बेटियों में जिंदा 'संकल्प'
रांची : मां मत रो। तेरा संकल्प जिंदा है। अपनी बेटियों में जिंदा है संकल्प। अपने पति संकल्प के खोने क
रांची : मां मत रो। तेरा संकल्प जिंदा है। अपनी बेटियों में जिंदा है संकल्प। अपने पति संकल्प के खोने के गम को दबाने की कोशिश करती प्रिया सिसकियों के बीच मां को समझा रही थीं।
वहां उपस्थित लोगों की आंखें भर आई। संकल्प की शहादत को सलाम, पर मा-बाप, पत्नी, बेटियां, नाते-रिश्तेदार, दोस्त-परिजन पर तो पहाड़ टूट पड़ा है। इन सबके बीच प्रिया फफक पड़ती हैं-मां! संकल्प अक्सर कहता था, वह रहे न रहे, उसकी बेटियां परफार्म करेंगी। 'माई डॉटर विल परफार्म'। मेरी दोनों बेटियां अपने पिता के सपनों को पूरा करेंगी और उससे भी बड़ी अधिकारी बनकर दिखाएंगी। कृष्णा नगर मुहल्ले में क्रंदन के बीच पत्नी प्रिया कह रही थीं यह मेरा व मेरे पति का फैसला है। मुझे मेरी बेटियों को उनके (संकल्प) के सपने व संकल्प को पूरा करवाना होगा।
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बोला था मैरिज एनिवर्सरी में कार खरीदूंगा, वो तो झूठा निकला :
प्रिया एक बार फिर शहीद के पार्थिव शरीर की ओर इशारा करते हुए फफक पड़ीं-कहता था मैरिज एनिवर्सरी आने दो, कार खरीदूंगा। अरे, वह क्या खरीदेगा, शादी की सालगिरह के पहले ही छोड़कर चला गया। अगले साल 30 जनवरी को शादी की सालगिरह पर बड़ी तैयारी की योजना थी, जो धरी की धरी रह गई। प्रिया फिर रो उठती हैं।
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मां मत रोओ न, उसे रोने से चिढ़ है :
ताबूत के पास मां को दहाड़ मारकर रोते देख संकल्प की पत्नी प्रिया उन्हें संभालती हैं। मां मत रोओ न, उसे (संकल्प) रोने से चिढ़ है। मां, मत रोइए न, यह कहकर प्रिया भी रो पड़ी। ठीक इसी पल ताबूत को अंगुली दिखाते हुए प्रिया कहती है, शानू (संकल्प) देखो न तुम्हारी मां रो रही है। यह सुनकर आसपास के लोग भी रो पड़े। प्रिया कहे जा रही थी कि कोई भगवान नहीं था उसके लिए। अगर भगवान होता तो उसके संकल्प को उससे कोई नहीं छीनता। प्रिया इतने गुस्से में थी कि वह भगवान को ही आग लगाने की बात कहे जा रही थी।
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कोई मेरा बच्चा ला दो, एक ही तो सहारा था मेरा..
घर में शहीद का शव पहुंचते ही मां दहाड़ मारकर रोने लगी। वह कहे जा रही थी, कोई मेरा बेटा ला दो। एक ही तो मेरा सहारा था और उसे ही मेरे भगवान ने मुझसे छीन लिया। मुझे भी अपने बेटे के पास जाना है। उसे एक बार अपने बेटे का दर्शन करवा दो। जब बेटे के बारे में लोगों से पूछती तो सभी यही कहते कि उसे गोली लगी है और वह कोमा में है। कोई यह नहीं बता रहा था कि वह शहीद हो गया है। अब मैं किसके सहारे जीउंगी। किसी तरह मां सुषमा शुक्ला को बहन व अन्य रिश्तेदार सहारा दे रहे थे।
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कोई नहीं खोलेगा ताबूत :
प्रिया कहे जा रही थी कि पूरे परिवार को अकेला छोड़ दो। हम सभी शांति चाहते हैं। कोई ताबूत नहीं खोलेगा। मां अभी मत देखो। मैंने भी नहीं देखा है। दिल्ली में सेना वाले मुझे भी नहीं दिखाए। अब कल (रविवार) की सुबह देखेंगे। मेरी दोनों बेटियां सारा व माना भी कल ही देखेंगी। भैया! (सैनिकों को देखकर) भैया कल सुबह उन्हें दिखाओगे न। वह बार-बार मां से शव नहीं देखने को कह रही थी और यह भी कह रही थी कि कल सुबह सब मिलकर साथ में शव देखेंगे।
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