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पहाड़ की रक्षा से निर्मल होगी गंगा

साहिबगंज : राजमहल के युवक संत कुमार घोष धर्म जागरण मंच एवं भाजपा के पर्यटन प्रकोष्ठ से जुड

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Aug 2017 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 15 Aug 2017 03:00 AM (IST)
पहाड़ की रक्षा से निर्मल होगी गंगा

साहिबगंज : राजमहल के युवक संत कुमार घोष धर्म जागरण मंच एवं भाजपा के पर्यटन प्रकोष्ठ से जुड़े हैं। इलाके में आरटीआइ कार्यकर्ता के रूप में भी इनकी पहचान है। वे पहाड़ बचाकर गंगा नदी को गाद से बचाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि गंगा की राष्ट्रीय स्तर पहचान बरकरार रह सके। संत बताते हैं कि एक बार वह अपने मामा के घर ट्रेन से कहलगांव जा रहे थे, ट्रेन खुलते ही एक तरफ मां गंगा का दर्शन पाकर उन्हें सुखद अनुभूति हुई, वहीं उजाड़ते पहाड़ को देखकर उन्होंने संकल्प लिया कि इसे बचाने के लिए वे प्रयास शुरू करेंगे। वर्ष 2013 से ही वे राजमहल की पहाड़ी को उजड़ने से बचाने के लिए प्रयासरत हैं। ताकि पहाड़ का धूलकण बरसात में बारिश के पानी के साथ गंगा में जाकर गाद न बन सके। ट्रेन में सफर के दौरान जब कुछ यात्रियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि यदि इसी रफ्तार से हरियाली से लकदक पहाड़ों का चीरहरण होता रहा तो 10 साल में पहाड़ समाप्त हो जाएंगे।

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पहाड़ों को बचाने की मुहिम

संत ने पहाड़ों को बचाने के लिए पहली बार साहिबगंज के तत्कालीन उपायुक्त ए मुत्थू कुमार व राज्यपाल डॉ. सैयद अहमद को 28 फरवरी 2013 को पत्र लिखा। इसके साथ दैनिक जागरण में छपी पहाड़ को उजाड़ करने से संबंधित खबरों की करतन को भी संलग्न किया। इससे बाद 29 अप्रैल 2013 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी पहाड़ बचाने एवं गंगा की संरक्षा के लिए पत्र भेजा। जब 21 अगस्त 2013 को आरटीआइ डाली तो खनन विभाग साहिबगंज की ओर से जवाब देने केएवज मे 60 हजार रुपये मांगे गए, साथ ही जवाब नहीं मांगने के लिए धमकी भी मिली। लेकिन, इन्होंने हार नहीं मानी और खनन विभाग रांची से पत्राचार किया है। जब साल भर इंतजार करने के बाद भी प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं की गई तो एक बार फिर 26 फरवरी 2014 को राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को पत्र भेजा। इसके बाद पत्र से संबंधित आरटीआइ भी डाली, लेकिन उसका आज तक जवाब नहीं मिला।

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गंगा की रक्षा का संकल्प

राजमहल की पहाड़ी की रक्षा से ही गंगा को निर्मल बनाया जा सकता है। पहाड़ी झरने की रक्षा कर पशु-पक्षियों को भी भूखे-प्यासे मरने से बचाया जा सकता है। दरअसल राजमहल की पहाड़ियों के पश्चिम में कुछ ऐसी घाटियां है जो स्वर्ग की खुबसूरती एवं सतरंगी छटा बिखेरती है। संत कुमार साथियों के साथ राजमहल के गंगा तट पर खड़े होकर यह संकल्प लेते हैं कि पहाड़ की रक्षा कर वे गंगा की पहचान कायम रखने का प्रयास करेंगे।

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खत्म हो रहा जड़ी-बूटियों का भंडार

राजमहल की पहाड़ियों पर अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियां उपलब्ध हैं, जिसका मानव जीवन से सीधा जुड़ाव है। जब पहाड़ों पर हरियाली थी, तब आदिम जनजाति की सभ्यता एवं संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हो रही थी। पहाड़ नष्ट होने से अब यह सब समाप्त होने के कगार पर है। पहाड़ उजड़ रहे हैं, जनप्रतिनिधि प्रशासन के साथ मिलकर इसपर चुप्पी साधे हैं। पत्थर खोदने की धुन में वनों की आवाज भी गुम हो रही है।

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कोट-

गंगा नदी की रक्षा के लिए पहाड़ों का संरक्षण जरूरी है। गंगा का अस्तित्व पहाड़ों से जुड़ा है। राजमहल की पहाड़ियों की रक्षा करके हम गंगा को गाद से मुक्ति दिला सकते हैं। इसके लिए सबको चिंता करनी होगी। सामूहिक प्रयास से ही गंगा निर्मल होगी।

संत कुमार घोष, सामाजिक कार्यकर्ता, राजमहल


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