रेडियो ने बढ़ाया ज्ञान, दिया सम्मान
वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर :
उस जमाने में सिर्फ रेडियो ही देश-दुनिया की जानकारी देता था। फिल्मी गानों से लेकर खबरों और सम-सामयिक विषयों के लिए यही एक माध्यम था। हालांकि उस वक्त भी कई लोग सिर्फ समाचार सुनने के लिए रेडियो खोलते थे, तो कुछ गाने सुनने के लिए। कुछ लोगों के लिए रेडियो सुनना जुनून से कम नहीं था। इन्हीं में से एक हैं उलियान-कदमा निवासी चिन्मय महतो। महतो के लिए रेडियो जीवन का अंग बन गया था, वह आज भी है। शायद यही वजह रही कि रेडियो सुनते-सुनते न केवल दुनियाभर के प्रसारण केंद्रों से सीधे जुड़ गए, बल्कि उनके द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित भी हुए। रेडियो जर्मनी की 'डोयचे विले' या 'द वॉयस ऑफ जर्मनी', रेडियो जापान के 'निपोन होशो कोकोई' या 'एनएचके' के अलावा रेडियो रोमानिया से चिन्मय को ढेरों ईनाम भी मिले।
रेडियो से जुड़ाव की गाथा सुनाते हुए चिन्मय ने बताया। बात 1955 की है। उनके पिता एयरफोर्स में थे और इसी में उन्हें जापान जाने का मौका मिला। वहीं से वे एक रेडियो लाए तो पूरी बस्ती में शोर मच गया। उस वक्त आसपास में किसी के पास रेडियो नहीं था, लिहाजा समाचार सुनने के लिए भीड़ जुटती थी। अधिकांश लोगों के लिए यह किसी कौतूहल से कम नहीं था। कई लोग तो रेडियो बंद होने तक जमे रहते। जब वह भी बड़े हुए तो उत्सुकता बढ़ी। कुछ दिनों बाद रेडियो खराब हो गया तो बेचैनी बढ़ गई। वह और उनके चचेरे भाई स्व. सुधीर महतो (झारखंड के पूर्व उपमुख्यमंत्री) जब कक्षा सात में थे तो मिलकर चार सौ रुपये में नेल्को का ट्रांजिस्टर खरीदा। वे लोग छिप-छिपकर रेडियो सुनते थे। इसी दौरान दोनों फरमाइश भेजने लगे। जब गानों के साथ उन दोनों का नाम आने लगा तो उनके साथ दूसरे सहपाठी भी हमसे जुड़ने लगे। हमने स्कूली पढ़ाई के दौरान ही 'गाइड इंटरनेशनल रेडियो लिसनर्स क्लब' बना लिया। इसके बाद हम इसी बैनर से गानों की फरमाइश भेजने लगे। धीरे-धीरे हम दोनों लोकप्रिय होने लगे, तो हममें गंभीरता भी आने लगी। अब हम गाने सुनने के साथ देसी-विदेशी प्रसारण केंद्रों से सम-सामयिक विषयों पर चर्चा, खबरें और ज्ञानोपयोगी जानकारियों का संकलन करने लगे। लोग हमारे सामान्य ज्ञान की तारीफ करने लगे तो हमारा हौसला बढ़ा। आज भी रात दो बजे नींद खुलती है तो रेडियो ट्यून करना नहीं भूलता।
जिसके रहे मुरीद
शुरुआत से काफी पहले तक चिन्मय बीबीसी, वायस ऑफ अमेरिका, डोयचे विले, एनएचके, रेडियो रोमानिया, रेडियो फिलीपींस, रेडियो तेहरान, रेडियो ईरान, रेडियो काइरो (इजिप्ट) आदि नियमित सुनते हैं, जहां से हिंदी, बांग्ला, उर्दू व अंग्रेजी में प्रसारण होते थे। इनके अलावा रेडियो कनाडा, रेडियो कुवैत, रेडियो सिंगापुर इंटरनेशनल, रेडियो नीदरलैंड, रेडियो प्राग (चेकोस्लोवाकिया) आदि सुनते थे। इन सभी केंद्रों से शाम छह-सात बजे से भारतीय भाषाओं में प्रसारण होते थे, हालांकि इनमें से अधिकांश केंद्रों से अब बांग्ला व उर्दू प्रसारण बंद हो गए हैं।
जमशेदपुर रेडियो श्रोता संघ
चिन्मय महतो बताते हैं कि वह जमशेदपुर रेडियो श्रोता संघ के भी सचिव हैं जिसका गठन 1968 में किया गया था। इसके कई संस्थापक सदस्य दिवंगत हो चुके हैं। इनमें जंगबहादुर सिंह (गोलपहाड़ी) काफी लोकप्रिय हुए। अब भी इसके करीब 35 सदस्य हैं। पहले हर साल देश भर में श्रोता सम्मेलन होते थे जिसमें शामिल होने का मौका मिलता था। धनबाद में 1979 में अखिल भारतीय रेडियो श्रोता सम्मेलन हुआ था जिसमें रेडियो सिलोन (श्रीलंका) के उद्घोषक रिपुसूदन कुमार इलाहाबादी मुख्य अतिथि थे।