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'किशोर हमें नहीं बताएं, हम क्या करेंगे'

रांची : विधानसभा में शुक्रवार को एकबारगी ऐसा लगा था कि गतिरोध समाप्त हो जाएगा। नेता प्रतिपक्ष हेमंत

By Edited By: Published: Sat, 21 Jan 2017 12:59 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2017 12:59 AM (IST)
'किशोर हमें नहीं बताएं, हम क्या करेंगे'

रांची : विधानसभा में शुक्रवार को एकबारगी ऐसा लगा था कि गतिरोध समाप्त हो जाएगा। नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने शुरुआती वक्तव्य में सदस्यों का निलंबन वापस लेने का आग्रह किया तो कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव, सत्तापक्ष के मुख्य सचेतक राधाकृष्ण किशोर ने उनकी हां में हां मिलाई। संसदीय कार्यमंत्री सरयू राय के वक्तव्य का भी निचोड़ यही था कि मामले को समाप्त करने की पहल हो लेकिन मुख्यमंत्री रघुवर दास के भाषण के बाद झामुमो विधायक सक्रिय हुए। पहले चंपई खड़ा हुए और अपनी रौ में बोलते गए। उनका कहना था कि सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन जब तक वापस नहीं होगा तब तक वे अपनी सीट पर खड़े ही रहेंगे। सरयू राय ने उनकी कुछ बातों को कार्यवाही से हटाने का भी आग्रह किया। तबतक राधाकृष्ण किशोर के तेवर तल्ख हो गए। कहा-निलंबन वापसी भी चाहतें हैं और धमकी भी देते हैं। स्टीफन ने मामला संभालना चाहा तो उन्होंने फिर कहा कि ये मर्यादा क्या बताएंगे? इतना कहना था कि शांत रहने वाले स्टीफन मरांडी तैश में आ गए। कहा, किशोर हमें नहीं बताएं, हम क्या करेंगे। वे बस संसदीय कार्यमंत्री और स्पीकर की बात सुनेंगे। राधाकृष्ण किशोर ने इस दौरान 1980 से अपने विधायकी के अनुभव का भी जिक्र किया। भाजपा विधायक विरंची नारायण ने सवाल पूछा तो उत्तर का क्रम शुरू हो गया। किशोर ने फिर टोका कि हाउस को आर्डर में लाइए। विरंची नारायण ने विरोध में वेल में धमके झामुमो विधायकों की ओर इशारा करते हुए स्पीकर से कहा कि सबको बाहर निकाल दीजिए। हंगामा बढ़ता देख स्पीकर ने कार्यवाही भोजनावकाश तक के लिए स्थगित कर दी।

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नेताओं के बोल :

सारे विधायक नए हैं। इस विषय पर आसन पुनर्विचार करे। सीएनटी गंभीर विषय है। पहले भी असंसदीय आचरण हुआ है लेकिन सख्त फैसला नहीं हुआ। पुनर्विचार किया जाए ताकि विधायिका की गरिमा बरकरार रहे।

हेमंत सोरेन, नेता प्रतिपक्ष।

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उत्तेजना में विवेक लुप्त हो जाता है। विस्मरण हो जाता है कि सदन की मर्यादा है। आचरण भावावेश में किया गया। वे यह सोचकर नहीं आए थे कि ऐसा करेंगे। सदाचार समिति भी मूकदर्शक कैसे बनी रहती?

सरयू राय, संसदीय कार्यमंत्री।

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विरोध के तरीके में गलती हुई होगी। पहले भी ऐसा हुआ है कि विधायक टेबुल पर चढ़ते रहे हैं। झंडा तक गिराया है। आग्रह है कि निलंबन वापस किया जाए।

आलमगीर आलम, नेता, कांग्रेस विधायक दल।

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मैं भी एक बार भावावेश में असंतुलित हुआ था। मैंने माफी मांग ली। व्यवस्था को चलाना स्पीकर के जिम्मे है। वे फैसले पर विचार करें ताकि कुर्सी की मर्यादा बनी रहे।

प्रदीप यादव, नेता, झाविमो विधायक दल।

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सदन मंदिर है। हम इसकी गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखें। ऐसी संस्थाएं भावावेश से नहीं चलती। अगर उन्हें अपने किए पर प्रायश्चित हैं तो माफ किया जा सकता है।

राधाकृष्ण किशोर, मुख्य सचेतक, सत्तापक्ष।

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