मोक्षदाता हैं भगवान भोलेनाथ : अंकितकृष्ण
जामताड़ा : राजन मनु-शतरूपा की कन्या आकूति का विवाह पुत्रिका धर्म के अनुसार रुचि प्रजापति से तथा प्रसू
जामताड़ा : राजन मनु-शतरूपा की कन्या आकूति का विवाह पुत्रिका धर्म के अनुसार रुचि प्रजापति से तथा प्रसूति कन्या का विवाह ब्रह्माजी के पुत्र दक्ष प्रजापति से किया। उससे उन्होंने सुंदर नेत्रों वाली सोलह कन्याएं उत्पन्न कीं। सती चरित्र की व्याख्यान करते हुए वृंदावन के कथा वाचक श्रीश्री अंकितकृष्ण जी महाराज ने गांधी मैदान में आयोजित श्रीराम कथा प्रस्तुत करते हुए उक्त बातें कही।
प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इनमें से तेरह कन्याएं धर्म की पत्नियां बनी। स्वाहा नाम की कन्या अग्निदेव, स्वधा नामक कन्या समस्त पितरों की तथा सती नाम की कन्या महादेव की पत्नी बनी। सती अपने पतिदेव की सेवा में ही संलग्न रहने वाली थी। दक्ष प्रजापति की सभी कन्याओं को संतान की प्राप्ति हुई, परंतु सती के पिता दक्ष ने बिना ही किसी अपराध के भगवान शिवजी से प्रतिकूल आचरण किया। इसीलिए युवावस्था में ही क्रोधवश योग के द्वारा स्वयं ही अपने शरीर का त्याग कर देने से सती को कोई संतान न हो सकी।
उन्होंने आगे बताया कि महाराज परीक्षित ने श्री शुकदेव जी से पूछा कि प्रजापति दक्ष तो अपनी सभी कन्याओं से विशेष प्रेम करते थे, फिर चराचर के गुरु वैररहित, शान्तमूर्ति, आत्माराम श्री महादेवजी के प्रति द्वेष तथा प्रगाढ़ स्नेहा सती के प्रति अनादर क्यों किया। शुकदेवजी ने कहा कि राजन एक बार प्रजापतियों के यज्ञ में ऋषि, देवता, मुनि और अग्नि आदि अपने-अपने अनुयायियों के सहित एकत्र हुए थे। उसी समय प्रजापति दक्ष ने भी उस सभा में प्रवेश किया। सूर्य के समान तेजोमय प्रजापति दक्ष को सभी सभासदों ने उठकर सम्मान दिया। ब्रह्माजी व महादेव ही अपने-अपने आसनों पर बैठे रहे। दक्ष प्रजापति जगतपिता ब्रह्माजी को प्रणाम कर उनकी आज्ञा से अपने आसन पर बैठ गए। परंतु महादेव जी को पहले से बैठा देख तथा उनसे कुछ भी आदर न पाकर दक्ष क्रोधित हो गए और देवता और अग्नियों सहित समस्त ब्रह्मर्षि गणों से महादेव के प्रति नाराजगी व्यक्त करते हुए अभद्रता पर उतारू हो गए। महाराज जी ने कहा कि भगवान शिव मुक्ति दाता हैं। जीवन के साथ मृत्यु परम सत्य है। जिस व्यक्ति का भी जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। भगवान भोलेनाथ मोक्ष दाता हैं। राजा दक्ष भगवान शिव को पहचाने में विफल रहे और अहंकार के कारण भगवान का अनादर कर दिया। लेकिन, भगवान किसी के अहंकार को नहीं रहने देते हैं। भगवान शिव ने भी दक्ष के घमंड को तोड़कर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
कथा वाचक ने संगीतमय प्रवचन के माध्यम से प्रस्तुत किए गए प्रसंग पर श्रोता भाव विभोर हो गए। आयोजक समिति के सदस्यों की सक्रियता के कारण लोगों को बेहतर सुविधा उपलब्ध हुआ और आनंद पूर्वक श्रीराम कथा का श्रवण किया।