नेकी और भलाई की सीख देता है रोजा : मौलाना जाबिर
हजारीबाग : माहे रमजान अपनी अहमियत के एतबार से साल के और महीनों पर इसलिए भी भारी है कि अल्लाह तआला का
हजारीबाग : माहे रमजान अपनी अहमियत के एतबार से साल के और महीनों पर इसलिए भी भारी है कि अल्लाह तआला का फरमान है कि ऐ ईमान वालों रोजा तुम पर इसलिए फर्ज किया गया ताकि तुम नेक और परहेजगार हो जाओ। यह बातें मशहूर आलिमे दीन और मदरसा गुलशने मदीना रोमी के नाजिमे आला मौलाना जाबिर हुसैन सिद्दीकी ने कही।
उन्होंने कहा कि माहे रमजान के तीन अशरे होते हैं जो अपनी फजीलत और नाकाबिले बयान हैं। खुदा करे हम लोग माहे रमजान की फजीलतों व बरकतों का खूब खूब फायदा उठाएं। आगे कहा कि इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना रमजान अपनी अहमियत, अपनी बरकत, अपनी अजमत और अपनी फजीलत के एतबार से पूरी दुनिया में मशहूर है। अरब मुल्कों में तो इस महीने का बाकायदा इस्तकबाल किया जता है। इस महीने में अहले ईमान फजीलत और पाक नीयत के साथ रोजा रखकर पूरी दुनिया के इंसानों के लिए अमन व सुकून बिखेरते हैं। देखा यह जाता है कि इस मुबारक महीने में जो लोग मजहबी नहीं होते हैं वे भी इस महीने की बरकत से नेक और परहेजगार बन जाते हैं। वे कुरआन शरीफ की तिलावत करते हैं और दीगर इबादत में 24 घंटे मशरूफ हो जाते हैं। प्यारे नबी स. ने फरमाया कि इस महीने में शैतान को इसलिए कैद कर दिया जाता है कि वह अल्लाह के नेक बंदों को गुमराह न कर सके। रोजे का मकसद यह है कि एक इंसान दूसरे इंसान के शर और फितने फसाद से दूर रहे सके। इस महीने में पूरी दुनिया में अमन व सुकून, नेकी व परहेजगारी का सुनहरा माहौल कायम हो जाता है। लोग गरीबों, मजबूरों और मोहताजों की मदद करके उनकी तकलीफ को दूर कर सकें। रोजेदार अपने सिजदों व अपनी इबादत से मस्जिदों को आबाद कर देते हैं। वह गरीबों, मोहताजों की मदद कर उनकी परेशानी दूर करते हैं। पूरी दुनिया में रमजान शरीफ के आने से अमन व शांति व परहेजगारी कायम हो जाती है। इस महीने में मोमिन इस लिए अल्लाह की नजदीकी हासिल करता है और परहेजगार बन जाता है कि वह अपने नफस को कुचल देता है और दीने मुहम्मदी के मुताबिक ¨जदगी गुजरने लगता है। दुनिया व आखरत में उसे भलाई हासिल होती है।