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डीवीसी विस्थापितों के हक को राज्य सरकार गंभीर

राजीव शुक्ला, झरिया 1954 में डीवीसी की स्थापना को करीब पन्द्रह हजार ग्रामीण परिवारों की 38 हजार एक

By Edited By: Published: Wed, 25 Mar 2015 01:20 AM (IST)Updated: Wed, 25 Mar 2015 01:20 AM (IST)

राजीव शुक्ला, झरिया

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1954 में डीवीसी की स्थापना को करीब पन्द्रह हजार ग्रामीण परिवारों की 38 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। बावजूद 14 हजार पांच सौ परिवारों को आज तक नियोजन नहीं मिला। जबकि इनकी तीसरी पीढ़ी अब हक के लिये संघर्ष कर रही है। इन परिवारों में कई ऐसे थे जिन्होंने अपना घर खोया था। बंजारे की जिंदगी जी। इन विस्थापितों के हक को अब राज्य सरकार गंभीर हो गई है। राज्य सरकार के मुख्य सचिव ने डीवीसी मैथन व पंचेत प्रंबधन को पत्र भेज ताकीद की है कि सात दिनों के अंदर जिन ग्रामीणों की जमीन ली गई व जिनको नियोजन दिया उनकी सूची भेजें। साथ ही कितनी जमीन व किसकी जमीन का अधिग्रहण किया यह भी बतायें। इस पत्र से हड़कंप मच गया है।

पत्रांक 242 के तहत राज्य सरकार ने अंचलाधिकारी के माध्यम से प्रबंधन से जानकारी मांगी है। इस पत्र को 17 मार्च को प्रबंधन को रिसीव भी करा दिया गया है। मालूम हो कि डीवीसी के मैथन व पंचेत डैम के निर्माण में झारखंड व बंगाल के कुल 340 गांव के पन्द्रह हजार ग्रामीणों की 38 हजार एकड़ जमीन ली गई थी। आदिवासी बहुल तेलकुप्पी के 1800 व सीमपाथर गांव के 1670 मकान डैम में डूब गये थे। ग्रामीणों को लगा था कि उन्हें उनका अधिकार मिलेगा। पर, न तो एकीकृत बिहार सरकार व न ही बंगाल सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी दिखाई। झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद की सरकारों ने भी इस प्रकरण को ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहने दिया। इधर नई सरकार ने इन ग्रामीणों के दुखदर्द पर मरहम लगाने की मंशा से जो कदम उठाया है उससे नौकरी की आस तीसरी पीढ़ी की उम्मीदों को पंख लगे हैं। ग्रामीणों की वर्षो से लड़ाई लड़ रहे घटवार आदिवासी महासभा के रामाश्रय सिंह ने बताया कि पत्र डीवीसी प्रबंधन को मिल गया है। अब सरकार जल्द ग्रामीणों को हक दिलाने का काम करे। उन्होंने कहा कि सुखद बात यह है कि राज्य की रघुवर सरकार ने जो कहा था उस पर कदम बढ़ाया है। इसके लिये मुख्यमंत्री रघुवर दास बधाई के पात्र हैं। मामले को रांची से लेकर दिल्ली तक उठा चुका हूं।

महज पांच सौ ग्रामीणों को मिला नियोजन: रामाश्रय सिंह ने बताया कि डीवीसी में महज पांच सौ वास्तविक हकदारों को नियोजन दिया गया। पर, नौ हजार ऐसे लोगों को नियोजन दिया गया जो इसके कतई हकदार नहीं थे। इस मामले की सीबीआइ से जांच कराने की आवाज हमने उठायी है। नौकरी की आस में दो पीढि़यां तो मर खप गई। अब तीसरी पीढ़ी को साथ लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इनको इनका हक दिलवाना ही हमारा मकसद है। उन्होंने दुखी अंदाज में कहा कि जिन लोगों ने देशहित में घर व जमीन दी उनको अधिकार न देकर मानवीय संवेदनाओं पर भी प्रबंधन ने आघात किया है।


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