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संकरा इस्टेट 'गांदो' को गढ़ने की तैयारी

दुमका : कभी राजा-राजवाड़ों का इस्टेट रहा शंकरा (गांदो) आज खंडहर मात्र है। दुमका से महज कुछेक किलोमीटर

By Edited By: Published: Sun, 28 Jun 2015 06:31 PM (IST)Updated: Sun, 28 Jun 2015 06:31 PM (IST)
संकरा इस्टेट 'गांदो' को गढ़ने की तैयारी

दुमका : कभी राजा-राजवाड़ों का इस्टेट रहा शंकरा (गांदो) आज खंडहर मात्र है। दुमका से महज कुछेक किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांदो गांव की ऐतिहासिक महत्ता तो है ही लेकिन अब इस गांव की एक और नयी पहचान सूबे की समाज कल्याण मंत्री डॉ. लुईस मरांडी से जुड़ गयी है। डॉ. लुईस इसी गांव की बेटी हैं। सो, गांदो को नए सिरे से गढ़ने की तैयारी हो रही है। हूल दिवस पर 30 जून को यहां सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास आएंगे और इसकी पुरजोर संभावना है कि गांदो के समग्र विकास की दिशा में पहल तेज होगी। अब इसे महज इत्तफाक कहें या फिर सरकार की सोची-समझी नीति कि गांदो को नए सिरे से संवारने की शुरुआत 30 जून से होगी। दरअसल इतिहास के पन्नों में दर्ज गांदो और संकरा इस्टेट के तबाही की कहानी भी 30 जून 1855 को ही लिखी गयी थी। पंडित अनूप कुमार वाजपेयी की पुस्तक पूर्वी भारत के पहाड़िया में वर्णित है कि वर्ष 1855 में हुए हूल के दौरान संतालों ने इस यहां की हवेली पर आक्रमण किया था। तब यहां के राजा दिग्विजय सिंह थे और इस हूल में वे वीरगति को प्राप्त हो गये थे।

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इस पुस्तक में जिक्र है कि 1855 के हूल के दौरान दिग्विजय सिंह को उनकी हवेली के निकट स्थित तालाब के पास मौत की घाट उतारे जाने का उल्लेख 1910 में प्रकाशित गजेटियर में भी है। दिग्विजय सिंह कुमारभाग पहाड़िया थे और इसी तालाब के किनारे एक पत्थर के पास आज भी गांदो गांव के पहाड़िया विवाह एवं अन्य उत्सवों पर राजा दिग्विजय सिंह के नाम पर पुआ-पकवान चढ़ाते हैं। साक्ष्यों के अनुसार कुमारभाग पहाड़िया का रिश्ता सुल्तानाबाद इस्टेट से रहा है। सुल्तानाबाद पाकुड़ अनुमंडल के अंतर्गत महेशपुर राज और पाकुड़िया के बीच का इलाका है। सुल्तानाबाद इस्टेट के संस्थापक बकू सिंघ थे और संकरा इस्टेट के संस्थापक बकू सिंघ के भाई अकू सिंघ थे। संकरा इस्टेट की अंतिम रानी शिव सुंदरी थी। दुमका में इनके नाम पर शिव सुंदरी पथ और रानी बगान है। जबकि मुकराली गांव में संकरा स्टेट की सरहद का एक महत्वपूर्ण शिलालेख अब भी मौजूद है। हाल के कुछ वर्षो से गांदो को प्रखंड बनाने की मांग मुखर होती रही है। यह दीगर है कि इस इस्टेट का अंतिम वारिस भी नहीं रहा और सरकारी स्तर पर यहां मौजूद ऐतिहासिक खंडहरनुमा हवेली को सजाने-संवारने की कई बार हांक लगायी गयी है लेकिन स्थिति जस की तस है। ग्रामीणों को कहना है कि राजा दिग्विजय सिंह के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि तभी होगी जब गांदो को समग्र विकास होगा।


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