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पहाड़ पर आखिरी लड़ाई लड़ रहे नक्सली

गिरिडीह : नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के लिए पारसनाथ पर्वत का बड़ा महत्व है। झुमरा पहाड़ पर कमजोर पड़ने

By Edited By: Published: Mon, 30 May 2016 01:07 AM (IST)Updated: Mon, 30 May 2016 01:07 AM (IST)

गिरिडीह : नक्सली संगठन भाकपा माओवादी के लिए पारसनाथ पर्वत का बड़ा महत्व है। झुमरा पहाड़ पर कमजोर पड़ने के बाद कहा जाता है कि पारसनाथ पर्वत नक्सलियों का मुख्यालय बन गया है। यही कारण है कि यहां उनकी उच्चस्तरीय कमेटियों की बैठक समय-समय पर होती है। इसे नक्सलियों का अभेद दुर्ग कहा जाता है, लेकिन अब यहां भी वे खतरे में हैं। यही कारण है कि अपने पारसनाथ पहाड़ गढ़ को बचाने के लिए माओवादी आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं।

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दूसरी ओर, इस लड़ाई में नक्सलियों को उखाड़ फेंकने के लिए सीआरपीएफ एवं अन्य पुलिस टीम भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। नक्सलियों का हथियारबंद दस्ता करीब डेढ़ माह से पहाड़ में डेरा डाले हुए हैं जबकि उन्हें यहां से बाहर निकलने नहीं देने के लिए पहाड़ पर सीआरपीएफ जगह-जगह करीब आधा दर्जन कैंप लगाकर सर्च ऑपरेशन चला रही है।

दोनों के बीच अब तक चार बार मुठभेड़ हो चुकी है लेकिन न सीआरपीएफ पीछे हट रही है और न ही नक्सली। नक्सलियों के पारसनाथ जोन का कमांडर अजय महतो है। सीआरपीएफ, जैप एवं झारखंड जगुआर के जवानों को तो दो से तीन दिन में बदल दिया जाता है लेकिन नक्सली पहाड़ एवं जंगल में लगातार कैंप किए हुए हैं। उनके साथ हो रही मुठभेड़ से यह बात साबित होती है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार दस्ते में करीब सौ से अधिक नक्सली शामिल हैं। जानकारों का कहना है कि पहाड़ पर पानी का कोई प्रबंध नहीं है। ऐसे में वे डेढ़ माह से कैसे कैंप किए हुए हैं, जबकि पहाड़ पर अब आम आदमी शायद ही कहीं नजर आता है। पारसनाथ पर्वत पर स्थित जल मंदिर, डाकबंगला एवं सड़क निर्माण स्थल पर सीआरपीएफ का कैंप है। पहाड़ पर अलग से दो कंपनी कैंप कर सड़क बनवा रही है। शनिवार को अहले सुबह हुई मुठभेड़ भी इसी निर्माणाधीन सड़क के आसपास होने की बात कही जा रही है।

तोपचांची कांड से सुर्खियों में आया अजय महतो : अजय महतो गिरिडीह और धनबाद पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है। लाख कोशिश के बावजूद पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर सकी। गिरिडीह एवं धनबाद जिले के कुछ हिस्से को मिलाकर माओवादियों ने पारसनाथ सबजोन बनाया है। इस सबजोन का कमांडर अजय महतो है। अजय के बारे में कहा जाता है कि पहले वह नक्सलियों के छात्र संगठन में काम करता था। वह खुला संगठन था। इस कारण पुलिस उस संगठन में सक्रिय लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती थी।

वर्ष 2000 में धनबाद जिले के तोपचांची पुलिस पिकेट पर हमला के बाद अजय महतो चर्चा में आया। पहली बार वह सीधी कार्रवाई में शरीक हुआ था। पिकेट हमलाकांड में उसके जख्मी होने की भी सूचना थी। इस कांड के बाद वह भूमिगत हो गया। इसके बाद कई ¨हसक वारदात को अंजाम देने के साथ संगठन में आगे बढ़ता गया। फिलहाल कहा जा रहा है कि वह बीमार है। तोपचांची पुलिस पिकेट हमलाकांड में काफी संख्या में जैप के जवान मारे गए थे। नक्सली उनके हथियार एवं गोली-बारूद भी लूटकर ले गए थे।


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