चारा घोटाले में बिहार के मुख्य सचिव को नोटिस मामले में हाई कोर्ट में चुनौती देगी सीबीआइ
बिहार के मुख्य सचिव सहित सात लोगों को नोटिस मामले में सीबीआइ 15 मार्च से पहले ही हाई कोर्ट में चुनौती देगी।
राज्य ब्यूरो, रांची। दुमका कोषागार से 3.76 करोड़ रुपये की फर्जी निकासी के मामले में बिहार के मुख्य सचिव, पूर्व मुख्य सचिव, पूर्व डीजीपी डीपी ओझा, सीबीआइ के एएसपी सहित सात लोगों को नोटिस मामले में सीबीआइ 15 मार्च से पहले ही हाई कोर्ट में चुनौती देगी। कारण, 15 मार्च को इसी मामले में सीबीआइ कोर्ट में फैसला आना है। सीबीआइ मुख्यालय से सहमति मिलने के बाद सीबीआइ अधिकारी रेस हो गए हैं। सीबीआइ पर उक्त सभी सात लोगों को मदद करने का आरोप है। इसे लेकर सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने नोटिस दिया है। सीबीआइ ने इस नोटिस के विरुद्ध दस्तावेज लगभग तैयार कर लिया है। गुरुवार को भी सीबीआइ के अधिकारी दस्तावेज को एकत्रित करने में जुटे रहे, ताकि वे नोटिस का तर्कसंगत जवाब दे सकें।
इन पर भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का आरोप लगा, अदालत ने भेजा नोटिस
अंजनी कुमार सिंह (मुख्य सचिव, बिहार, दुमका के तत्कालीन डीसी), वीएस दुबे (बिहार व झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव), डीपी ओझा (बिहार के पूर्व डीजीपी), एके झा (सीबीआइ के एएसपी), फूल झा (पीएसी के अधिकारी), दीपेश चांडोक (सप्लायर सह गवाह) व शिव कुमार पटवारी।
अंजनी कुमार सिंह की जांच के बाद ही दर्ज हुई थी प्राथमिकी
अदालत के नोटिस के विरुद्ध सीबीआइ ने जो दावा प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह (दुमका के तत्कालीन डीसी) की जांच के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अदालत ने जो नोटिस भेजा है, उसमें अंजनी कुमार सिंह पर अपने पद का इस्तेमाल नहीं करने व लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है। जबकि, सीबीआइ के दस्तावेज की मानें तो अंजनी कुमार सिंह 1993 में दुमका के डीसी बनने के बाद गड़बड़ी उजागर होने पर एक लाख रुपये से अधिक के बिल का भुगतान बिना उनकी सहमति के रोका था। दूसरे आरोपितों के कारण ट्रेजरी से अवैध निकासी हुई थी, जिसका जांच में खुलासा हुआ था। जांच में सीबीआइ को कोई ऐसा सबूत नहीं मिला था, जिसके आधार पर उन्हें आरोपित किया जाए।