आदिवासी भूमि पर लोन का रास्ता साफ
झारखंड के अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के सदस्य अब अपनी भूमि बैंकों में बंधक रखकर उसपर भवन निर्माण अथवा स्वरोजगार के लिए लोन ले सकेंगे।
राज्य ब्यूरो, रांची। झारखंड के अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) के सदस्य अब अपनी भूमि बैंकों में बंधक रखकर उसपर भवन निर्माण अथवा स्वरोजगार के लिए लोन ले सकेंगे। आदिवासी भूमि के एवज में लोन को लेकर दशकों से चली आ रही माथापच्ची पर फैसला लेने के लिए गठित जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) की उप समिति ने इस पर अपनी सहमति दे दी है। ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह की अध्यक्षता वाली इस उप समिति की शनिवार को प्रोजेक्ट बिल्डिंग में बैठक हुई। उप समिति इस मामले की रिपोर्ट 10 दिनों में टीएसी को सौंपेगी।
आदिवासी भूमि पर लोन को लेकर कई दौर की बैठक कर चुकी उप समिति के सदस्यों ने शनिवार को लोन चुकाने की अवधि 30 साल मुकर्रर करने पर अपनी सहमति दी। तय हुआ कि सरकार इसके लिए एक कॉर्पस फंड गठित करेगी। लोन नहीं चुका पाने की स्थिति में संबंधित जमीन की नीलामी का भी प्रस्ताव सदस्यों ने दिया। तय हुआ कि नीलामी वाली जमीन या तो कोई आदिवासी खरीदेगा या फिर सरकार उसे अपने कब्जे में ले लेगी।
मौके पर जरूरतमंद आदिवासियों को आसानी से लोन मुहैया कराने के लिए हर जिले में एक शाखा खोलने का विचार भी उप समिति के सदस्यों को दिया। इन शाखाओं पर आदिवासी अपना आवेदन दे सकेंगे। आवेदन की विभिन्न स्तरों पर पड़ताल के बाद संबंधित शाखा इसे नजदीक के राष्ट्रीयकृत बैंकों को भेजने का काम करेगी। बैठक में बतौर सदस्य सचिव हिमानी पांडेय, उप समिति के सदस्य जेबी तुबिद, मानकी जगन्नाथ सिंह मुंडा के अलावा बैंक के अधिकारियों ने शिरकत की।
आदिवासी छात्रों के शिक्षा लोन की गारंटर बनेगी सरकार
7.50 लाख रुपये से अधिक के शिक्षा लोन की स्थिति में सरकार आदिवासी छात्रों का बैंक में गारंटर बनेगी। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पिछले दिनों यह घोषणा की थी। दरअसल राज्य में सीएनटी और एसपीटी एक्ट के प्रभावी होने की वजह आदिवासी भूमि का गैर आदिवासियों के बीच हस्तांतरण प्रतिबंधित है। इस वजह से कोई भी बैंक आदिवासी भूमि को बंधक रख लोन देने के पक्ष में नहीं था।