लेवी के लिए टीएसपीसी में पड़ी फूट, वर्चस्व की लड़ाई में गंवानी पड़ी जान
लेवी और दबदबा का कारण बड़कागांव, केरेडारी, टंडवा, पिपरवार में लगी बड़ी-बड़ी कोल कंपनियां हैं।
जेएनएन, चतरा/हजारीबाग। टीएसपीसी में लेवी की राशि के लिए आखिरकार फूट पड़ ही गई। फूट भी ऐसी कि टीएसपीसी के सदस्यों ने अपने ही छह लोगों को मार डाला। तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी के भीतर वैसे तो पहले से ही बहुत कुछ सामान्य नहीं था, लेकिन संगठन के वरीय नेता इससे कभी सार्वजनिक होने नहीं दिया।
इसी बीच चतरा, हजारीबाग और रांची सीमा पर शनिवार की मध्य रात्रि के बाद जो कुछ हुआ, वह किसी से छिपा नहीं रह गया। अब क्षेत्र में माओवादियों के आगे बढ़ने की संभावना बढ़ गई है। चतरा जिला प्रारंभ से ही माओवादी उग्रवादियों का गढ़ रहा है। पुलिस की सक्रियता की वजह से भाकपा माओवादी उग्रवादियों का प्रभाव बहुत हद तक कम हुआ है।
खोखे तक चुन ले गए
केरेडारी: अलसुबह पहुंचे नक्सलियों ने किसी महत्वपूर्ण साक्ष्य को मौके पर नहीं छोड़ा। नक्सली मौके से खोखे तक चुन ले गए। करीब 150 घर का यह गांव है। घटना स्थल पर बिखरे मांस के लोथेड़े, खोपड़ी व सिर के बाल घटना की विभिषिका बता रही थी। घटना के पांच दो सौ फीट दायरे में खून, जूते, खून से सनी चटाई को देखकर यह स्वत: अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोते हुए लोगों को ही निशाना बनाया गया है। केरेडारी, बुढमू एवं पिपरवार थाना की पुलिस एक साथ 10 बजे सर्च ऑपरेशन में जुटी।
इंसास व थ्री नॉट थ्री से मारी गोलियां
अरविंद राणा, हजारीबाग। रांची-हजारीबाग के सीमांचल क्षेत्र हेंदगीरी में प्रतिबंधित नक्सली संगठन तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (टीएसपीसी) के छह एरिया कमांडरों के ढेर होने के पीछे लेवी की लड़ाई है। एसपी अनूप बिरथरे के नेतृत्व में पहुंची पुलिस टीम ने मौके से इंसास व थ्री नॉट थ्री का खोखा बरामद किया है। क्षेत्र में टीएसपीसी के साथ जेपीसी व अब झारखंड टाइगर ग्रुप भी दबदबा बनाने में लगी है। लोकल आपराधिक गिरोह के लोग भी इस अभियान में जुटे हैं।
लेवी और दबदबा का कारण बड़कागांव, केरेडारी, टंडवा, पिपरवार में लगी बड़ी-बड़ी कोल कंपनियां हैं। पिछले पांच साल में एनटीपीसी, आम्रपाली समेत 10 अधिक कंपनियां यहां काम कर रही हैं। इसे लेकर उग्रवादी संगठन आपस में भिड़ते रहे हैं। हालांकि इतने बड़े पैमाने पर हत्याओं का यह पहला मामला है। एसपी अनूप बिरथरे देर रात तक सर्च अभियान में जुटे थे।
वर्चस्व की लड़ाई में कई को गंवानी पड़ी है जान
संवाद सूत्र, कटकमसांडी। नक्सलियों के वर्चस्व की लड़ाई में दर्जनों नक्सली सहित बेकसूरों की जान गई है। वर्ष 2010 तक हजारीबाग जिले के विभिन्न प्रखंडों के जंगली इलाके में भाकपा माओवादियों का साम्राज्य कायम था। उस समय भाकपा माओवादियों ने खौफ व दहशत फैलाने के लिए सबसे पहले वर्ष 1997 में एलआइसी एजेंट नंदकिशोर राम की हत्या बेंदी में की थी।
इसके बाद वर्ष 1999 में सरपंच महावीर सिंह की हत्या डांटों में हुई। वर्ष 2003 में माओवादियों ने डांटो में ही पूर्व मुखिया चेतनारायण यादव की नृशंस हत्या कर दी। इसके बाद वर्ष 2009 तक हत्याओं का सिलसिला जारी रहा। माओवादियों ने वर्ष 2004 में कांग्रेस नेता अशोक सिंह को बाझा में बेरहमी से कत्ल कर दिया। वर्ष 2005 में मेराल निवासी झोलाछाप चिकित्सक जुगेश्वर गंझू की गोली मारकर डहुरी में हत्या की गई।वर्ष 2010 में नक्सलियों ने मुखबिरी का आरोप लगाकर छकोड़ी गंझू की हत्या कर दी।
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आपस में टीएसपीसी के दो गुट भिड़े हैं। मरने वाले में तीन लोगों का नाम सामने आ रहा है। वर्दी आदि बरामद की गई है। पुलिस मामले की पड़ताल कर रही है। कॉ¨बग ऑपरेशन चल रहा है।
- अनूप बिरथरे, एसपी, हजारीबाग
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