अब एक साल में अरहर की तीन फसलें, नहीं घटेगी पैदावार
कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत किस्म विकसित की है।
अनुज मिश्रा, रांची। किसानों के लिए अच्छी खबर है। कृषि वैज्ञानिकों ने अरहर की उन्नत किस्म विकसित की है। साल भर में इसकी तीन फसलें ली जा सकती हैं। रांची, झारखंड स्थित बिरसा कृषि विश्र्वविद्यालय द्वारा विकसित अरहर की यह किस्म सिर्फ 107 दिनों में तैयार हो जाती है।
विश्र्वविद्यालय जल्द ही इस किस्म को नाम देकर रजिस्ट्रेशन कराएगा। जिसके बाद इसे आम उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाएगा। अब तक उपलब्ध किस्मों से साल में अधिकतम एक फसल ली जा सकती थी। फसल तैयार होने में न्यूनतम 240 दिन लगते थे। जबकि उसी खेत में दूसरी फसल लेने पर पैदावार बहुत कम होती थी।
छोटे पौधे, अधिक पैदावार
नई किस्म की अरहर के पौधे मौजूदा किस्म की अपेक्षा बहुत छोटे हैं। इनकी अधिकतम ऊंचाई 1.5 फीट ही है। जबकि मौजूदा सभी किस्मों के पौधों की ऊंचाई अधिकतम पांच फीट होती है। छोटे पौधे होने के कारण नई किस्म की फसल जल्द तैयार हो जाती है। जबकि पौधों की ऊंचाई घटने से पैदावार में भी कोई फर्क नहीं आया है।
कम लगेगी खाद
मौजूदा किस्मों की अपेक्षा इस किस्म की अरहर के उत्पादन में लगभग एक तिहाई खाद में ही बात बन जाएगी। एक एकड़ में लगभग आठ क्विंटल अरहर का उत्पादन होगा। जो पहले की अपेक्षा अधिक है।
बरतनी होगी सावधानी
चूंकि कम समय में फसल तैयार होगी, इसलिए किसानों को काफी सावधानी बरतनी होगी। फसल की शुरुआत में ही यदि दवा का छिड़काव नहीं किया गया तो कीड़े लगने का डर होता है। पहले 90 दिनों के अंदर तीन बार दवा का छिड़काव करना होगा।
पूरी हुई किसानों की मांग
शोध करने वाली टीम के प्रमुख डॉ. नीरज कुमार के मुताबिक, किसान इसकी मांग लंबे समय से कर रहे थे। अब अरहर की खेती में ज्यादा समय नहीं लगेगा और मुनाफा भी अच्छा होगा। किसान चाहें तो दलहन की लगातार तीन फसलें एक साथ ले सकते हैं अथवा अरहर की फसल के बाद कोई दूसरी फसल भी उगा सकते हैं।
बड़ी उपलब्धि
बिरसा कृषि विश्र्वविद्यालय इसे बड़ी उपलब्धि बता रहा है। इससे पहले उसने 240 दिनों में तैयार हो जाने वाली अरहर विकसित की थी। पुरानी किस्मों की अपेक्षा नई किस्म 20 फीसद अधिक पैदावार दे रही है। 2009 में अखिल भारतीय समन्वित अरहर परियोजना, कानपुर ने विश्र्वविद्यालय को अरहर की विभिन्न किस्मों को विकसित करने का लक्ष्य दिया था। 2011 से इस पर शोध शुरू हुआ। जो अब रंग ला रहा है।
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जल्द ही हम इस किस्म को आम किसानों के बीच उपलब्ध कराएंगे। झारखंड के अलावा अन्य राज्यों के किसानों को भी इससे काफी लाभ होगा। इसकी खेती में कम लागत से अधिक मुनाफा होगा।
-डॉ. डीएन सिंह, निदेशक अनुसंधान, बिरसा कृषि विवि, रांची
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