अस्पताल बेहाल, झोला छाप मालामाल
लोहरदगा : वैशाखियों के सहारे जिले में चल रही है स्वास्थ्य व्यवस्था। परिणाम सामने है, जहां अस्पताल बेहाल हैं वहीं झोला छाप चिकित्सक मालामाल हो रहे हैं। जिनके पास न तो मेडिकल का प्रमाण पत्र ही है और न ही कोई खास अनुभव वह जिले के ग्रामीण चौक-चौराहों पर क्लीनिक खोलकर अवैध तरीके से दवा का स्टॉक लिए हुए धड़ल्ले से अपनी दुकान चला रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन पर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से दिन ब दिन इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। जिले के 89 सरकारी अस्पताल में कार्यरत 55 चिकित्सकों पर भी ग्रामीणों को भरोसा नहीं रह गया है। वह तो अपना सबकुछ झोला छाप पर लुटाने के बाद भी इन्हीं पर भरोसा करते हैं। जिले के 89 अस्पतालों में से ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में 155 एएनएम के भरोसे ही स्वास्थ्य व्यवस्था चल रही है। ग्रामीण अस्पतालों में डाक्टरों के नहीं जाने और लापरवाही के कई मामले उजागर होने के बाद ग्रामीण और भी भयभीत हैं।
बॉक्स ::: हाल के समय में लापरवाही के तीन मामले हुए हैं उजागर
लोहरदगा : चिकित्सा व्यवस्था में लापरवाही के तीन मामले हाल के समय में उजागर हो चुके हैं। कुडू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सकीय लापरवाही के कारण एक नवजात की मौत और उसके बाद चिकित्सा कर्मियों की लापरवाही से दुर्घटना में घायल रांची के चिकित्सक की मौत हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर सदर अस्पताल में इलाज के दौरान चिकित्सकीय लापरवाही से बालिका की मौत का आरोप भी लगा है।
बॉक्स ::: नियम-कानून की धज्जियां उड़ा रहे झोला छाप
लोहरदगा : निजी प्रैक्टिसनर और झोला छाप डाक्टर धड़ल्ले से नियम-कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कई प्रैक्टिसनरों के पास तो किसी प्रकार का कागजात ही नहीं है। तो कई पारा मेडिकल कोर्स और आरएमपी की डिग्री लेकर बड़ी शान से अपने नाम के आगे डॉ. लिखकर सर्दी-जुकाम से कैंसर तक का इलाज कर रहे हैं। झोला छाप की लापरवाही के तीन मामले भी हाल के वर्षो में सामने आए हैं। एक मामला तो सदर प्रखंड मोड़ में ही उजागर हुआ था। इनके पास दवा रखने के लिए किसी प्रकार का लाइसेंस नहीं है। बावजूद इसके बेखौफ रूप से दवा का स्टाक और बिक्री किया जाता है।
बॉक्स : सुदूरवर्ती अस्पतालों में नहीं जाते चिकित्सक
लोहरदगा : स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली और झोला छाप के मालामाल होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि सुदूरवर्ती क्षेत्र में चिकित्सक नियमित समय पर नहीं जाते हैं। उदाहरण के लिए हेंदलासो, चांपी, मुरमू, पेशरार, पतरातू, गगेया, हेसवे, मुंगो, सेमरा, अकाशी, सलगी, हेंजला, जिंगी, तिसिया, मेरले, हेसापीढ़ी, कंडरा, बरही, चापरोंग, भीठा, नगजुआ, ब्राह्माणडीहा, निंगनी, सलैया, मक्का, जोबांग, सिठियो, सुकुमार, ककरगढ़, गितिलगढ़, सिंजो आदि अस्पतालों में बिरले ही चिकित्सक पहुंचते हैं।
बॉक्स ::: सदर अस्पताल में नहीं है कई जीवन रक्षक दवाएं
लोहरदगा : सदर अस्पताल में दवाओं की कमी भी मरीजों के उदासीन होने का एक कारण है। अस्पताल में दिखाने वाले मरीजों को ज्यादातर बाहर से ही दवा खरीदनी पड़ती है। हाल यह है कि जन औषधि केन्द्र में भी कई दवाएं महीनों से नहीं मंगाई गई है। जिससे मरीज अस्पताल आने से कतराते हैं।
बॉक्स ::: प्रैक्टिसनरों को कराना होगा निबंधन, दवा स्टाक की जांच करेंगे ड्रग्स इंस्पेक्टर : सीएस
लोहरदगा : सिविल सर्जन डॉ. एमएम सेनगुप्ता का कहना है कि निजी प्रैक्टिसनरों को स्वास्थ्य विभाग से निबंधन कराना होगा। उनके कागजातों की जांच भी की जाएगी। दवा का स्टॉक रखने के मामले की जांच ड्रग्स इंस्पेक्टर करेंगे। स्वास्थ्य विभाग बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था को ले प्रतिबद्ध है।