जानिए, क्यों महंगा हुआ पेपर बैग; झोले के प्रयोग पर है जोर
इन दिनों प्लास्टिक से ज्यादा पॉली बैग का प्रयोग किया जा रहा है।
रांची, जागरण संवाददाता। राजधानी में प्लास्टिक और पॉली बैग का प्रयोग थम नहीं रहा है। सरकार की ओर से लगाई गई रोक के बाद भी कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है। आलम यह है कि राजधानी के बाजार में अभी भी प्लास्टिक की बिक्री जमकर हो रही है। इन दिनों प्लास्टिक से ज्यादा पॉली बैग का प्रयोग किया जा रहा है। एक दिसंबर से इन पर भी रोक है। इसके बाद भी हर छोटा-बड़ा व्यापारी इसका प्रयोग कर रहा है। प्रशासन के लोग भी इससे वाकिफ हैं, पर कार्रवाई के नाम पर अभी तक कदम नहीं उठाए गए हैं।
झोला लेकर चलने पर जोर:
पॉलीथिन के बंद होते ही इसके विकल्प ढूंढ़े जाने लगे। प्रशासन ग्राहकों से आग्रह कर रहा है कि वे अपने साथ घर से ही झोला लेकर आएं अन्यथा जूट व कपड़े के बैग की कीमत अदा कर सामान लें। दूसरी ओर बाजार के विकल्प कहीं अलग हैं। पॉलीथिन की जगह अचानक सफेद थैलियों का प्रयोग होने लगा, जिसे लोग कपड़े का समझ रहे थे। लेकिन दरअसल वह पॉली-प्रोपलीन है, जो एक प्रकार का पॉलीथिन ही है। इसके प्रयोग के साथ पर्यावरण सुरक्षा अधूरी है।
पेपर बैग का बढ़ रहा है कारोबार
पेपर बैग का चलन बाजार में पहले कम था, लेकिन पॉलीथिन बंद के बाद इसने नई रफ्तार पकड़ी है। मांग बढ़ने के साथ इनकी कीमतें भी बढ़ी हैं। पहले जहां पतले कागजों से बने 12 रुपये के 100 बैग आते थे, आज 32 रुपये के सिर्फ 80 बैग आ रहे हैं। इसी प्रकार मोटे कागज वाले जहां 40 रुपये के 100 बैग आते थे, आज 80 रुपये के 80 बैग आते हैं। साफ है कि कीमतें दोगुनी हुई हैं। जूट के थैलों के अलावा मिठाइयों और खाद्य सामग्री के लिए पेपर बैग का प्रयोग किया जाना उचित है।
सामान्य तौर पर अखबार या पत्रिकाओं के पृष्ठों से बने इन पेपर बैग का कारोबार बहुत ही छोटे स्तर पर होता है। ये घर में ही बनाए जाते हैं और फिर दुकानों में बेचे जाते हैं। कई बार ये कार्य ऑर्डर पर भी दिए जाते हैं। वहीं दुकानदार नईम अख्तर ने बताया कि कारीगरों की बहुत कमी है। कम दाम की वजह से कोई काम नहीं करना चाहता है। सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया था कि पेपर बैग बांटे जाएंगे। लेकिन मिलना बंद हो गया।
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