तकनीक में दम, बहुफसलीय खेती नहीं कम
गोड्डा : इसे तकनीक का चमत्कार ही कहेंगे कि वर्षा पर आश्रित रहने वाले किसान बहुफसलीय खेती कर आर्थिक स्थिति सुधारने में कामयाब हुए हैं। इस कामयाबी के साथ वे दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बने हैं।
सिंचाई सुविधा की बेहतर व्यवस्था न होने कारण किसानों को मानसून आधारित खेती करनी पड़ती है। कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों को बहुफसलीय खेती के लिए प्रेरित किया। किसानों ने मेहनत के बलबूते तकनीकी को अपनाकर सफलता का मार्ग प्रशस्त किया।
क्या है तकनीक :
बहुफसलीय खेती में विशेष कर सब्जियों को प्राथमिकता दी जाती है। इसमें अधिक एवं कम समय में तैयार होने वाली सब्जियों का चयन किया जाता है। पहले ओल (सुरन) को खेत में लगाते हैं। उसके साथ ही उसी खेत में साग और करेला बोते हैं। पहले साग तैयार होता है, उसकी समाप्ति के बाद करेला और फिर अंत में ओल फसल मिलती है। नतीजतन कम पानी में तीन उपज मिल जाती है।
किसान दिनेश मंडल, हरिहर पंजियारा, सुखदेव साह, मणीनंदन पंडित, हरि किशोर आदि की माने तो एक खेत में ही कम पानी में तीन फसल तैयार कर काफी खुशहाल हैं। धान के अलावा पूरे साल खेतों से सब्जी मिलती है। सब्जी बेचने पर फायदा हो रहा है। बहुफसलीय खेती का यह काम पीपरा, चिलरा, महुआ सोल, हरकट्टा, जामजोरी, बेलबथान नुनबट्टा, करमाटांड़ सहित दर्जन भर गांवों में हो रहा है।
पीपरा व चिलरा पंचायत में केन्द्र द्वारा 10 एकड़ भूमि पर खेती करायी जा रही है। इसके सफल प्रयोग से अब दर्जनों गांव के किसान तीन सब्जी लगाकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। आशा है कि जल्द ही जिला सब्जी के मामले में जिला आत्मनिर्भर बन जायेगा।
- डॉ. राजपाल सिंह, समन्वयक कृषि विज्ञान केंद्र