चारा घोटाले में मुख्य सचिव राजबाला पर हो कार्रवाईः सरयू राय
चारा घोटाले में मुख्य सचिव का नाम जुड़ने को खाद्य आपूर्ति मंत्री ने सीएम को कड़ा रुख अख्तियार करने का सुझाव दिया है।
राज्य ब्यूरो, रांची। पशुपालन घोटाले में चाईबासा कोषागार से की गई अवैध निकासी के मामले से मुख्य सचिव राजबाला वर्मा का नाम जुड़ने को खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास को कड़ा रुख अख्तियार करने का सुझाव दिया है। मुख्यमंत्री को लिखे गए लंबे-चौड़े पत्र में राय ने कहा है कि वे मुख्य सचिव को इस संदर्भ में जवाब देने का निर्देश दें, ताकि कानून और सुशासन की मर्यादा की रक्षा हो सके।
राय ने पत्र के माध्यम से सीएम को यह भी याद दिलाया कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। कानून का उल्लंघन करने वाला समुचित दंड का भागी होता है, चाहे वह शासकीय व्यवस्था में कितना भी शक्तिशाली और प्रभावशाली पद पर न हो। राय ने सीएम से कहा कि वे मुख्य सचिव को निर्देश दें कि वे पशुपालन घोटाले में चाईबासा ट्रेजरी से हुई कपटपूर्ण निकासी के संदर्भ में समय-समय पर पूछे गए स्पष्टीकरण का शीघ्र जवाब दें।
उन्होंने कहा कि उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने राज्य प्रशासन के सक्षम पदाधिकारियों द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण का तथा इसे बारे में भेजे गए डेढ़ दर्जन से अधिक स्मारपत्रों का समय पर जवाब क्यों नहीं दिया।
राय ने उठाया सवाल
- सीबीआइ प्रतिवेदन के आधार पर अनुशासनिक कार्रवाई चलाने के लिए झारखंड सरकार के विभिन्न मुख्य सचिवों ने 26 अगस्त 2003 से 24 मार्च 2014 के बीच कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के माध्यम से इस मामले में स्पष्टीकरण देने के लिए कम से कम 15 बार राजबाला वर्मा को रिमाइंडर दिया। परंतु आश्चर्य है कि उन्होंने एक भी स्मार पत्र का जवाब नहीं दिया।
- यह जांच का विषय है कि घोटाले के एक चर्चित मामलें में बार-बार स्मारित किए जाने के बावजूद संबंधित अधिकारी ने स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया।
- बार-बार स्मार पत्र देकर स्पष्टीकरण की प्रतीक्षा करते रहने के बदले सक्षम प्राधिकार द्वारा इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई।
सरकार ने राजबाला वर्मा को भेजे 15 रिमाइंडर
पश्चिमी सिंहभूम की तत्कालीन उपायुक्त व राज्य की वर्तमान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा की चारा घोटाले में रही कथित संलिप्तता के मामले में सरकार ने उनसे न सिर्फ जवाब मांगा, बल्कि 15 रिमाइंडर भेजे। उन्होंने एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया। सबसे पहला रिमाइंडर उन्हें 26 अगस्त 2003 को भेजा गया था। इसके बाद आठ अक्टूबर 2003 को, पांच अप्रैल 2004, छह जुलाई 2004, 12 जनवरी 2005, सात फरवरी 2006, 11 जून 2007, 13 जून 2008, तीन अगस्त 2009, पांच सितंबर 2009, 19 अगस्त 2010, 13 अक्टूबर 2012, 12 फरवरी 2013 और 30 अप्रैल 2013 को रिमाइंडर भेजे गए। इस मामले में अंतिम रिमाइंडर झारखंड के तत्कालीन मुख्य सचिव आरएस शर्मा ने 24 मार्च 2014 को भेजा था।
तत्कालीन मुख्य सचिव आरएस शर्मा के पत्र का मजमून
30 अप्रैल 1990 से 30 दिसंबर 1991 तक उपायुक्त, पश्चिम सिंहभूम, चाईबासा के पदस्थापन काल के दौरान आपके द्वारा कोषागार का निरीक्षण नहीं करने, कोषागार के भुगतान/व्यय की मासिक विवरणी महालेखाकार को नहीं भेजने, कोषागार के क्रियाकलापों की निगरानी नहीं करने के फलस्वरूप गलत तरीके से चाईबासा कोषागार से राशि की निकासी संबंधी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, पशुपालन कक्ष रांची से प्राप्त प्रतिवेदन पर आपसे जुलाई 2003 से ही की जा रही है, जो अभी तक अप्राप्त है, जिसके कारण मामला लंबित है। तत्कालीन मुख्य सचिव आरएस शर्मा ने 24 मार्च 2014 को यह पत्र पथ निर्माण विभाग की सचिव रही राजबाला वर्मा को भेजा था। उन्होंने 15 दिनों के अंदर उनसे इस मामले प्रतिक्रिया कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग को देने को कहा था।
बजट सत्र में सरकार को घेरेगा झाविमो
इधर, झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने फरवरी 2018 में रिटायर हो रहीं वर्तमान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा को अविलंब पद से हटाने की गुजारिश मुख्यमंत्री से की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि राज्य के शीर्ष अफसर के विरुद्ध कार्रवाई में अगर सरकार विलंब करती है तो झाविमो पूरे विपक्ष के साथ बजट सत्र के दौरान सरकारी को घेरेगा। इससे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और गृह मंत्री को मुख्य सचिव के कारनामे से अवगत कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि मंत्रियों और अफसरों की सांठगांठ से ही भ्रष्टाचार के ऐसे बीज अंकुरित होते हैं। उन्होंने कहा कि चारा घोटाले के इसी मामले में बिहार के तीन अफसरों पर कार्रवाई हो चुकी है, फिर राजबाला पर मेहरबानी क्यों। प्रदीप शनिवार को मीडिया से मुखातिब थे।
लालू की गिरफ्तारी में सहयोग नहीं करने का भी राजबाला पर आरोप
जागरण संवाददाता, धनबाद : मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पर सिर्फ चाईबासा के उपायुक्त पद पर रहते हुए कोषागार का निरीक्षण नहीं करने और एजी को रिपोर्ट नहीं भेजने का ही आरोप नहीं है, उनपर पटना की डीएम रहते हुए सरकारी कार्य में बाधा डालने का भी आरोप है। इस मामले में भी सीबीआइ ने राजबाला वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश कर रखी है। चारा घोटाले में आरोप पत्र दाखिल होने के बाद सीबीआइ जुलाई 1997 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की गिरफ्तारी के लिए उनके आवास पर पहुंची थी।
पटना की तत्कालीन डीएम राजबाला वर्मा ने लालू प्रसाद की गिरफ्तारी में कोई सहयोग नहीं किया था। इसके बाद सीबीआइ के संयुक्त निदेशक उपेन्द्र विश्वास ने सेना से संपर्क साधा। मामला बिगड़ता देख लालू प्रसाद यादव ने 30 जुलाई 1997 को न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। लालू प्रसाद की गिरफ्तारी में सहयोग नहीं करने को सरकारी कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाते हुए सीबीआइ ने राजबाला वर्मा के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की थी। इस मामले में भी मुख्य सचिव के खिलाफ झारखंड सरकार के पास कार्रवाई विचाराधीन है।
यह भी पढ़ेंः लालू जेल में, फिर कौन रह रहा उनके नाम से होटल बीएनआर में