विकास की तलाश में विनाश के घोड़े पर सवार है मनुष्य
दैनिक जागरण के मिशन एक करोड़ पौधरोपण अभियान में शिरकत करते हुए नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि मनुष्य विकास की दौड़ में विनाश के घोड़े पर सावर हो गया है।
जागरण संवाददाता, रांची। दैनिक जागरण के मिशन एक करोड़ पौधरोपण अभियान में शिरकत करते हुए नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने कहा कि सब कुछ जानते हुए भी मनुष्य विकास की अंधी दौड़ में विनाश के घोड़े पर सावर हो गया है। कहा, झारखंड भले ही खनिज के मामले में संपन्न हो लेकिन इसकी पहचान झाड़-जंगल से है। ये प्राकृति के संसर्ग की असीम ताकत है कि वह मनुष्य व अन्य जीवों को अटूट बंधन में बांधे कर रखता है। इसी में मनुष्य व जीव-जंतु सभी के सम्मान और अस्तित्व के लिए स्थान होता है। वहीं कंक्रीट के जंगल जैसी बेजान चीजें हमें नकारात्मक, ङ्क्षहसक और आत्म केंद्रित प्रवृत्ति की ओर ले जाते हैं। इस भौतिकवादी युग में हमने बहुत कुर्बानी दी है, कई चीजें खोकर हम आगे बढ़ रहे हैं... क्या खोया, कितना महत्वपूर्ण खोया अभी इसका आकलन होना बाकी है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रकृति काफी बलवान है मनुष्य के लिए उससे लडऩा न संभव है न हितकर। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा करते हुए सभी को इसके प्रति सजग होने की जरूरत बताई। इसके पूर्व उन्होंने दैनिक जागरण परिसर में आंवले का पौधा भी लगाया।
पहाड़ काटकर न बने सड़क :नेता प्रतिपक्ष जो खुद इंजीनियर भी हैं उन्होंने विकास के मॉडल पर भी सवाल उठाए। कहा, पहाड़ काटकर सड़क व पुल बनाने की प्रवृत्ति काफी खराब है।
उन्होंने विकास के मानकों को वैश्विक मापदंड पर कसने की वकालत करते हुए कहा कि विदेशों में निर्माण खर्च भले ही बढ़ जाए लेकिन पहाड़ व पेड़ काटकर सड़क-पुल नहीं बनाए जाते।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि पहाड़-जंगल काटकर विकास करने से पशुओं का प्राकृतिक भ्रमण मार्ग बाधित हो रहा है इससे पशुओं में ङ्क्षहसक प्रवृत्ति बढ़ रही है। कहा, प्रकृति से खिलवाड़ ने जलसंकट की समस्या खड़ी कर दी है। जब तक जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों की व्यवस्था चलती रही कभी ऐसी समस्या उत्पन्न नहीं हुई। क्योंकि भू संरचना में जमीन में पानी सीधे एक बार में नहीं डाला जा सकता। वह धीरे-धीरे जमीन में रिसता है, उस प्रक्रिया को बाधित कर हमने जल संकट की स्थिति उत्पन्न कर ली।
आदिवासी जीवन में रचा-बसा है जंगल : नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आदिवासी जीवन में ही जंगल व पेड़ पौधे रचे-बसे हैं। हमारे तो पूज्य भी वही, जीवन भी वही हैं। आदिवासियों को तो बचपन से ही पेड़-पौधे के सहचर्य की शिक्षा मिलती है। मेरे पिता (झारखंड आंदोलन के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन) तो पेड़ की छंटाई तक नहीं करने देते।