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जानें, झारखंड के सरकारी स्‍कूलों में क्‍यों चौपट हो रही है पढ़ाई

स्कूलों में प्रदूषण की समस्या तो होती ही है, साथ ही बच्‍चों से लेकर शिक्षक व रसोइए भी धुएं से परेशान रहते हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 08 Dec 2017 03:05 PM (IST)Updated: Fri, 08 Dec 2017 06:41 PM (IST)
जानें, झारखंड के सरकारी स्‍कूलों में क्‍यों चौपट हो रही है पढ़ाई

रांची, नीरज अम्बष्ठ। स्कूलों में सिर्फ धुआं ही धुआं है। पढाई शुरू होते ही यहां बच्‍चे धुआं से परेशान हो जाते हैं। सरकार ने इन स्‍कूली बच्‍चों के लिए मिड डे मील यानी मध्‍याह्न भोजन की व्‍यवस्‍था की है। इन्हें दोपहर में स्वादिष्ट भोजन तो मिलता है, लेकिन इससे पहले उन्हें धुएं की घुटन भी झेलनी पड़ रही है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन स्‍कूलों में लकड़ी जलाकर भोजन तैयार किया जाता है। इससे पढ़ाई चौपट हो रही है।

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इसे देखते हुए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अहम फैसला लेते हुए राज्य बजट से स्कूलों को एलपीजी सिलेंडर व चूल्हा उपलब्ध कराने का फैसला तो ले लिया, लेकिन अधिकारी मुख्यमंत्री के फैसले को अमलीजामा पहनाने उदासीनता बरत रहे हैं। वित्तीय नियम भी इसमें बाधक बन रही है। स्थिति यह है कि इस साल मई में कैबिनेट से योजना स्वीकृत होने के बावजूद स्कूलों को एलीपीजी सिलेंडर और चूल्हा नहीं मिल सका है। राज्य के 74 फीसद स्कूलों में एलपीजी सिलेंडर उपलब्ध ही नहीं है। इसी कारण इन स्कूलों में लकड़ी से ही बच्चों का भोजन बनता है।

इससे स्कूलों में प्रदूषण की समस्या तो होती ही है, साथ ही बच्‍चों से लेकर शिक्षक व रसोइए भी धुएं से परेशान रहते हैं। राजधानी रांची भी इससे अछूती नहीं है। रांची शहर के बीच में स्थित उत्क्रमित प्राथमिक स्कूल, टूंकी टोला कोकर में पढ़ने वाले बच्चे भी धुएं से परेशान रहते हैं। उन्हें दोपहर में स्वादिष्ट भोजन तो मिलता है लेकिन धुएं के कारण पढ़ाई नहीं हो पाती। खाना बनाने में महिला रसोइए भी परेशान रहती हैं।

यह स्थिति राज्‍य के सभी जिलों में है। सबसे छोटे जिले लोहरदगा में 586 सरकारी स्कूलों में मिड डे मील की व्‍यवस्‍था है। इनमें से सिर्फ 50 स्कूलों के पास गैस कनेक्शन है, बाकी के स्‍कूलों में लकड़ी से ही भोजन बनाने की व्‍यवस्‍था है। जिन स्‍कूलों में गैस कनेक्‍शन है भी, वहां गैस सब्सिडी नहीं मिलने से किसी भी सरकारी स्कूलों में गैस से मध्‍याह्न भोजन नहीं बन पा रहा है। यहां की कन्या मध्य विधालय के रसोइया बिमला देवी और उर्मिला देवी का कहना है की खाना बनाने में लकड़ी के धुआं से परेशान रहते है। अरियन लहेरी और विशाल कुमार सिंह का कहना है की धुआं से विधालय परिसर भर जाता है दिक्कत होती है। प्रधानाध्यापिका मनोरमा सिंह का कहना है कि धुआं से परशानी होती है।

स्‍कूलों को अभी तक क्यों नहीं मिली राशि 
स्कूलों को एलपीजी सिलेंडर क्रय करने की राशि अभी तक नहीं मिली है। बताया जाता है कि योजना सह वित्त विभाग योजना की राशि ट्रेजरी के माध्यम से पीएल खाते में रखना चाहता था। लेकिन इसमें समस्या यह होती है कि पूर्व में दी गई राशि के खर्च का वाउचर देने पर ही राशि ट्रेजरी से जारी होती है, जबकि यह नई योजना है। अब स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने यह राशि सीधे जिलों के माध्यम से स्कूलों को भेजने की अनुमति मांगी है। 
 

लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड अंतर्गत कन्या मध्य विद्यालय में बनता मध्‍याह्न भोजन।

जानिए, क्या है योजना

40,025 सरकारी प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूलों को मध्याह्न भोजन बनाने के लिए गैस सिलेंडर के साथ-साथ रेगुलेटर, पाइप व भट्ठी चूल्हे मिलेंगे। प्रत्येक स्कूलों को छात्र संख्या के आधार पर दो से पांच सिलेंडर तथा दो से चार चूल्हे मिलेंगे। इसपर लगभग 42 करोड़ रुपये खर्च होंगे। गैस सिलेंडर और चूल्हे का क्रय स्कूलों में गठित सरस्वती वाहिनी द्वारा की जाएगी। इसके लिए राशि उनके बैंक खातों में हस्तांतरित की जाएगी। गैस कनेक्शन भी सरस्वती वाहिनी के नाम से लिया जाएगा। विभाग ने गैस सिलेंडर, रेगुलेटर, पाइप एवं भट्ठी चूल्हे के लिए प्रति यूनिट 4,475 रुपये की राशि निर्धारित की है।

किस श्रेणी के स्कूलों को कितने सिलेंडर
01 से 50 छात्र वाले स्कूल : दो सिलेंडर और इतने ही चूल्हे
51 से 200 छात्र वाले स्कूल : तीन सिलेंडर व दो चूल्हे
201 से 500 संख्या वाले स्कूल : चार सिलेंडर व तीन चूल्हे
500 से अधिक छात्र वाले स्कूल : पांच सिलेंडर व चार चूल्हे
ऐसे स्कूलों की संख्या क्रमश: 16,664, 19006, 3943 तथा 412 हैं।

केंद्र ने भी खड़े कर लिए थे हाथ
मिड डे मील बनाने के लिए स्कूलों को एलपीजी गैस उपलब्ध कराने से केंद्र सरकार ने पिछले साल ही हाथ खड़े कर लिए थे। केंद्र से इसके लिए राशि देने से इन्कार किए जाने के बाद राज्य सरकार ने योजना में केंद्र से मिली राशि पर मिले ब्याज से एलपीजी गैस सिलेंडर खरीदने की अनुमति मांगी थी, लेकिन केंद्र ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया। उल्टे केंद्र ने ब्याज की राशि लौटाने का भी फरमान सुना दिया। ब्याज के लगभग ढाई करोड़ रुपये बैंकों में पड़े हुए थे। केंद्र के इन्कार के बाद राज्य सरकार ने अपने खर्च से एलपीजी सिलेंडर स्कूलों को उपलब्ध कराने का निर्णय लिया।

कितने स्कूलों में चलती है मिड डे मील योजना
प्राइमरी स्कूल : 26,573
अपर प्राइमरी स्कूल : 14,260
एनसीएलपी स्कूल: 190 

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