शिक्षक-ग्रामीणों ने मिलकर सरकारी स्कूल को बनाया आदर्श
हजारीबाग के शाहपुर में शिक्षकों और ग्रामीणों ने मिलकर सरकारी स्कूल की परिभाषा ही बदल दी है।
अरविंद राणा, हजारीबाग। गांवों का सरकारी स्कूल यदि शतप्रतिशत सार्थक सिद्ध हो जाए तो देश की तस्वीर बदलने में वक्त नहीं लगेगा। गरीबी उन्मूलन का बड़ा लक्ष्य छोटे-छोटे गांवों के इनं आधे-अधूरे स्कूलों को पूर्ण आदर्श स्कूल बनाकर प्राप्त किया जा सकता है। झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्र का एक ग्रामीण सरकारी स्कूल चर्चा में है।
यहां शिक्षकों और ग्रामीणों ने साथ मिलकर सरकारी स्कूल की परिभाषा ही बदल दी है। हजारीबाग जिले के कटकमसांडी इलाके के शाहपुर गांव का यह शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अब उन सभी सुविधाओं से लैस हो चुका है, जिनकी एक आदर्श स्कूल में आवश्यक्ता होती है। नतीज यह कि 500 बच्चे नियमित तौर पर कक्षाओं में आते हैं। परीक्षा परिणाम शतप्रतिशत रहता है। ऐसा कमाल हर गांव में हो जाए तो देश में बीपीएल कार्ड की जरूरत नहीं पड़ेगी।
मिलजुल कर बदली तस्वीर:
ग्रामीणों से मिलने वाले नियमित चंदे के बूते अब यहां आधुनिक पुस्तकालय है। सोलर लाइट की सुविधा है। आधुनिक प्रयोगशाला है। खेल-कूद की सभी सुविधाएं हैं। पेंटिंग और म्यूजिक सहित विविध अभिरुचियों की कक्षाएं लगती हैं। साफ-सुथरा और सुंदर परिसर है, जिसमें सुव्यवस्थित 19 शिक्षण कक्ष हैं। बच्चों और शिक्षकों की अटेंडेंस शतप्रतिशत रहती है।
सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं टीम भावना से काम करते हैं। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और शिक्षा के बूते वे भविष्य में कुछ मुकाम हासिल कर सकें, शिक्षकों-अभिभावकों का उद्देश्य यही है। अच्छी बात यह है कि स्कूल का रिजल्ट शतप्रतिशत रहता है। यहां के अनेक बच्चे नवोदय विद्यालय के लिए आसानी से चयनित हो जाते हैं। विज्ञान प्रदर्शनी, विज्ञान प्रतियोगिताओं जैसे अनेक आयोजनों में जिला व राज्यस्तर पर यहां के बच्चों ने झंडे गाड़े हैं।
शिक्षक की प्रेरणा ने बदली सोच :
बदलाव का यह सिलसिला शुरू हुआ था 11 साल पहले। प्रेरक बने थे यहां पदस्थ सहायक विज्ञान विषय के शिक्षक संजय कुमार। संजय आज भी इसी स्कूल में पदस्थ हैं। गांव वाले उनका तबादला नहीं होने देते। तबादला होने पर उच्च अधिकारियों तक पहुंच मिन्नतें कर तबादला रुकवा देते हैं।
पिछले 11 सालों में न संजय ने न केवल स्टाफ को प्रेरित किया, बल्कि ग्रामीण अभिभावकों की सोच में भी उल्लेखनीय बदलाव लाने में सफल रहे। जिला मुख्यालय से 33 किलोमीटर दूर स्थित यह विद्यालय जिस शाहपुर गांव में है, वह सर्वाधिक उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में आता है। लेकिन ग्रामीणों के एकजुट होने के कारण स्कूल और बच्चों की शिक्षा में कोई रुकावट नहीं आने पाती।
सभी ने समझा दायित्व :
11 साल पहले यह स्कूल एक इमारत से अधिक और कुछ नहीं था। बच्चों की गिनती न के बराबर हुआ करती थी। संजय ने शिक्षकों के साथ घर-घर जाकर अभिभावकों को प्रेरित किया। धीरे-धीरे बच्चे स्कूल आने लगे। उन्होंने शिक्षकों को भी प्रेरित किया कि वे हर वह कोशिश करें जिससे बच्चों का मन पढ़ने में लगने लगे। बात बन गई।
शिक्षा के स्तर में सुधार कर तथा गांव और विद्यालय में शैक्षणिक वातावरण बनाकर स्कूल के शिक्षक ग्रामीणों का विश्वास जीतने में सफल रहे। परिणाम यह हुआ कि अभिभावकों ने विद्यालय की हर जरूरत को पूरा करने में सहयोग देना प्रारंभ कर दिया। जिस भी चीज की जरूरत पड़ती और लगता कि सरकारी प्रक्रिया के बूते उसे प्राप्त करना कठिन होगा, तब ग्रामीण स्वत: चंदा कर उस कमी को तत्काल पूरा करने की कोशिश करते।