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सामूहिकता ने खिलाया गुल, बन गया पुल

बरसात से पहले कोयल नदी पर सामूहिक प्रयास से पुल बांध कर ग्रामीणों ने कई गांवों की जिंदगी नारकीय होने से बचा ली है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Fri, 08 Jul 2016 05:02 AM (IST)Updated: Fri, 08 Jul 2016 05:16 AM (IST)
सामूहिकता ने खिलाया गुल, बन गया पुल

शशि शेखर, चौपारण (हजारीबाग)। सालों सरकार और प्रशासन का मुंह ताकते रहे। आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। फिर ठान लिया कि अब किसी के आसरे नहीं रहना। खुद मेहनत की ठानी और हाथ से हाथ जोड़े। चार माह अनवरत एक दर्जन से अधिक गांवों के हजारों लोगों ने श्रमदान किया। चंदा कर पैसे जुटाये। हजारीबाग के चौपारण स्थित लराही गांव में यह मेहनत अब रंग लाई है। बरसात से पहले कोयल नदी पर सामूहिक प्रयास से पुल बांध कर ग्रामीणों ने कई गांवों की जिंदगी नारकीय होने से बचा ली है। दो किलोमीटर का कच्चा रास्ता भी बनाया गया है।

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दरअसल लराही व उसके आसपास के कई गांवों के ग्रामीणों का भागीरथी प्रयास समस्या को मात देने की गाथा है। लराही गांव के पहले कोयल नदी व बराकर नदी के पानी का बहाव रहता है। बरसात के दिनों में लगभग चार किमी का इलाका पूरी तरह जलमग्न रहता है। ऐसे में बिना सरकारी सहायता के चंदा से कई लाख रुपये एकत्रित कर श्रमदान से पुल व कच्चा रास्ता बना लिया। संघर्ष से सपने को सच करने की सफलता से दर्जनों गांव के लोगों की आंखों में गजब की खुशी है।

बरसात में इलाका बन जाता था टापू : पुल व लगभग दो किमी कच्चा पथ बन जाने से ग्रामीणों को बरसात के दिनों में टापूमय जीवन जीने से बचने के अलावा लगभग बीस किमी अतिरिक्त चलने से छुटकारा मिलेगा। साथ ही चौपारण के ङ्क्षसघरांवा मोड़ से तिलैया जाने की दूरी भी कम हो जाएगी। ग्रामीणों के इस काम में सरकारी सहायता तो नहीं मिली, परंतु विधायक मनोज यादव ग्रामीणों की हमेशा मनोबल बढ़ाते रहे।

उन्होंने कई बार निर्माण स्थल पर जाकर लोगों का उत्साह बढ़ाया साथ ही राशि देकर सहयोग किया। मई माह में सांसद सह केंद्रीय राज्य मंत्री जयंत सिन्हा भी लराही पहुंचे थे। उन्होंने भी सहयोग की बात कही। परंतु वर्षों आश्वासनों से टूट चुके लोगों श्रमदान का ही रास्ता चुना।

सबसे बड़ी बात यह है कि ग्रामीणों ने कम खर्च में जुगाड़ तंत्र से बिना किसी तकनीकी विशेषज्ञ की सहायता से पुल को आकार दिया है, जिसे बनाने के लिए सरकारी अभियंता लाखों रुपये का प्राक्कलन तैयार करने की बात कहते हैं।

ग्रामीणों का नेतृत्व करने वाले त्रिलोकी यादव इसके लिए गया के दशरथ मांझी को प्रेरणास्रोत बताते हैं। त्रिलोकी और श्रमदान करने वाले दूसरे लोग अब बस यही दुआ मांग रहे हैं कि इस भारी बरसात में यह पुल पानी का बहाव झेल ले।

तीन दर्जन गांवों की बदलेगी ङ्क्षजदगी :

पुल व रास्ता बनने से लगभग तीन दर्जन गांवों को लाभ होगा। इससे लराही, टोईया, गोरखवा, गोङ्क्षवदपुर, भटबिगहा, नवादा, सेलहारा खुर्द, कारी पहरी, डेबो, रेंबो, करमा, खक, कोरियाडीह, पिपराडीह, वृंदा, शरदवाटांड़ आदि गांवों के लोग लगभग बीस किमी अतिरिक्त चलने से बचकर सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग जीटी रोड से जुड़ सकते हैं। इसके पहले बरसात के दिनों में बांस के पुल से लोग आना-जाना करते थे।

1997 में हुई थी भीषण दुर्घटना:

1997 में नदी पार करने के क्रम में नाव डूबने से नौ लोगों की मौत हो गई थी। इसमें कई स्कूली बच्चे भी थे। बरसात में इलाका पूरी तरह से कट जाता था। ग्रामीणों को कई किमी दूसरे रास्ते चलकर मुख्य पथ पर आना पड़ता था। परंतु, लाचारगी के कारण लोगों ने आना-जाना जारी रखा। इसी टीस में लोगों ने निर्माण आरंभ किया।


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