सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...
कश्मीर में भले ही मुट्ठी भर आतंकवादी भारत विरोधी अभियान छेड़कर इंडिया गो बैक का नारा लगा रहे हों, लेकिन कश्मीर की आम जनता का उन्हें समर्थन हासिल नहीं है।
मो. मुजतबा, गिरिडीह। कश्मीर में भले ही मुट्ठी भर आतंकवादी भारत विरोधी अभियान छेड़कर इंडिया गो बैक का नारा लगा रहे हों, लेकिन कश्मीर की आम जनता का उन्हें समर्थन हासिल नहीं है। कश्मीर के युवा व भावी पीढ़ी आतंकियों के विचारों से तो बिल्कुल सहमत नहीं है। अलगाववादियों की लाख मशक्कत के बावजूद कश्मीरी बच्चे अपने देश यानी भारत से ही प्रेम करते हैं। वे पढ़-लिखकर देश की सेवा करना चाहते हैं। उनकी तमन्ना इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक व नेवी अफसर बनने की है। उनके लिए दुनिया में हिन्दुस्तान से अच्छा कोई देश नहीं है। गिरिडीह जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर नवोदय विद्यालय गांडेय में शिक्षा ग्रहण कर रहे कश्मीर घाटी के आधा दर्जन बच्चों ने बातचीत में ऐसी ही भावना का इजहार किया।
जंगल व पहाड़ के बीच स्थित विद्यालय में पढ़ रहे ये बच्चे वातावरण से थोड़ा परेशान हैं, लेकिन शिक्षक-शिक्षिकाओं के व्यवहार के कायल हैं। उनकी मानें तो टीचर्स के व्यवहार से यह नहीं लगता कि वे अंजान जगह पर हैं। छोटे बच्चे उन्हें कश्मीरवाले भैया कहकर प्यार से पुकारते हैं। इन्होंने बताया कि घाटी में जो कुछ हो रहा है उसका शिक्षण संस्थानों पर खास असर नहीं पड़ता है।
कश्मीरी बच्चों का सपना
कश्मीर के सोपोर के रहनेवाले छात्र मोनिष मुश्ताक ने बताया कि वह बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता है। डॉक्टर बनकर वह देश के गरीबों की सेवा करना चाहता है। पुलवामा के रहनेवाले शाहीद हसन इंजीनियर बनकर देश के विकास में भागीदार बनना चाहता है। पमपोर निवासी तौहिद बड़ा होकर कुछ अलग करना चाहता है। वह जेनेटिक्स की पढ़ाई करना चाहता है। तरालका रहने वाला अमान फारुख एस्ट्रोनेट बनना चाहता है। पुलवामा का काउवैस इंजीनियर बनकर देश की सेवा करना चाहता है। पुलवामा का ही आसिफ नेवी में शामिल होकर देश की सेवा करना चाहता है। इन बच्चों को भारत से प्रेम है।
संस्कृति-सभ्यता से होते रूबरू
नवोदय विद्यालय गांडेय के प्राचार्य एस त्याग राजन ने बताया कि कश्मीरी बच्चों को देश के दूसरे इलाकों की संस्कृति, माहौल व रहन-सहन की जानकारी लेने और अन्य प्रांतों के बच्चों से घुलने-मिलने के लिए एक साल के लिए वहां के नवोदय विद्यालय में पढऩे भेजा जाता है। प्रत्येक साल यहां छह बच्चे आते हैं। कश्मीरी बच्चे काफी मेधावी एवं अनुशासनप्रिय हैं। वे यहां के बच्चों के साथ जल्द ही घुलमिल गए।