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हर सोमवारी को निकली है कलश यात्रा

नेपाली सेवा समिति ने इस मंदिर का निर्माण काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर किया है। सा

By Edited By: Published: Fri, 29 Jul 2016 10:44 AM (IST)Updated: Fri, 29 Jul 2016 10:44 AM (IST)

नेपाली सेवा समिति ने इस मंदिर का निर्माण काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर किया है। सावन में तो यहां भारी भीड़ होती ही है, अन्य दिनों में भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि भगवान पशुपतिनाथ यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

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इतिहास :::::::::

2005 में नेपाली सेवा समिति ने इस मंदिर की स्थापना की। मंदिर के निर्माण में लगभग 15 लाख रुपये खर्च किए गए। यह मंदिर काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर का प्रतिरूप है। शहर में निवास करने वाले नेपाली लोगों को अपने आराध्य की पूजा करने के लिए काठमांडू न जाना पड़े, इसी उद्देश्य को लेकर नेपाली समाज के लोगों ने मंदिर के निर्माण का आधारशिला रखी।

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तैयारियां ::::::::::

पवित्र सावन मास को देखते हुए मंदिर की भव्य रूप से साज-सज्जा की गई है। सावन में हर रोज सबसे पहले भगवान भोलेनाथ महास्नान, जलाभिषेक और श्रृंगार किया जाता है। सावन की हर सोमवारी को मंदिर समिति के लोग स्वर्णरेखा घाट से मंदिर तक कलश यात्रा निकालते हैं और हर सोमवारी को रुद्राभिषेक का आयोजन करते हैं। हर सोमवार को नेपाली सेवा समिति कांवर यात्रा का आयोजन करती है। इसमें सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। अंतिम सोमवारी को यहां भजन-कीर्तन का कार्यक्रम है। सावन में हर रोज भगवान भोलेनाथ का भव्य श्रृंगार किया जाता है। मंदिर के पुजारी अहले सुबह भगवान को महास्नान कराते हैं। पूजा की शुरुआत भी वही करते हैं। इसके बाद मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। यहां हर रोज सैकड़ों श्रद्धालु जुटते हैं। भक्तों को किसी तरह की असुविधा न हो इसके लिए समिति के सदस्य मुस्तैद रहते हैं।

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कोट :::::::

वैसे तो आम दिनों में सुबह पांच बजे से लेकर रात के नौ बजे तक मंदिर के पट भक्तों के लिए खुले रहते हैं। (दोपहर 12 बजे से शाम चार बजे तक को छोड़कर) पवित्र सावन महीने में यह अवधि एक-दो घंटे के लिए बढ़ा दी जाती है। ताकि कोई भी भक्त भोले बाबा के दर्शन किए बगैर मंदिर से न लौटे। भक्तों की सुविधा का भी यहां विशेष ध्यान रखा जाता है।

-पंडित भीम प्रसाद पोखरेल, मंदिर के पुजारी


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