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लक्ष्मी के बाद रात भर पूजते गौरा-गौरी

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : दीपावली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें

By Edited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 02:48 AM (IST)Updated: Tue, 25 Oct 2016 02:48 AM (IST)
लक्ष्मी के बाद रात भर पूजते गौरा-गौरी

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर :

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दीपावली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें कई परंपराओं में समानता होती है। हालांकि अलग-अलग समाज में इस त्योहार को मनाने की परंपरा कुछ भिन्न होती है। इसमें छत्तीसगढ़ी समाज भी है, जहां लक्ष्मी-गणेश की पूजा के बाद रात भर गौरा-गौरी (शिव-पार्वती) की पूजा होती है। समाज में दीपावली से ज्यादा धूम गोव‌र्द्धन पूजा की होती है, जो दीपावली के दूसरे दिन मनाई जाती है। इसमें यादव समाज के साथ-साथ छत्तीसगढ़ का हर समाज बढ़-चढ़कर भाग लेता है। इस संबंध में जब समाज के लोगों से बातचीत हुई, तो कई नई बातें सामने आई।

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पांचों दिन धूमधाम

- दीवाली में साफ-सफाई और घर की सजावट तो सभी करते हैं, हम धनतेरस से अगले पांच दिन तक धूमधाम रहती है। पर्व का समापन भाई दूज से होता है, लेकिन इससे पहले गोव‌र्द्धन पूजा का काफी महत्व रहता है। यादव समाज के लोग उस दिन शाम को शोभायात्रा निकालते हैं, जिसमें शामिल होकर सभी लोग एक-दूसरे को गाय के गोबर का टीका लगाकर बधाई देते हैं।

- लक्ष्मी साहू

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लक्ष्मी पूजा के बाद गोव‌र्द्धन पूजा के दिन गौशाला की साफ-सफाई सुबह से शुरू हो जाती है, तो गायों को नहला-धुलाकर दीये को उलटकर रंगबिरंगे छाप से सजाया जाता है। उनके गले में घुंघरू, झालर आदि लगाए जाते हैं, तो गौशाला के दरवाजे पर गोबर से चौकोर घेरा बनाकर दूब-कुश से खेत की तरह सजाया जाता है। इसके बाद जानवरों को छोड़ा जाता है, जो उस आकृति को खूंदते हुए बाहर खाट पर रखे खास व्यंजन खाते हैं। यह पर्व उन सभी के घर में मनाया जाता है, जो गाय पालते हैं।

- जगन्नाथ साहू

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घर में रहते परिवार के सभी सदस्य

- दीपावली व गोव‌र्द्धन पूजा का छत्तीसगढ़ी समाज में क्या महत्व है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दो दिन परिवार के सभी सदस्य घर पर ही रहते हैं। नौकरी करने वाले छुट्टी ले लेते हैं, तो बाहर रहने वाले भी घर आ जाते हैं। बहुएं भी ससुराल में ही रहती हैं, मायके में दीवाली नहीं मनातीं।

- शंकर लाल

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रात भर होती गौरा-गौरी पूजा

दीपावली के दिन शाम को लक्ष्मी की पूजा होती है, तो उसके बाद रात भर गौरा-गौरी की पूजा होती है। लक्ष्मी पूजा के बाद मिट्टी की मूर्ति बनाई जाती है। महिलाएं रात भर गीत गाती हैं, तो कुश की रस्सी बनाकर पुरुषों के बांह पर प्रहार करती हैं। दूसरे दिन सुबह में गौरा-गौरी या शंकर-पार्वती की मूर्ति को टोकरीनुमा कलश में रखकर विसर्जन किया जाता है।

- लखनराम साहू

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दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा के बाद गौरा-गौरी की मूर्ति बनाई जाती है। इसे कुंवारी लड़कियां सिर पर कलश सहित रखकर मोहल्ले-गांव का भ्रमण करती हैं। टोकरीनुमा कलश में दूध में उबाले गए चावल के आटा से बना प्रसाद रखा जाता है, जिसे दूधफरा कहा जाता है। इसमें घी-तेल का उपयोग नहीं किया जाता है। यही पकवान गौरा-गौरी को भोग लगाया जाता है, जिसे दूसरे दिन सभी लोग ग्रहण करते हैं।

- उमा साहू

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छत्तीसगढ़ी समाज की कई परंपरा अब प्रचलन में नहीं है। बताते हैं कि पहले यम द्वितीया के दिन चावल के आटा से दीया बनाकर जलाया जाता था। उस जलते हुए दीये को पुरुष निगल जाते थे। अब यह देखने को नहीं मिलता। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति दीर्घायु होता है। पहले सोनारी की सातों बस्तियों में छत्तीसगढ़ी समाज के लोग सामूहिक रूप से गौरा-गौरी की पूजा करते थे, अब कुछ ही स्थानों पर होता है।

- जया साहू


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