लीड :: मां उग्रतारा नगर मंदिर में मनता है 16 दिवसीय नवरात्र
- सैकड़ों सालों से हो रही है मां उग्रतारा की पूजा उत्कर्ष पाण्डेय, लातेहार लातेहार जिले के चंदवा
- सैकड़ों सालों से हो रही है मां उग्रतारा की पूजा
उत्कर्ष पाण्डेय, लातेहार
लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर में सैकड़ों सालों से मां उग्रतारा की पूजा हो रही है। धर्मिक मामलों के जानकारों की मानें तो संभवत: यह दुनिया का पहला ऐसा मंदिर है जहां 16 दिवसीय नवरात्र का आयोजन होता है। मां उग्रतारा नगर मंदिर में मंगलवार से 16 दिवसीय नवरात्र अनुष्ठान शुरू हो गया। मंदिर पुजारी पं गो¨वद वल्लभ मिश्र ने बताया कि मंदिर में जिउतिया व्रत के पारण के दिन कलश स्थापना की परंपरा मंदिर में रही है। 16 दिवसीय पूजन के बाद विजयादशमी के दिन मां भवगती को पान चढ़ाया जाता है। आसन से पान गिरने के बाद यह समझा जाता है कि भगवती की ओर से विसर्जन की अनुमति मिल गई है तब विसर्जन होता है। इस दौरान हर दो दो मिनट पर आरती की जाती है। कभी कभी तो पूरी रात पान नहीं गिरता और आरतियों को दौर निरंतर जारी रहता है। पान गिरने के बाद विसर्जन की पूजा होती है और शाही राज परिवार एवं पुजारी परिवार के बीच पान का वितरण होता है तभी आम लोगों की पूजा शुरू हो पाती है। मंदिर में झारखंड, बिहार, बंगाल, ओडीसा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, सिक्किम समेत अन्य स्थानों से श्रद्धालु बडी संख्या में पूजन के लिए आते हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि मंदिर पांच हजार वर्ष पुराना है। शाही परिवार के राजा आखेट के लिए लातेहार के मनकेरी जंगल में गए थे, यहां जोडा तालाब में पानी पीने के दौरान देवियों की मूर्तियां राजा के हाथ में आ जा रही थीं। लेकिन राजा मूर्तियों को तालाब में ही डाल दिए, तभी भगवती ने रात में राजा को स्वप्न दिया और मूर्तियों को महल में लाने को कहा। इसके बाद तालाब से मूर्तियों को लेकर राजा अपने महल में पहुंचे और आंगन में मंदिर का निर्माण करा दिया। मंदिर निर्माण से पूर्व प्रतिज्ञा कि जब तक मंदिर का निर्माण पूर्ण नहीं हो जाता है तब तक हमलोग भवन में नहीं रहेंगे और फूस की झोपडी में रहने लगे। इसके बाद मंदिर निर्माण पूर्ण हुआ तो प्रतिज्ञा किया कि जब तक भगवती को स्वर्ण आसन मुहैया नहीं कराया जाएगा तब तक हमलोग पक्के के भवन में नहीं रहेंगे। भगवती को नगर के महल में स्थान देने के बाद राजा चकला गांव में कच्चे मकान में रहने लगे। राजा की इसी प्रतिज्ञा के कारण आज भी पूरे चकला गांव में कच्चे मकान ही हैं। जबकि अभिजीत ग्रुप के पदापर्ण के बाद जमीन के एवज में ग्रामीणों को करोडों रूपये का भुगतान हुआ। ग्रामीण की जीवन जीने की शैली बदली घरों को ठीक किया गया लेकिन किसी भी जाति और धर्म के लोगों ने पक्का भवन नहीं बनवाया। मंदिर से गांव के ¨हदू मुस्लिम सभी जाति के लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। मंदिर के पश्चिमी भाग में विशाल मादागिरी पर्वत के शिखर पर मदार साहब का मजार है। मदार साहब का मजार सैकड़ों वर्ष पुराना है लेकिन अब भी यहां उदी देखने को मिलती है। तीन वर्ष में एक बार मदार साहब के मजार पर पूजा होती है इसके लिए वर्षों से मुस्लिम पुजारी नियुक्त हैं। जिस प्रकार एक राज दरबार में व्यवस्था होती थी वैसी ही व्यवस्था तत्कालीन शासक ने मंदिर के लिए बनाई थी। यह व्यवस्था आज भी कायम है मंदिर में हर कार्य के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी। इसके लिए राजा ने सभी को जमीन दान में दिया था। इसके बाद से पीढ़ी दर पीढ़ी कर्मचारी मंदिर के कार्यों के निर्वहन कर रहे हैं। रहस्य और प्राचीनता की चादर ओढे़ इस मंदिर में एक और अनोखी बात है कि यहां 365 दिन मां भगवती को चावल दाल का भोग लगाया जाता है एक तय मात्रा में बनने वाला भोग मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है। इसके लिए दोपहर में मां भगवती को पूजारी उठाकर रसोई में ले जाते हैं यहां भोग लगने के बाद भगवती को वापस मंदिर में आसान पर ग्रहण कराया जाता है।
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हमारे पूर्वजों ने मंदिर में जो प्रतिज्ञा की थी उसका निर्वहन भगवती की कृपा से आज भी करने में हमलोग लगे हैं। इसमें आम श्रद्धालुओं का सहयोग अभूतपूर्व मिलता है।
- ठाकुर आनंद किशोर नाथ शाही, शाही राज परिवार चकला।
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वर्षों पुरानी परंपरा आज भी मंदिर में जीवंत है। परंपराओं के अनुसार ही मंदिर में सभी कार्य किए जाते हैं।
- गो¨वद वल्लभ मिश्र, वरीय पुजारी मां उग्रतारा नगर मंदिर।