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चारा घोटाला में लालू यादव को अाज सुनाई जाएगी सजा

अदालत ने लालू सहित अन्य अभियुक्तों को 23 दिसंबर, 2017 को दोषी ठहराते हुए सजा के बिंदु पर सुनवाई के लिए तिथि निर्धारित की थी।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 03 Jan 2018 09:45 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jan 2018 10:27 AM (IST)
चारा घोटाला में लालू यादव को अाज सुनाई जाएगी सजा
चारा घोटाला में लालू यादव को अाज सुनाई जाएगी सजा

रांची, जेएनएन। देवघर कोषागार से अवैध निकासी के मामले में सीबीआइ की विशेष अदालत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव सहित 16 दोषियों के सजा के बिंदु पर चार जनवरी को सुनवाई करेगी। इस मामले में आज सुनवाई होनी थी, मगर एक अधिवक्‍ता के निधन के कारण सुनवाई टल गई। कड़ी सुरक्षा के बीच लालू प्रसाद यादव, जगदीश शर्मा और डॉ. आरके राणा सहित अन्‍य आरोपी कोर्ट पहुंचे थे। लालू समर्थकों की भीड़ लगी थी।

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रघुवंश, मनीष, तेजस्‍वी, शिवानंद को कोर्ट का नोटिस, देवघर डीसी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा

अदालत के फैसले पर अनर्गल बयानबाजी को लेकर सीबीआइ कोर्ट ने राजद के वरिष्‍ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह, पूर्व डिप्‍टी सीएम तेजस्‍वी यादव, कांग्रेस नेता मनीष तिवारी और शिवानंद तिवारी के खिलाफ के कंटेंप्‍ट ऑफ कोर्ट का नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि मीडिया में टर टर करने की आदत बन गई है। नेताओं ने मीडिया में बयान और सोशल मीडिया में की थी टिप्‍प्‍णी। वहीं अदालत ने देवघर के तत्‍कालीन डीसी सुखदेव सिंह और सीबीआइ के दो सरकारी गवाह शिवकुमार पटवारी और सैलेश प्रसाद के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। 

अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद सहित अन्य अभियुक्तों को 23 दिसंबर, 2017 को दोषी ठहराते हुए सजा के बिंदु पर सुनवाई के लिए तिथि निर्धारित की थी। लालू फिलहाल रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय जेल में बंद हैं। यह मामला अविभाजित बिहार के देवघर कोषागार से 89.4 लाख रुपये की अवैध निकासी से संबंधित है।

अभियुक्तों में लालू सहित चार राजनीतिक नेता, पशुपालन विभाग के पांच अधिकारी और आठ आपूर्तिकर्ता शामिल हैं। अवैध निकासी पशु चारा, दवा व पशुपालन से जुड़े उपकरण की खरीद और विभिन्न पशुपालन केंद्रों में उसकी आपूर्ति और अन्य मदों में की गई थी। सीबीआइ की जांच में ये सभी व्यय फर्जी पाए गए थे। 

दो मामलों में लालू के खिलाफ प्रोडक्शन वारंट 

चारा घोटाले के दो मामलों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ प्रोडक्शन वारंट जारी करते हुए न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया गया है। इसके लिए उनके अधिवक्ता प्रभात कुमार ने अदालत में आवेदन दाखिल किया था। अधिवक्ता ने चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश एसएस प्रसाद, दुमका कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले में विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह और डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश प्रदीप कुमार की अदालत में आवेदन दाखिल कर लालू को न्यायिक हिरासत में लेने की मांग की थी।

चाईबासा और दुमका मामले में सीबीआइ की अलग-अलग दो विशेष अदालतों ने प्रोडक्शन वारंट जारी करते हुए लालू को चार जनवरी, 2018 को उपस्थित होने का आदेश दिया है। इसके अलावा डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित मामले में दाखिल आवेदन पर सुनवाई लंबित है। मामले में अगली सुनवाई की तिथि पांच जनवरी निर्धारित है।

अगर लालू प्रसाद को अन्य मामलों में भी न्यायिक हिरासत में लिया जाता है और इन मामलों में भी उन्हें सजा होती है तो जेल में रहने की अवधि को बाद में मिलने वाली सजा में कम कर दिया जाएगा।

लालू के पुत्र तेज प्रताप यादव को लीगल नोटिस
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के पुत्र तेज प्रताप यादव को लीगल नोटिस जारी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता वैभव मिश्रा ने तेज प्रताप के ट्वीट को आधार बनाते हुए स्पीड पोस्ट और ई-मेल के माध्यम से उन्हें नोटिस भेजा है। लालू प्रसाद को रांची के सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत से 23 दिसंबर 2017 को दोषी ठहराए जाने के बाद तेज प्रताप द्वारा विभिन्न ट्वीट को आधार बनाते हुए नोटिस जारी किया है और दस दिनों के भीतर सार्वजनिक रूप से जवाब देने को कहा है। साथ ही ट्वीट व अन्य माध्यमों से बयान दिए जाने पर कानूनी कार्रवाई करने की बातें कही है।

वैभव ने कहा है कि अदालत द्वारा फैसला सुनाए जाने के बाद तेज प्रताप ने अपने ट्वीट पर 'ब्राह्मण मुख्यमंत्री निर्दोष और पिछड़ा मुख्यमंत्री दोषी, मेरा भारत महान' 'काश लालू प्रसाद यादव भी लालू प्रसाद मिश्रा होते', मामला एक ही पर मिश्रा को बेल और यादव को जेल कैसी विडंबना है साहब' लिखे जाने को आधार बनाते हुए नोटिस जारी किया है। वैभव ने कहा है कि ट्वीट के माध्यम से उक्त शब्द लिखकर तेज प्रताप ने न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाया है। न्यायपालिका पर धब्बा लगाने की कोशिश की है। न्याय पर विश्र्वास पर सवाल-जवाब किया है। कोर्ट में उन्हें साक्ष्य प्रस्तुत करने का पूरा समय था, उस दौरान साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए और अदालत से उनके खिलाफ फैसला आया तो सवाल खड़ा कर रहे हैं। मनगढ़ंत कहानी बना रहे हैं। जाति की राजनीति करने में लगे हैं। अधिवक्ता ने आइपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का नोटिस किया है।

आइएएस सुखदेव सिंह व बिहार के पूर्व डीजीपी को समन
देवघर कोषागार से अवैध निकासी से संबंधित चारा घोटाला मामले में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने दो अधिकारियों के खिलाफ समन जारी किया है। इसमें देवघर के तत्कालीन उपायुक्त सुखदेव सिंह और बिहार के सेवानिवृत्त डीजीपी सह निगरानी के तत्कालीन डीजी विजिलेंस डीपी ओझा शामिल हैं। दोनों को 23 जनवरी 2018 को अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया गया है। अदालत ने सुखदेव सिंह को मुख्य सचिव के माध्यम से समन तामिला करने और डीपी ओझा को सीबीआइ के डीजी के माध्यम से समन का तामिला कराने का आदेश दिया गया है। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 319 के तहत समन जारी किया गया है। जानकार अधिवक्ताओं के अनुसार सीआरपीसी की धारा 319 के तहत किसी व्यक्ति को आरोपी बनाये जाने संबंधित प्रावधान है।

जगदीश शर्मा को रिम्स भेजने की मांगी अनुमति
चारा घोटाला में दोषी करार दिए जाने के बाद जेल में बंद पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा की हाथ टूटने के संबंध में जेल अधीक्षक ने सीबीआइ के विशेष कोर्ट को जानकारी दी। जेल अधीक्षक ने कोर्ट को सूचित करते हुए उन्हें रिम्स भेजने की अनुमति मांगी। अदालत ने इसपर कोई आदेश पारित नहीं किया है।

लालू से मिलने पहुंचे बिहार के पूर्व मंत्री, नहीं मिली अनुमति
चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिए गए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सह राजद सुप्रीमो लालू यादव से मिलने मंगलवार को बिहार के पूर्व मंत्री सह महेशी के विधायक डॉ. अब्दुल गफूर पहुंचे। उन्होंने जेल प्रशासन को लिखित आवेदन देकर मिलने की अनुमति मांगी। जेल प्रशासन ने जेल मैनुअल का हवाला देकर मिलने की अनुमति नहीं दी।

उन्हें जेल गेट से आधा किलोमीटर पहले लगे बैरिकेडिंग पर ही पुलिसकर्मियों ने रोक दिया। रोकने पर पुलिसकर्मियों से उनकी बहस भी हुई। लेकिन पुलिसकर्मियों ने प्रशासन की अनुमति लेकर प्रवेश करने की बात कही। इसके बाद वे लौट गए। उन्होंने अपने साथ लाए अनार, सेब और संतरा जेल के भीतर भिजवाया।

होती रही खजाने की लूट, देर से जागे हाकिम
पशुपालन घोटाले में अफसरों की शिथिलता की बानगी 1996 में पेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पेश करती है। तत्कालीन दक्षिण बिहार (अब झारखंड) में माफिया ने अपने हिसाब से कोषागार से निकासी में मनमानी की। घोटाले के किंगपिन ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अवैध तरीके से सेवा विस्तार हासिल करने में भी कामयाबी पाई। इसमें से कई ऐसे थे जिनके खिलाफ पुलिस एवं निगरानी विभाग में मामले तक दर्ज थे।

इनका सेवा विस्तार भी मौखिक आदेश पर हुआ। इसके लिए जरूरी कैबिनेट का आदेश तक नहीं लिया गया।सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक एसबी सिन्हा को 31 दिसंबर 1993 को रिटायर होना था। उन्होंने चार दिसंबर 1993 को सेवा विस्तार के लिए पशुपालन विभाग के निदेशक को आवेदन दिया। अभ्यावेदन इस आधार पर अग्रसारित किया गया कि इन्होंने विभिन्न परियोजनाओं में गुणवत्ता एवं प्रगति बरकरार रखी। घोटाले में शामिल नेताओं ने इन्हें लोकहित में सेवा विस्तार के लायक करार दिया। अनुशंसा पर मुख्यमंत्री के स्तर से 30 दिसंबर 1993 से 31 दिसंबर 1994 तक सेवा विस्तार मिला। वित्त विभाग ने उस वक्त इसपर आपत्ति जताई थी और कहा था कि सेवा विस्तार लोकहित में नहीं है। सिन्हा अपने पद पर बिना कैबिनेट के आदेश के बने रहे जो गैर कानूनी था।

उनके मामले में विभागीय कार्यवाही या पुलिस से अनापत्ति प्रमाणपत्र तक प्राप्त नहीं किया गया। डा. जीएन शर्मा और डा. इंद्रभान प्रसाद के मामले में भी यह पाया गया कि इनके खिलाफ राशि के गबन के मामले पुलिस एवं निगरानी विभाग में लंबित थे। डा. जीएन शर्मा के मामले में विदेशी पशु प्रजनन क्षेत्र, पटना में सरकारी निधि के गबन का आरोप लंबित था। इसके बावजूद उन्हें छह माह का सेवा विस्तार दिया गया। इसके लिए मंत्रिपरिषद की अनुमति नहीं ली गई। डा. इंद्रभान प्रसाद के खिलाफ दवाओं एवं उपकरण की खरीद में अनियमितता का आरोप था। मामला निगरानी में दर्ज था लेकिन इसकी अनदेखी करते हुए 24 महीने के लिए तीन बार सेवा विस्तार दिया गया।

मुख्य सचिव के आदेश की अनदेखी

सीएजी की रिपोर्ट में जिक्र है कि बिहार के तत्कालीन मुख्य सचिव ने 18 फरवरी 1994 को पाया कि एक सप्ताह के भीतर कोषागार से 12 करोड़ रुपये तक की निकासी हुई है। इसपर उन्होंने कारण का पता लगाने के लिए दो दिन में नमूना जांच के तौैर पर दो या तीन बड़े कोषागार की जांच का आदेश दिया। यह भी निर्देश दिया कि भारी निकासियों के लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जाए। आश्चर्यजनक तौर पर मुख्य सचिव के स्तर से जारी आदेश की अनदेखी की गई। कोषागार से भारी निकासी का विश्लेषण नहीं किया गया। जांच को टाल दिया गया। इससे तत्कालीन दक्षिण बिहार के जिलों खासकर डोरंडा व रांची कोषागार समेत अन्य कोषागारों से अधिक निकासी हुई।

आरबीआइ से मिला निकासी का ब्यौरा

रिजर्व बैंक आफ इंडिया के मासिक निकासी ब्यौरे से पशुपालन माफियाओं की कारस्तानी का खुलासा हुआ। फरवरी 1994 में कुल 182.52 करोड़ रुपये निकाले गए। इसमें लगभग 25 प्रतिशत यानी 46.06 करोड़ रुपये डोरंडा रांची कोषागार से निकले। सभी कोषागार को मिलाकर निकली राशि का 62 प्रतिशत से ज्यादा पशुपालन विभाग से संबंधित था।

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