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महिलाओं का जीवन दर्शन बनीं दर्शना

रांची : एमबीए कर रही सुरभि को दो कंपनियों से बुलावा आया। सुखमणि के मां-बाप उसके ब्याह की सोच रहे थे,

By Edited By: Published: Wed, 07 Jan 2015 10:34 PM (IST)Updated: Thu, 08 Jan 2015 05:53 AM (IST)

रांची : एमबीए कर रही सुरभि को दो कंपनियों से बुलावा आया। सुखमणि के मां-बाप उसके ब्याह की सोच रहे थे, अब वह पढ़ रही है। इन लड़कियों के उत्साह और हौसले के पीछे खड़ी हैं दर्शना गोपा मिंज। आधी आबादी को सशक्त करने की मुहिम में जी-जान से जुटी हुईं।

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दर्शना महिलाओं का जैसे जीवन दर्शन बन चुकी हैं। माता-पिता दोनों प्रोफेसर हैं, शैक्षणिक पृष्ठभूमि है। दर्शना के आदर्श ऐसे कि लंदन से कहीं अधिक गांव की मिट्टी पसंद आई। रांची के बारडीह गांव में इटकी मोड़ जैसी छोटी-सी जगह। यहीं है उनका घर। आज भी वे यहीं रहती हैं। न सिर्फ यहां, बल्कि और जगहों पर भी छात्राओं-महिलाओं को सशक्त बना रहीं, बच्चों को पढ़ा-लिखा रही हैं।

सबसे पहले तो दर्शना ने खुद को ऊंचाई तक पहुंचा कर अपनी सफलता की कहानी लिखी। अब उस प्लेटफार्म पर औरों को सफल बना रही हैं। बड़ी-बड़ी कारपोरेट कंपनियों में नौकरी करने की बजाए गांव-समाज के लोगों को आगे बढ़ाना पसंद आया।

माता-पिता ने उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा। वहां भी दर्शना की रुचि सामाजिक कार्यो में रही। 2010 में वहां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 'क्रश रेडियो' की चीफ स्पीकर गेस्ट बनीं। महिलाओं के मुद्दे उठाकर चर्चा में रहीं। उन्हें लीवरपुल यूनिवर्सिटी का अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट यूनियन का सलाहकार चुना गया। 2011 में अंतरराष्ट्रीय टेली सेमीनार में भी भारतीय महिलाओं के मुद्दे उठाए।

दर्शना कहती हैं, 'मैं इंग्लैंड में हमेशा सामाजिक कार्य में सक्रिय रही, पर मेरा मन हमेशा अपने देश के लिए कुछ करने का होता था। खासकर अपने राज्य झारखंड के लिए।' इसके बाद सोचा कि बेहतर शिक्षा लेकर पहले खुद को सशक्त करूं, फिर महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ूं।

2011 में वहां से अपने गांव लौट आईं। यहां रेपदा वेलफेयर सोसायटी (रिसर्च प्रोटेक्शन डेवलपमेंट) नामक संस्था का गठन किया। अभी रांची विश्वविद्यालय में प्रबंधन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर भी हैं। कॉलेज और फिर बाकी समय में गांव-गांव अभियान चलाना। महिलाओं की शिक्षा व स्वास्थ्य पर जोर है। वे कहती हैं-'महिलाएं शिक्षित होंगी तो आर्थिक, सामाजिक यानी सभी तरह से सशक्त होंगी।' उनके प्रयास रंग ला रहे हैं। गांव की महिलाएं बाल विवाह और बेटा-बेटी में फर्क से तौबा कर रही हैं। इस बदलाव का एक उदाहरण है सुखमणि। रानीखडगा गांव की सुखमणि कहती है-'आठवीं कक्षा में पढ़ती थी, शादी-ब्याह की बात होने लगी। दर्शना दीदी ने घरवालों को समझाया। अब मैं मैट्रिक की परीक्षा देने वाली हूं। दीदी ने कहा है तू बारहवीं भी पास करेगी।' रांची में एमबीए की छात्रा सुरभि कहती हैं-'दीदी एक बार ग्रुप में रेज्यूम तैयार करा रही थीं। उन्होंने काफी बढि़या रेज्यूम बनवाया। मैं खुशी से उछल पड़ी, जब मुझे दो अच्छी कंपनियों से जॉब ऑफर आए। अभी मैं एमबीए पूरा करने में लगी हूं।'

दर्शना उन्हें आधुनिक तौर-तरीकों से वाकिफ कराती हैं। उन्होंने बरीदीह, रानीखडगा, झिनजरी, इटकी मोड़ आदि गांवों में 'युवा महिला सशक्तिकरण' समिति बनाई है। यह समिति गांव-गांव में महिलाओं को उनके अधिकार, शिक्षा-स्वास्थ्य आदि के प्रति जागरूक करती है। उनके लिए निश्शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं। छात्राओं को रोजगार के अवसरों के बारे में बताया जाता है। इटकी मोड़ निवासी दयामुनी टोपनो कहती हैं-'हमारे गांव की बेटी हमारे लिए जो कर रही है, उसने हमलोगों की जिंदगी बदल दी है। वह घर-घर जाकर समझाती है, सरकार शिक्षा दे रही है, बेटा हो या बेटी सबको स्कूल भेजो।'


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