कभी पुलिस के दुश्मन थे, अब कर रहे कदमताल
झारखंड में अब तक 167 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इनमें सात को झारखंड पुलिस में सिपाही की नौकरी दे दी गई है।
रांची, दिलीप कुमार। कभी पुलिस के दुश्मन थे। खाकी से नफरत थी। जहां कहीं भी देखते उन्हें मारने की जुगत में रहते थे। लैंड माइंस विस्फोट व पुलिस पर हमला उनके लिए कोई मायने नहीं रखता था। आज वैसे ही नक्सली पुलिस के न सिर्फ दोस्त बन चुके हैं, बल्कि पुलिस के साथ अपने ही कैडर के विरोध में कदमताल कर रहे हैं। जो हथियार पुलिस के खिलाफ उठते थे, आज अपने ही भटके हुए साथियों के लिए उठ रहे हैं।
झारखंड में अब तक 167 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। इनमें शारीरिक रूप से दक्ष व सिपाही में भर्ती के लिए शारीरिक मापदंडों को पूरा करने वाले सात को झारखंड पुलिस में सिपाही की नौकरी दे दी गई है। इसमें आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के विरुद्ध विशेष शाखा की रिपोर्ट बेहद मायने रखती है, जिससे उक्त नक्सली की वर्तमान गतिविधियों का पता चलता है। खुफिया रिपोर्ट पर खरे उतरने वाले वैसे सात नक्सलियों को सिपाही बनाया गया है, जो वर्तमान में पुलिस की नौकरी कर रहे हैं। इनमें छह नक्सली आत्मसमर्पण वाले हैं, जबकि एक नक्सली बच्ची है, जिसे नक्सली उठाकर दस्ते में ले गए थे। उक्त बच्ची को बाल आरक्षी की नौकरी दी गई है। अब भी आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सलियों के ब्योरे खंगाले जा रहे हैं, ताकि उनके पुनर्वास पर डीजीपी के माध्यम से ठोस विचार किया जा सके।
नक्सलियों के कब्जे से मुक्त कराई गई बच्ची बनी है बाल आरक्षी
गुमला जिले के बिसुनपुर की रहने वाली एक बच्ची का बाल आरक्षी के रूप में चयन किया गया है। यह वही बच्ची है, जिसे नकुल यादव के दस्ते के उग्रवादी जबरन उठाकर नक्सल दस्ते में ले गए थे। पुलिस ने नक्सलियों के कब्जे में फंसे दो दर्जन से अधिक बच्चों को मुक्त करवाया और उनका कस्तूरबा विद्यालय सहित अन्य स्कूलों में नामांकन भी करवाया। इन्हीं बच्चों में यह बच्ची भी शामिल थी, जिसमें सिपाही बनने का जज्बा था। उसका बाल आरक्षी के रूप में चयन किया गया है, जिसका पदस्थापन लातेहार जिला बल में हुआ है।
सरकार की आत्मसमर्पण नीति में पुनर्वास की भी है व्यवस्था
सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत ही पुनर्वास पैकेज भी है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली को पुनर्वास अनुदान के रूप में ढाई लाख रुपये मिलते हैं, जिसमें 50 हजार रुपये आत्मसमर्पण के समय ही तत्काल दिया जाता है। दो लाख रुपये का भुगतान दो बराबर किस्तों में किया जाता है। पहली किस्त एक साल बाद व दूसरी किस्त दो साल के बाद। उक्त उग्रवादी की गतिविधियों के बारे में विशेष शाखा के माध्यम से छानबीन के बाद। वैसे नक्सली, जिनपर इनाम रखा गया है, उन्हें उनके इनाम की राशि भी दे दी जाती है। इसी पुनर्वास नीति में यह निहित है कि शारीरिक मापदंडों को पूरा करने वाले आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को पुलिस/गृहरक्षक/विशेष पुलिस अधिकारी के रूप में नियुक्ति पर विचार किया जाता है। डीजीपी को यह शक्ति प्राप्त है कि वे विशेष परिस्थितियों में निर्धारित शारीरिक मापदंडों को शिथिल कर सकते हैं।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली, जिन्हें मिली पुलिस की नौकरी
सुरेश मुंडा: पिता नरसिंह मुंडा। सारजमडीह गांव, थाना बुंडू, जिला रांची। सीपीआइ माओवादी के सदस्य थे। पांच अगस्त 2010 को आत्मसमर्पण किया था।
सुनीता कुमारी: पिता बंगली मुंडा, गरुरपीड़ी, नामकुम, रांची। सीपीआइ माओवादी की सदस्य थी। 30 नवंबर 2010 को आत्मसमर्पण किया था।
गीता गंझू: पिता गगुआ गंझू, हेहे, बुढ़मू, रांची। सीपीआइ माओवादी की सदस्य थी। 18 मई 2011 को आत्मसमर्पण की थी।
पांडू पाहन: पिता डोलका पाहन, नजलदाग, नामकुम, रांची। सीपीआइ माओवादी सदस्य था। 18 फरवरी 2013 को आत्मसमर्पण किया था।
इंदी पाहन: पिता डोलका पाहन, नजलदाग, नामकुम, रांची। सीपीआइ माओवादी सदस्य था। 18 फरवरी 2013 को आत्मसमर्पण किया था।
सीताराम मुंडा: पिता जयराम मुंडा, पारोमडीह, टोला बारीडीह, थाना तमाड़, जिला रांची। सीपीआइ माओवादी सदस्य था। चार अक्टूबर 2010 को आत्मसमर्पण किया था।
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