हॉर्स ट्रेडिंग का गढ़ बनता जा रहा झारखंड
पिछली बार राज्यसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने एक ऑडियो टेप जारी कर सनसनी फैला दी।
रांची, आशीष झा। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से बार-बार निर्दलीय विधायकों और छोटे दलों का सत्ता में शामिल होना झारखंड के विकास में बाधक तो बना ही, इसकी छवि एक ऐसे प्रदेश की हो गई जहां से पूंजीपति आसानी से राज्यसभा तक का सफर कर सकते हैं। विधायकों को पैसे मिलने की बातें प्रमाणित तो नहीं हुईं लेकिन सभी दलों ने एक दूसरे पर आरोप जरूर लगाए।
एक बार फिर झारखंड से दो राज्यसभा सीटों के लिए तीन उम्मीदवार हैं। इनमें से भाजपा को एक सीट मिलनी तय है और बाकी दो उम्मीदवार पूंजीपति व्यवसायी हैं जिन्हें लेकर अभी से कयास लगाए जाने लगे हैं। दो पूंजीपतियों में से एक कांग्रेस तो दूसरे भाजपा के उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के उम्मीदवार जहां पुराने कांग्रेसी हैं वहीं भाजपा के दूसरे उम्मीदवार व्यवसाय जगत से भाजपा के रास्ते राजनीति में पिछले चार-पांच वर्षों से ही सक्रिय हैं।
राज्यसभा की दो सीटों के लिए भाजपा ने दो उम्मीदवार दिए हैं तो संयुक्त विपक्ष ने एक उम्मीदवार। भाजपा की ओर पूर्व विधायक समीर उरांव और व्यवसायी प्रदीप सोनथालिया प्रत्याशी बने हैं। कांग्रेस ने पूर्व राज्यसभा सदस्य धीरज साहू को मैदान में उतारा है जो मजबूत व्यावसायिक घराने से हैं। जीतना दो को ही है तो पैसे के खेल की संभावना दिखने लगी है। इसके पहले भी झारखंड में पैसे पकड़ाने, ऑडियो टेप जारी होने समेत कई मामले ऐसे हैं जो हॉर्स ट्रेडिंग की बात को बढ़ावा देते हैं। सबसे अहम बात यह कि निर्दलीय पूंजीपति उम्मीदवारों का आसानी से जीतना। इस बार भाजपा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के गठबंधन को तोड़कर जीत दर्ज करने का मन बनाया है तो विपक्ष अभी से हॉर्स ट्रेडिंग की बात करने लगा है। नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन तो यहां तक बोल गए कि हॉर्स नहीं एलीफेंट ट्रेडिंग होनेवाला है। रास चुनाव से संबंधित कांड हॉर्स ट्रेडिंग की संभावना को बढ़ाते हैं।
2016 : ऑडियो टेप कांड
पिछली बार राज्यसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने एक ऑडियो टेप जारी कर सनसनी फैला दी। आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ही विधायकों की खरीद-फरोख्त में शामिल थे। बड़कागांव के पूर्व विधायक कांग्रेस योगेंद्र साव से मुख्यमंत्री के एक सहयोगी और एक आइपीएस अधिकारी की बातचीत जारी करते हुए मरांडी ने आरोप लगाया कि सीएम खुद योगेंद्र से बात कर उनकी विधायक पत्नी का वोट भाजपा के लिए मैनेज करना चाह रहे थे।
ऑडियो में कथित रूप से एडीजीपी अनुराग गुप्ता यह कहते सुने जा रहे थे कि सरकार तीन साल तक रहेगी और इस आधार पर विधायक को रघुवर दास के साथ रहने का सुझाव दिया जा रहा था। हालांकि पैसे की बात सामने नहीं आई थी। मामले की जांच अभी जारी है लेकिन भाजपा दोनों सीट जीतने में कामयाब रही। विपक्ष के दो विधायक बीमार पड़ गए, एक को जेल जाना पड़ा और इसी तरह के समीकरण में सत्ताधारी दल भाजपा के दोनों उम्मीदवार बाजी मार गए। एक बार फिर इसी तरह के आंकड़ों पर दोनों दलों ने दांव लगाया है।
2010-2012 : सीबीआइ पड़ी पीछे
2010 और 2012 में कैश लेकर वोट देने के आरोप लगे और प्रमाणित भी हुआ। हालात इतने खराब हुए कि सीबीआइ को विधायकों के पीछे लगना पड़ा। सीबीआइ जांच हुई और 26 विधायकों के यहां छापे पड़े। इसमें कांग्रेस के 7 विधायक, झामुमो के चार, झाविमो के दो, भजपा के तीन, राजद के पांच, आजसू के चार, जदयू के एक और दो निर्दलीय विधायकों के खिलाफ जांच भी चली। मामला अभी भी जारी है।
निर्दलीय उम्मीदवारों का स्वर्ग
राज्यसभा में पहुंचने के लिए झारखंड निर्दल उम्मीदवारों के लिए स्वर्ग बन चुका है। परिमल नथवाणी लगातार दो बार झारखंड से राज्यसभा तक का सफर तय कर चुके हैं। राजद से जुड़े प्रेमचंद गुप्ता भी कम विधायकों के बावजूद झारखंड से राज्यसभा पहुंचे।
एनआरआइ और निर्दलीय प्रत्याशी को भाजपा ने समर्थन करते हुए राज्यसभा पहुंचाने की कोशिश की थी लेकिन पार्टी के अंदर विरोध के कारण किरकिरी हुई तो समर्थन वापस लेकर चुनाव का बहिष्कार किया गया। इसके अलावा भी कई निर्दल उम्मीदवार यहां से चुनाव जीतने की मंशा से भाग्य आजमा चुके हैं। 2012 में निर्दल उम्मीदवार आरके अग्रवाल पर पैसे बांटने का आरोप लगा।
झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की पुत्रवधू सीता सोरेन को डेढ़ करोड़ रुपये दिए जाने की बात सामने आई। इसी प्रकार निर्दलीय उम्मीदवार पवन धूत पर आरोप लगा कि उन्होंने 21 विधायकों को ढाई-ढाई करोड़ रुपये दिए जिसमें झामुमो के 17, जदयू के एक और तीन निदर्लीय विधायक थे।