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एक देश व एक टेस्ट छात्रों के लिए होगा बेस्ट

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : नीट : राहत या मुसीबत, यह सवाल आज पूरे देश में बहस की बड़ी वजह बनी

By Edited By: Published: Tue, 24 May 2016 03:03 AM (IST)Updated: Tue, 24 May 2016 03:03 AM (IST)

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : नीट : राहत या मुसीबत, यह सवाल आज पूरे देश में बहस की बड़ी वजह बनी हुई है। सोमवार को इस सवाल के सटीक जवाब के लिए दैनिक जागरण जमशेदपुर के कांफ्रेंस हॉल में विमर्श किया गया। मंच था 'जागरण विमर्श' का। इसमें आकाश इंस्टीट्यूट जमशेदपुर के सेंटर डायरेक्टर राजेश प्रसाद बतौर विशेषज्ञ वक्ता उपस्थित थे। उन्होंने सवाल का सटीक जवाब देते हुए इसे तर्को के तराजू में तौल नीट से संभावित छात्र हित व राष्ट्र हित के मायने बताये। कहा-'नीट 100 प्रतिशत वरदान साबित होगा।'

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नीट यानी 'नेशनल एलिजिब्लिटी कम इंट्रेंस टेस्ट'। भविष्य में देश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में एडमिशन लेने के लिए लिया जाने वाले एक मात्र टेस्ट। राजेश प्रसाद ने कहा कि नीट लागू हो जाने की स्थिति में मेडिकल एडमिशन के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। मैनेजमेंट कोटा के नाम पर होने वाले 'खेल' से मुक्ति मिल जाएगी। मेडिकल कॉलेजों में पैसे की नहीं चलेगी और छात्रों संग सही मायने में न्याय हो पाएगा।

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एक सीट पर पचास लाख तक का 'खेल'

आकाश इंस्टीट्यूट के सेंटर डाइरेक्टर ने कहा कि निजी मेडिकल कॉलेजों में आज एक-एक सीट पर पचास-पचास लाख तक का खेल होता है। कई घटनाएं तो ऐसी हैं, जिसमें दूसरे राज्यों में पढ़ने गये छात्रों को सिर्फ इसलिए परेशान किया जाता है ताकि वे छात्र मेडिकल कॉलेज छोड़ वापस अपने राज्य चले जाएं, ताकि एक सीट खाली हो तो वे अपने कोटे का खेल कर एक सीट पर पचास लाख तक का लाभ कमा सकें। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें छात्रों को बाहर के मेडिकल कॉलेजों में टिकने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी।

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बचेगा छात्रों का खर्चा, अभिभावकों को भी राहत

फिलहाल जो व्यवस्था है, उसके तहत मेडिकल में प्रवेश प्राप्त करने के लिए छात्रों को दस-ग्यारह प्रवेश परीक्षाएं देनी होती हैं। इसके लिए फार्म भरने में छात्रों को भारी खर्च पड़ता है। एक फॉर्म भरने में कम से कम खर्च दो हजार रुपये आता है। ऐसे में सहज हिसाब लगा लीजिए कि सभी प्रवेश परीक्षाओं का प्रवेशपत्र भरा जाए तो कितना खर्चा पड़ेगा। राजेश प्रसाद ने कहा कि इस भागम-भाग में छात्रों के साथ अभिभावकों की भी काफी भागा-दौड़ी हो जाती है। नीट लागू होने की स्थिति में मेडिकल एडमिशन के लिए सिर्फ एक फॉर्म भरना पड़ेगा और एक ही परीक्षा लिखनी भी होगी। सोचिए कितनी राहत होगी।

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छात्रों के तनाव का स्तर घटेगा, टेंशन होगा कम

नीट लागू होने की स्थिति में दर्जनों मेडिकल इंट्रेंस टेस्ट की जगह एक ही टेस्ट में बैठना होगा। इससे छात्रों का तनाव बेहद कम हो जाएगा। अभी की स्थिति में हर हफ्ते कोई न कोई इंट्रेंस टेस्ट। इससे तनाव तो बढ़ता ही है। राजेश प्रसाद ने कहा कि इंट्रेंस की तैयारी में ऐसे ही छात्रों को काफी स्ट्रेस लेना पड़ता है। अब कम से कम एक परीक्षा की तैयारी करने में उनका टेंशन बेहद कम हो जाएगा। इतना ही नहीं, इतनी प्रवेश परीक्षाएं लिखने के लिए अलग-अलग शहर जाकर टेस्ट देने का टेंशन भी अलग।

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एक होगा सिलेबस, राज्यवार अलग नहीं होगा पैटर्न

नीट से छात्रों को टेस्ट देने में आसानी भी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि नीट लागू होने से पूरे देश में एक ही सिलेबस लागू होगा। अलग-अलग राज्य के हिसाब से टेस्ट का पैटर्न नहीं बदलेगा। फिलहाल की व्यवस्था में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पैटर्न पर परीक्षा ली जाती है। इससे छात्रों को दोहरी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन नीट में पैटर्न एक हो जाने से तैयारी में छात्रों को काफी राहत मिलेगी और परिणाम भी बेहतर आएंगे। सीबीएसई द्वारा एक सिलेबस पर छात्रों की टेस्ट ली जाएगी।

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नीट से मेडिकल के लिए 50,078 छात्रों का होगा चयन

नीट से मेडिकल प्रवेश के लिए 50,078 छात्रों का चयन किया जाएगा। फिलहाल देश में मात्र 154 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं, जबकि निजी मेडिकल कॉलेजों की संख्या 258 है। दस साल पहले मेडिकल कॉलेजों की संख्या अलग थी। दस साल पहले के आंकड़ों के मुताबिक 120 सरकारी मेडिकल कॉलेज थे तो मात्र 80 निजी मेडिकल कॉलेज। पिछले दस वर्षो में निजी मेडिकल कॉलेजों की बाढ़ सी आई है। अभी की व्यवस्था में कई बार इंट्रेंस टेस्ट की तिथि टकरा जाती है या काउंसिलिंग की, जिससे छात्रों को नुकसान होता है।

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अलग-अलग इंट्रेंस की वजह से फंसी रहती थी सीट

नीट की व्यवस्था से पूर्व दस से भी अधिक अलग-अलग इंट्रेंस टेस्ट होने के कारण टेस्ट में शामिल छात्र अलग-अलग टेस्ट के जरिये कई जगह सीट फंसाए रहते थे। मसलन, एक ही छात्र ने चार इंट्रेंस टेस्ट दिये। तीन में उसने सफलता पाई। पहले जहां सफलता पाई, वहां सीट इस उम्मीद में रोके रखा कि शायद दूसरे टेस्ट में बेहतर रैंकिंग मिले। इस तरह उसके अंतिम टेस्ट का फाइनल परिणाम आने तक तीनों जगह सीट फंसी रहती है, जिससे उस सीट पर एडमिशन लेने वाला छात्र की पढ़ाई तीन से चार माह तक पीछे रह जाती है। नीट से इससे मुक्ति मिलेगी।

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जानकारी के अभाव में खाली रह जाती आरक्षित सीट

झारखंड में कई दफा ऐसा हुआ है कि अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित सीटें खाली रह जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके लाभुक वर्ग को मेडिकल में एडमिशन लेने से संबंधित जानकारियां बिल्कुल नहीं होती, या फिर इस पढ़ाई के बहुत महंगे होने की भ्रांति होती है। राजेश प्रसाद ने बताया कि आकाश इंस्टीट्यूट ने टीसीएस के साथ मिलकर ऐसे छात्रों को खोज कर मेडिकल के लिए तैयार करने की कवायद शुरू की है।

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सवाल जवाब

- क्या क्षेत्रीय भाषाओं में नीट की परीक्षा की मांग जायज नहीं?

उ. यह मांग सिर्फ राजनीतिक है। क्या हमारे बच्चे नौकरी पाने पर दक्षिण के राज्यों में नौकरी या पढ़ाई नहीं कर रहे? किस भाषा में कर रहे? सामान्यत: अंग्रेजी में। फिर परेशानी क्या है? यह मांग महज राजनीतिक लाभ के लिए है।

- क्या इंट्रेंस में अच्छा प्रदर्शन न करने पर डोनेशन पर एडमिशन कराना ठीक है?

उ. बच्चे को दो से तीन बार इंट्रेंस जरूर दिलाएं। अगर आप डोनेशन कर एडमिशन दिलाने की आर्थिक क्षमता रखते भी हैं तो बच्चे को इंट्रेंस में जरूर बैठाएं, ताकि उसे एहसास हो कि उसे कितनी तैयारी करनी है।

- क्या निजी कॉलेजों में अच्छे डॉक्टर तैयार नहीं हो रहे?

उ. बिल्कुल तैयार हो रहे हैं। बल्कि कई निजी कॉलेजों में पूर्ण स्कॉलरशिप पर भी बच्चे एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। इन्हें निजी संस्थान इंटरनेशनल एक्सपोजर भी दे रहे हैं।


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