल और पैशन। इसके बाद पिया ने पीछे मुडकर नहीं देखा। साल 2008 से शुरू किए उनके ट्रैवल क्लब के मेंबर्स की संख्या लगातार बढ रही है। हर महीने कम से कम एक टूर तो प्लान हो ही जाता है। ज्यादातर ट्रिप्स एब्रॉड के होते हैं। इस महीने की ट्रिप जॉर्डन की है। उनका क्लब डेड सी के ट्रिप पर गया है और आगे जनवरी में अंटार्कटिका जाने का प्लान है। हर ट्रिप पर आने वाला खर्च डिस्टेंस, डेस्टिनेशन और ड्यूरेशन के बेस पर कम या ज्यादा होता है।
Piya Bose
Age: 31
Education
B.Sc., LL.B.
National University of Juridical Sciences, Kolkata
फ्रेंड्स इन न्यू सिटी
इंटरनेट पर ट्रैवल से जुडी ढेर सारी वेबसाइट्स हैं, लेकिन क्या कोई ऐसी वेबसाइट है, जिससे आप जुडकर अपना शहर दूसरों को घुमा सकते हैं और अपनी फेवरेट सिटी आप वैसे ही घूम सकते हैं जैसे आपके दोस्त का शहर हो, दुनिया के हर शहर में आपका वेलकम करने वाला कोई न कोई हो। शायद न मिले, इस लिहाज से trabblr एक यूनीक प्लेटफॉर्म है, जहां लोग हर रोज नए-नए लोगों से मिल सकते हैं, नई-नई जगह घूम सकते हैं। यही नहीं, इसके जरिए छोटे-छोटे इवेंट्स भी कराते रहते हैं, जिससे लोग छोटे-छोटे ग्रुप्स में ऑर्गेनाइज हो जाते हैं। इसके मेंबर अपनी सिटी में trabblr की मदद से इवेंट ऑर्गेनाइज करते हैं, जिसमें बाकी कम्युनिटी को बुलाते हैं।
यूरोप टूर से आइडिया
Trabblr के दो को-फाउंडर हैं, एक आशीष मेहरा और दूसरे हर्ष कुंभानी। 11वीं क्लास से ही दोनों की गहरी दोस्ती है। हर्ष अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से अप्लाइड इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट में डिग्री लेने के बाद चार साल तक रियल एस्टेट और इनवेस्टमेंट मार्केट में काम करते रहे, लेकिन आखिर हर्ष का मन इन सब में नहींलगा और वे निकल पडे यूरोप टूर पर।
असली मजा लोगों के बीच
यूरोप टूर के दौरान उन्हें यह फील हुआ कि ट्रैवलिंग का असली मजा कहीं रेस्टोरेंट में बैठकर खाने-पीने में नहीं, बल्कि वहां के सराउंडिंग्स में घुल-मिलकर लोगों से बातचीत करने, उन्हें जानने-समझने में है। ये किसी गाइडबुक के पन्नों में नहीं मिल सकता, लेकिन सवाल ये था कि आप ऐसे लोगों तक पहुंचे कैसे, जो खुद आकर आपको अपने शहर के बारे में बताएं। आपके साथ घूमे-फिरें और कंपनी दें।
ट्रैवल की सोशल नेटवर्किग
इंटरनेट पर सर्च करने पर भी हर्ष को ऐसी एक भी वेबसाइट नहीं मिली, जो इस तरह की फैसिलिटी देती हो। इसके बाद हर्ष ने आशीष मेहरा से इस पर बात की और trabblr बनाने का फैसला किया। trabblr के जरिए वे पूरी दुनिया के लोगों को एक प्लेटफॉर्म पर ले आते हैं और इस तरह लोग एक-दूसरे को अपना शहर घुमाते हैं और खूब मजे करते हैं।
Ashish Mehra
Age: 29
Venture :
trabblr.com
Started: 2010
Education
M.Sc. in Advance Computing King’s College, London
लिमोजीन में हो जाए पार्टी
अपना वीकेंड कैसे मनाना पसंद करेंगे ? टीवी पर बोरिंग मूवीज देखकर, मॉल में विंडो शॉपिंग करके या फिर लांग ड्राइव पर जाकर? इन सबसे आप बोर हो गए होंगे। ऐसे में अगर कोई कहे कि चलो इस वीकेंड लिमोजिन में फ्रेंड्स के साथ शानदार पार्टी करते हैं, तो कैसा लगेगा? यकीनन आप झट से तैयार हो जाएंगे। वहीं अगर कोई आपके सामने ये पेशकश करे कि इस वीकेंड अपनी फैमिली के साथ आसमान की सैर करना चाहेंगे, मर्जी आपकी है, बैलून में बैठिए या स्काई डाइविंग करिए तो आप क्या कहेंगे, शायद यह सब आपको सपना लग रहा हो या ये सोच रहे होंगे कि महंगा होगा, तो हम आपको बता दें कि ऐसा कुछ नहीं है। ये आपके बजट में है और अपने घर के आस-पास ही लुत्फ उठा सकते हैं।
मीट द हीरो
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा प्लान आखिर किसके दिमाग में आया तो चलिए हम आपको मिलवाते हैं टूरिज्म की दुनिया के नए हीरो संदीप सिंह से, जिन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर बनाया iexperience.com। चंडीगढ के रहने वाले संदीप सिंह ने आईआईटी रुडकी से बीटेक किया है। इसके अलावा आईआईएम बेंगलुरु से एमबीए भी किया है। टाटा कंपनी में जॉब कर रहे थे, लेकिन कोई बात थी जो उन्हें कचोटती थी, लगता था, कुछ कर यारा, कुछ कर और जब उन्होंने किया तो आज पूरी दुनिया उसका लुत्फ उठा रही है।
कुछ करने का जज्बा
संदीप सिंह बताते हैं कि मैं जब आईआईटी रुडकी में था, तब से ही काफी ट्रैवल करता था। पूरा उत्तराखंड, शिमला घूमा, बेंगलुरु में था तो बेंगलुरु के साथ-साथ मुंबई घूमा। फिर जॉब करने लगा। मैंने देखा, वीकेंड के दिन ऑप्शन क्या होते हैं, फैमिली के साथ मूवी देख लो, मॉल्स में चले जाओ, अब हर हफ्ते तो अच्छी मूवी आती नहीं। मन नहीं लगता था, फिर दिल ने कहा कि कुछ करो यार कुछ करो। जब मैंने रिसर्च की तो मुझे दिखा कि बहुत सारे ऑप्शन्स हैं अपने सिटी के अराउंड ही। फिर क्या था मैंने दिसंबर में कर दी इस पोर्टल की शुरुआत।
टूरिज्म के साथ रोमांच
अगर आप मनाली जा रहे हों तो वहां आप क्या कर सकते हैं। आईएक्सपीरियंस के फाउंडर संदीप सिंह कहते हैं, हमने ये पोर्टल शुरू किया पिछले साल दिसंबर में। एक सी-लॉज नाम की कंपनी से हमें फंडिंग मिली। शुरू में हम दिसंबर जनवरी तक गुडगांव के आस-पास ही काम कर रहे थे, फिर हमने अपना दायरा बढाया। हमने धीरे-धीरे पूरा नॉर्थ इंडिया कवर कर लिया। टेक्नॉलॉजी का बैकग्राउंड लोगों को टेक्निकल एक्सपीरियंसेज से जोडने में बहुत काम आया। अब जैसे गूगल में आप मनाली डालते हैं, तो आपके पास इतने सारे ऑप्शन खुल जाएंगे कि आप कंफ्यूज्ड हो जाएंगे। हम वो ऑप्शन्स शॉर्टलिस्ट कर देते हैं। हम आपको बेस्ट ऑप्शन सलेक्ट करके दे देते हैं। हम बुकिंग भी कराते हैं। मान लिया, आपने जाने के लिए कोई डेस्टिनेशन चुना है लेकिन वहां जाएं कैसे? टिकट कैसे बुक करें, ऐसे तमाम तरह की परेशानियां आती हैं, वो सारी प्रॉब्लम्स हम सॉल्व कर देते हैं।
शानदार वीकेंड प्लान
आपको वीकेंड के दिन सुबह-सुबह स्काई डाइविंग करनी हो या बैलून में बैठकर आसमान में उडते पंछियों से बातें करनी हो या दिनभर हार्ले डेविडसन पर बैठकर दिल्ली की सडकों की सैर करनी हो, शाम को लिमोजिन में दोस्तों के साथ पार्टी करना हो और रात को आराम से पेड पर सो जाना हो, ऐसा वीकेंड मनाना चाहते हैं, तो बस इंटरनेट पर क्लिक करने की देर है।
Sandeep Singh
Age: 28
Venture :
iexperience.com
Started: 2012
ट्रैवल विद Tushky
बोरिंग और बार-बार एक ही जैसा वीकेंड मना-मना कर पक गए हैं, तो Tushky बेस्ट ऑप्शन है। यह यूजर बेस्ड ट्रैवल बिजनेस है, बहुत कुछ वैसे ही जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स करती हैं। एक ऐसा प्लेटफॉर्म, जिस पर लोग अपने आस-पास के इवेंट्स को शेयर कर सकते हैं।
नेटवर्रि्कग से ट्रैवल बिजनेस
ये साइट बहुत कुछ वैसे ही काम करती है जैसे फेसबुक या दूसरी सोशल नेटवर्रि्कग साइट्स। एक बार वेबसाइट क्रिएट कर दिया, फिर उसे यूजर ही अपडेट करते रहते हैं। जिन लोगों को अपने लोकेलिटी में कोई एक्टिविटी करानी होती है, वो इस साइट पर उसकी जानकारी डाल देते हैं। जो लोग इंट्रेस्टेड होते हैं, ऐसी एक्टिविटी और लोकेलिटी में वे उस मेंबर से कॉन्टैक्ट कर लेते हैं।
रॉकेट साइंटिस्ट का ट्रैवल फंडा
खुद को अक्सर रॉकेट साइंटिस्ट बताने वाले तलविंदर सिंह कहते हैं, 2008 की दिसंबर की रात थी। मैंने पांच लोगों को साथ लिया, एक ग्रुप बनाया और खूब एंज्वॉय किया, लेकिन हमें पुलिस ने पकड लिया। तब नया साल हमने पुलिस चौकी में मनाया था। ऐसे ही मस्ती करते-करते एक दिन टुश्की का आइडिया आ गया।
ऐसी आजादी और कहां?
अमिताभ बच्चन को अपना रोल मॉडल मानने वाले टुश्की डॉट कॉम के फाउंडर तलविंदर कहते हैं कि फ्रीडम इसी में है कि जो आप करना चाहें, वो कर सकें, इसलिए ज्यादा सोचिए नहीं, जो आप करना चाहते हैं बस शुरू कर दीजिए।
तलविंदर बताते हैं कि कॉलेज के दिनों से ही वे अलग तरह के क्लब बनाया करते थे, कभी डांस क्लब बना लिया, कभी ट्रैवल क्लब। वही शौक धीरे-धीरे पैशन में डेवलप होता गया और फिर उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की बजाय ट्रैवल को ही अपना बिजनेस बना लिया।
वैल्यू वाला बिजनेस करें
बिजनेस करना किसी बिजनेस स्कूल में नहीं सिखाया जा सकता। खुद सीखना होगा। तलविंदर का मानना है कि कोई भी बिजनेस तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वह पैसों की बजाय वैल्यूज के लिए किया।
हिपहॉप Poshvine
जरा सोचिए, आपका मन कहीं घूमने जाने का है, तो आपके पास क्या-क्या ऑप्शन्स हैं ? आप इन ऑप्शन्स के बारे में कैसे सर्च करते हैं? अगर कोई ऐसी वेबसाइट मिल जाए जहां आपकी हर पसंद के मुताबिक टूरिज्म डेस्टीनेशन हो, अगर खाने के शौकीन हों, तो हर तरह के रेस्टोरेंट अवलेबल हों, अगर ऐतिहासिक इमारतों में दिलचस्पी रखते हैं, तो हर तरह की ऐतिहासिक इमारत का ब्यौरा हो और अगर डांस पार्टी जाना चाहते हों, तो वो भी अवेलेबल हो, और कंप्यूटर पर घर बैठे ही न केवल इन तमाम ऑप्शन्स के बारे में रिसर्च कर लें, बल्कि जो पसंद आए उसका टिकट भी बुक कर लें।
रिसर्च करबनाया पॉशवाइन
पॉशवाइन की फाउंडर गरिमा सलीजा बताती हैं, पॉशवाइन एक्चुअली हमारे पर्सनल एक्सपीरियंसेज से ही बाहर आया है। हम कई सारे शहरों में रहे हैं। हर शहर में हमें खाने-पीने और रहने के लिए बहुत स्ट्रगल करना पडा। इस स्ट्रगल ने हमें कुछ नया करने की प्रेरणा दी। फ्लाइट्स और एकोमोडेशन बुक करना बहुत आसान लगता था, लेकिन हमें जब हकीकत का पता चला तो यह टाइम कंज्यूमिंग और टेढा काम था। हमने दोस्तों से बात की, गूगल पर खूब सर्च किया। Lonely planet और conde nast के जरिए सर्च किया। राइडिंग भी की, इतिहासकारों के साथ घूमे भी। कुछ इस तरह दर-दर घूमने और भटकने और रिसर्च करने के बाद जन्म हुआ poshvine का।
इनोवेटिव सोच का जादू
गरिमा बताती हैं कि हमने कुछ रेस्टोरेंट्स और कुछ एक्टिविटीज को आइडेंटिफाई किया। उनमें से करीब 80 परसेंट ऐसे थे, जिनकी अपनी वेबसाइट भी नहीं थी। हमारे पास तो ऐसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन्स की भरमार है, जहां हर कोई जाना चाहेगा। पॉशवाइन टूरिस्ट्स को डेस्टिनेशन की जानकारी और ऑनलाइन ट्रांजैक्शन की आसान सुविधा मुहैया करा कर उन्हें उनके टारगेट ऑडियंस तक पहुंचा देती है।
अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव और शरद अग्निहोत्री