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मशीन नहीं यहां आंखों से होती फिटनेस

दुमका : राज्य कि उपराजधानी में एक एमवीआइ पर हजारों वाहनों की फिटनेस का दायित्व हो तो अंदाजा लगाया स

By Edited By: Published: Tue, 06 Dec 2016 06:27 PM (IST)Updated: Tue, 06 Dec 2016 06:27 PM (IST)

दुमका : राज्य कि उपराजधानी में एक एमवीआइ पर हजारों वाहनों की फिटनेस का दायित्व हो तो अंदाजा लगाया सकता है कि वाहनों की फिटनेस में किस तरह से नियम कानून का पालन होता होगा। दुमका में न तो परिवहन और न ही मोटर यान निरीक्षक अपने दायित्व के प्रति गंभीर हैं। आए दिन होने वाले हादसों के बाद भी इनके स्तर से कोई ठोस पहल नहीं होती है।

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जिले में वाहन जांच की सबसे बुरी स्थिति है। यहां वाहनों की जांच मशीन की बजाय आंख से की जाती है। धुआं जांच की मशीन कमरे में धूल फांक रही और जिले में जर्जर से लेकर पर्यावरण को नष्ट करने वाली गाड़ियां बेधड़क दौड़ रही है। हादसे के बाद वाहन को जब्त करने के अलावा ऐसा कुछ नहीं होता है जिससे दूसरे वाहन चालक को कोई संदेश मिलता हो। कभी कभार मूड बनने पर वाहनों की जांच कर जुर्माना वसूला जाता है और उसके बाद स्थिति जस की तस हो जाती है। कहना गलत नहीं होगा कि यहां सारा काम भगवान के भरोसे और गांधी मार्का से होता है।

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साल में एक बार होती फिटनेस जांच

व्यवसायिक वाहन के बाद निबंधन के बाद एक साल के लिए फिटनेस प्रमाण दिया जाता है। उसके बाद हर एक साल पर फिटनेस की जांच का प्रावधान है। प्रावधान का पालन तो होता है लेकिन मशीन की बजाय आंख से। जांच के लिए वाहनों को कार्यालय लाने की आवश्यकता नहीं होती है। सारा कुछ बैठे बिठाए होता है।

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एक एमवीआइ पर जांच का जिम्मा

जिले के एक एमवीआइ बुद्धिनाथ चौधरी पर हजारों की संख्या में दौड़ने वाले वाहन के मालिक को फिटनेस देने का जिम्मा है। वे सप्ताह में एक दिन सोमवार को कार्यालय आते हैं। उनके पास प्रमंडल के दूसरे पांच जिलों का भी भार है। वे सप्ताह में एक दिन हर जिले को देते हैं। कार्यालय में एक चपरासी के अलावा दूसरा कोई कर्मी नहीं है। कुछ ऐसा हाल परिवहन विभाग का है। यहां भी आधा दर्जन कर्मी काम करते हैं। वाहनों की जांच के लिए एक ही गाड़ी है। इसी गाड़ी की मदद से शहर हो या ग्रामीण क्षेत्र वाहनों की जांच की जाती है।

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फिटनेस के लिए जरूरी प्रावधान

फिटनेस प्रमाण देने से पहले विभाग को 55 तरह की जांच करनी होती है। जांच में सब कुछ सही मिलने पर ही फिटनेस प्रमाण पत्र दिया जाता है। एक वाहन में विभाग हैंड ब्रेक, फुट ब्रेक, स्टेय¨रग, रिवर्स गियर, ¨वड स्क्रीन, डायरेक्शन इंडिकेटर्स, रिफ्लेक्टर, लाइट, रेड इंडीकेटर, हेड लाइट पर पें¨टग, पाíकग लाइट, धुआं, स्पीड गर्वनर, स्पीडोमीटर, हार्न, साइलेंसर, टायर की स्थिति, चालक का दरवाजा, ऑडियो वीडियो, वेंटिलेशन, फ‌र्स्ट एड बाक्स, अंदर की लाइट, दरवाजे, बैठने की व्यवस्था चालक की सीट आदि की जांच करता है। जांच में अगर एक भी चीज की कमी मिलती है तो फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता है।

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ट्रैक्टर-ट्राली निबंधन के प्रावधान

ट्रैक्टर व ट्राली के निबंधन से पहले विभाग जांच कर यह जानने का प्रयास करता है कि ट्राली में लगी लाइट काम कर रही है या नहीं है। साइड देने के लिए कोई सूचक है या नहीं। ट्रैक्टर में बैठने के अलावा सीट ठीक है कि नहीं। जांच के बाद ही विभाग इनका निबंधन करता है। पहली बार निबंधन करने पर एक साल के लिए फिटनेस प्रमाण पत्र मिलता है। इसके बाद हर एक साल के बाद मालिक को फिटनेस जांच के लिए विभाग आना पड़ता है। परन्तु यहां पहली बार जांच के बाद किसी तरह के नियम का पालन नहीं होता है। लोग घर में बैठकर फिटनेस प्रमाण पत्र हासिल कर लेते हैं। अभियान चलाकर कभी कभार वाहनों की जांच की जाती है। पकड़े जाने पर जुर्माना लगता है और उसके बाद मालिक की मनमर्जी चलती है।

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एक एमवीआइ के भरोसे प्रमंडल

दुमका उपराजधानी होते हुए भी यहां स्थायी एमवीआइ यानी मोटरयान निरीक्षक की पोस्ट खाली है। निरीक्षक बुद्धिनाथ चौधरी पर प्रमंडल के सभी छह जिलों में वाहन की देखरेख का भार है। वे एक दिन सोमवार को कार्यालय आते हैं जबकि बाकी दिन दूसरे जिले में बैठते हैं। इस कारण वाहनों की फिटनेस में किसी तरह के नियमों का पालन नहीं होता है। सब कुछ भगवान के भरोसे रहता है।


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