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'आम' से खास बन गया गांव

भंडरा (लोहरदगा): बहुत ही साधारण। मेहनत-मजदूरी करने वाले आम लोग 'आम' लगाकर खास बन गए। लोहरदगा के भंडर

By Edited By: Published: Fri, 23 Jan 2015 01:52 AM (IST)Updated: Fri, 23 Jan 2015 01:52 AM (IST)
'आम' से खास बन गया गांव

भंडरा (लोहरदगा): बहुत ही साधारण। मेहनत-मजदूरी करने वाले आम लोग 'आम' लगाकर खास बन गए। लोहरदगा के भंडरा प्रखंड का धनामुंजी गांव आर्थिक रूप से समृद्ध तो हुआ ही, पर्यावरण का ऐसा प्रहरी बना कि आज इसकी चर्चा हर ओर है।

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बसंत की आहट के साथ आम्रमंजर की भीनी खुशबू से इस समय तो मानों यहां स्वर्ग की छटा के दर्शन हो रहे हैं। इस गांव के हर घर के नाम पचास पेड़ हैं। इसकी प्रेरणा 24 साल पहले एक महज मामूली किसान झिरगू उरांव ने रखी। गांव में किसानी क्या थी, सिर्फ कहने को। ईट भट्ठे में जी-तोड़ मेहनत के बाद भी ठीक से दो वक्त की रोटी नहीं। झिरगू ने लोगों से कहा, पेड़ लगाओ। शुद्ध हवा भी मिलेगी, चार पैसे भी आएंगे। लोगों को समझाने-बुझाने का असर होने लगा। धीरे-धीरे यह प्रयास ऐसा रंग लाया कि आज इस गांव में 25 हजार से भी ज्यादा आम के पेड़ हैं। झिरगू कहते हैं, पेड़-पौधों के बीच हमने अपने पूर्वजों को देखा, साफ-सुथरी ठंडी हवा के झोंकों के बीच खेले-कूदे। आज तो गाछ-वृक्ष से लोगों का नाता ही टूट रहा है। हवा-बयार के बारे में समझाते तो क्या असर पड़ता, इसलिए गाछ लगाकर पैसे कमाने की बात कही। अब हमारे गांव को खुद देख लीजिए।

गडरप्पो पंचायत अंतर्गत धनामुंजी गांव में आदिवासी समुदाय के 120 परिवार हैं। झिरगू का संदेश आज सबके लिए आदेश है। लोग आम के साथ-साथ दूसरे पेड़-पौधे भी लगा रहे। खेती के साथ-साथ पौधरोपण भी। इसके लिए इस ग्रामीणों ने कभी किसी संस्था या सरकारी संगठन का सहयोग नहीं लिया। खुद की मेहनत और खर्च से यह बाग तैयार किया है। पेड़ों की रक्षा के लिए एक कमेटी बनाई गई है। कमेटी के सदस्य प्रत्येक सप्ताह बैठक करते हैं। अगर किसी ने पेड़ों को नुकसान पहुंचाया तो 501 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है। कमेटी में दानियल लकड़ा, सोमरा उरांव, लोथे उरांव, धर्मसहाय उरांव, चरकू उरांव, अशोक उरांव, संतोष उरांव, जयमंगल उरांव, सोमा उरांव, रामविलास उरांव आदि शामिल हैं। सोमरा उरांव और धर्मसहाय उरांव कहते हैं कि गांव में पेड़ तेजी से कम हो रहे थे, हमलोग चिंतित थे। झिरगू उरांव के प्रयास से ही यह भावना पनपी कि पर्यावरण रक्षा भी हो, चार पैसे भी आएं। इसी कड़ी में सबने पौधरोपण का संकल्प लिया। आज गांव हरा-भरा है। हर परिवार साल में कम-से-कम 70-80 हजार रुपये आम बेचकर कमा लेता है। धनामुंजी गांव से प्रभावित होकर सेमरा, विटपी, धोबाली, गरियाटोली, भैंसमुंदो, पलमी, बेदाल आदि गांवों में भी किसान पौधारोपण कर रहे हैं। झिरगू उरांव कहते हैं कि उन्होंने तो बस एक छोटा-सा प्रयास किया था। खुशी होती है कि लोग पर्यावरण के प्रति चिंतित हैं। यही पेड़-पौधे तो हमारी और आने वाली पीढि़यों के लिए असली धरोहर हैं।


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