आइएएस के पद को दिया शिक्षक का कद
रांची : जिस चीज की जवाबदेही मिली उसमें डूब जाओ तो रास्ते भी खुलते हैं, मंजिल भी मिलती है। कुछ ऐसा ही
रांची : जिस चीज की जवाबदेही मिली उसमें डूब जाओ तो रास्ते भी खुलते हैं, मंजिल भी मिलती है। कुछ ऐसा ही कर रहीं शिक्षा विभाग की सचिव आराधना पटनायक। सरकार ने शिक्षा की जवाबदेही सौंपी तो वरिष्ठ आइएएस अधिकारी आराधना एक शिक्षक बन गई। आइएएस के पद को शिक्षक का कद दिया, जिस पर निर्भर है देश का भविष्य।
निकल पड़ीं उन बच्चों के भविष्य को संवारने, जो कल राज्य और देश की तकदीर बनेंगे। आराधना दिल से शिक्षक बनकर कार्य कर रही हैं। तमाम व्यवस्तता के बावजूद नियमित रूप से किसी-न-किसी स्कूल में जाना और बच्चों को पढ़ाना। खासकर गणित और विज्ञान। चूंकि उनकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि इंजीनिय¨रग की रही है।
वे कहती हैं-'मेरे लिए यह बात किसी सदमे से कम नहीं होती है जब कोई अभिभावक यह कहते हैं कि अपने बच्चे का एक अच्छे निजी विद्यालय में नामांकन कराना है।'
यही बात आराधना पटनायक को झकझोर देती है। आखिर वह कौन-सी समस्या है, जिसकी वजह से कोई व्यक्ति सरकारी स्कूल में च्च्चों को पढ़ाना नहीं चाहता। वे कहती हैं-'मैं न सिर्फ स्कूलों की हालत, बल्कि लोगों की सोच बदलने का प्रयास कर रही हूं। यहां च्च्छे शिक्षक हैं।' वे जब से च्च्चों को पढ़ा रही हैं, उन्हें नए अहसास हुए। वे कहती हैं-इन स्कूलों में पढ़ने वाले च्च्चे कमजोर नहीं हैं, बल्कि पढ़ाने की शैली में गड़बड़ी है। उस शैली में सुधार लाने का ही प्रयास कर रही हूं।
इससे पहले वे लातेहार में उपायुक्त थीं तो वहां भी बच्चों को पढ़ाने स्कूलों में निकल जाया करती थीं। जब शिक्षा सचिव बनीं तो पूरा आसमान सामने था। इतना ही नहीं, उन्होंने रांची के जगन्नाथपुर स्थित मध्य विद्यालय को गोद भी ले रखा है। इस स्कूल का विकास उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है। उनकी अपील के बाद शिक्षा विभाग से जुड़े पदाधिकारियों सहित अन्य विभाग के पदाधिकारियों ने भी स्कूलों को गोद लिया। वे कहती हैं, इस पहल का च्च्छा नतीजा भी मिल रहा है। सेवानिवृत्त पदाधिकारी, शिक्षक, पत्रकार, चिकित्सक आदि ने स्कूलों को गोद लेने या स्कूलों में पढ़ाने में रूचि दिखाई है। लोगों से अनुरोध भी किया है कि संबंधित जिले के जिला शिक्षा अधीक्षक व जिला शिक्षा पदाधिकारी को जानकारी देकर स्कूल में योगदान दें। शिक्षा सचिव की यह पहल सभी को अपने सामाजिक दायित्व का भी बोध करा रही हैं।
वे कहती हैं, गुरु और शिष्य के बीच संवाद आवश्यक है। इससे न सिर्फ पढ़ाई के प्रति च्च्चों की रुचि बढ़ती है, बल्कि उनकी स्मरण शक्ति भी मजबूत होती है। स्कूल में संवाद का नितांत अभाव है। अब वे शिक्षण पद्धति में बदलाव के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल बनवा रही हैं। सुदूर गांवों के स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि उपलब्ध शिक्षकों में सभी को सभी जगह नियुक्त किया जा सके।
आराधना पटनायक राउरकेला स्थित कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ी हैं। स्वयं पढ़ने व साथियों को पढ़ाने की आदत शुरू से रही। वे बताती हैं, स्कूल में च्च्चों को पढ़ाती थी। उस वक्त जिस च्च्चे को समझ में नहीं आता था, उसे प्रैक्टिकल करके बताती थीं। मेरी ही कक्षा में किसी दोस्त को समझ में नहीं आता था तो मिलकर उसे समझाते थे। इस तरह से न सिर्फ चीजें याद रहती थीं बल्कि कंसेप्ट भी बनता था। कुछ ऐसा ही परिवर्तन राज्य के स्कूलों में लाने के लिए वे मेहनत कर रही हैं। इसका लाभ भी मिल रहा है।
जिला शिक्षा अधीक्षक जयंत कुमार मिश्रा इस परिवर्तन को महसूस कर रहे हैं। वे बताते हैं कि उनकी इस पहल के बाद शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों ने व्यवस्था में सुधार लाने का संकल्प लिया है और यही बड़ा परिवर्तन है। एक बनी-बनाई लीक से हटकर वास्तव में सुशिक्षित समाज बनाने की पहल ने प्रेरित किया है। अवकाशप्राप्त शिक्षक गंगा प्रसाद यादव कहते हैं कि पहल जब ऊपर से होती है तो असर नीचे तक होता है। आराधना पटनायक के कार्यो को देख रहे हैं। सेवानिवृत्त होने के बाद भी मैं च्च्चों को नि:शुल्क पढ़ा रहा हूं, संतोष होता है।
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इन्होंने गोद लिए स्कूल
पदाधिकारी - गोद लिए विद्यालय
आराधना पटनायक, सचिव, शिक्षा विभाग - मध्य विद्यालय, जगन्नाथपुर
पूजा सिंघल, राज्य परियोजना निदेशक - राजकीय कृत मध्य विद्यालय ¨हदपीढ़ी (हिन्दी)
प्रदीप कुमार चौबे, प्रशासी पदाधिकारी - राजकीय कृत मध्य विद्यालय, ¨हदपीढ़ी
प्रमोद कुमार सिन्हा, विशेषज्ञ, एमआरई - राजकीय कृत मध्य विद्यालय बीएमपी, डोरंडा।
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