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प्रतियोगिता से निखरती है प्रतिभा : आरडीडीई

मेदिनीनगर : प्रतियोगिता से प्रतिभा निखरती है। साथ ही छात्र-छात्राओं में नेतृत्व क्षमता का विकास होता

By Edited By: Published: Sat, 24 Sep 2016 09:17 PM (IST)Updated: Sat, 24 Sep 2016 09:17 PM (IST)
प्रतियोगिता से निखरती है प्रतिभा : आरडीडीई

मेदिनीनगर : प्रतियोगिता से प्रतिभा निखरती है। साथ ही छात्र-छात्राओं में नेतृत्व क्षमता का विकास होता है। उक्त बातें पलामू के आरडीडीई रामयतन राम ने कही। वे शनिवार को स्थानीय जिला स्कूल के प्रशाल में आरएमएसए पलामू की ओर से आयोजित कला उत्सव समारोह को संबोधित कर रहे थे। इससे पूर्व राम, पलामू के डीईओ मीना कुमारी राय, जिला स्कूल के प्राचार्य महेंद्र प्रसाद ¨सह आदि ने दीप प्रज्जवलित कर समारोह का उदघाटन किया। आरडीडीइ ने कहा कि कला के प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों के मन में व्याप्त मंच पर प्रदर्शन का डर दूर भगाना है। यहां के विद्यार्थियों में प्रतिभा की कमी नहीं है। जरूरत है निखारने की। पलामू के भी बच्चे राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैं। कहा कि कला उत्सव का आयोजन भारत सरकार की ओर से प्राप्त आदेश पर राज्य सरकार ने कराया है। समारोह में 23 विद्यालयों के विद्यार्थियों ने नृत्य व संगीत प्रतियोगिता में भाग लिया। इसमें कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय पांकी को टाप घोषित किया गया। प्रतियोगिता में कस्तूबरा गांधी आवासीय विद्यालय विश्रामपुर, छतरपुर, हुसैनाबाद, पांडू, समेत उवि हैदरनगर, सर्वोदय बालिका उवि मेदिनीनगर, स्तरोन्नत उवि चियांकी, जनता उवि विश्रामपुर, आदर्श उवि दिपउवा, प्रोजेक्ट उवि लेस्लीगंज, स्त्रोन्नत उवि इटहे लेस्लीगंज, उवि नर¨सहपुर पतरा आदि विद्यालय के विद्यार्थियों ने नृत्य कला प्रतियोगिता में भाग लिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में ब्राहमण उवि के शिक्षक रामाश्रय दुबे समेत अन्य विद्यालयों के शिक्षकों ने अहम भूमिका निभाई। मौके पर संबंधित विद्यालयों के शिक्षक व वार्डेन समेत सैकड़ों विद्यार्थी उपस्थित थे।

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बाक्स कार्यक्रम में दिखी त्रुटियां - प्रतियोगिता में नृत्य प्रस्तुत करने वाली कई विद्यार्थियों ने लीक से हटकर नृत्य प्रस्तुत किया। साथ ही वाद यंत्र पर आधारित एक भी कार्यक्रम पेश नहीं किए गए। नतीजा जजों को स्कूल प्रबंधन को लताड़ना पड़ा। कहा गया कि सरकारी निर्देशों का अनुपालन नहीं किया जाता है। बच्चों को सही ढंग से सभ्यता व संस्कृति पर आधारित गीत-संगीत का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। कई कस्तूरबा विद्यालयों में वाद यंत्र रहने के बावजूद छात्राओं को इस कला की विद्या से वंचित रखा गया है।


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