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स्थायी व दूरदृष्टि वाली सरकार चाहिए

देवघर : झारखंड निर्माण के 14 वर्ष में नौ मुख्यमंत्री व 15 महीने का राष्ट्रपति शासन फिर भी अपेक्षित व

By Edited By: Published: Mon, 24 Nov 2014 01:50 AM (IST)Updated: Mon, 24 Nov 2014 01:50 AM (IST)
स्थायी व दूरदृष्टि वाली सरकार चाहिए

देवघर : झारखंड निर्माण के 14 वर्ष में नौ मुख्यमंत्री व 15 महीने का राष्ट्रपति शासन फिर भी अपेक्षित विकास नहीं। राज्य निर्माण के पूर्व अनेक आंदोलन हुए। लोगों के त्याग व बलिदान को भुला दिया गया। 14 साल बाद भी समृद्ध झारखंड की जनता मूलभूत सुविधा के लिए तरस रही है। झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए रविवार को दैनिक जागरण के देवघर कार्यालय में शिक्षाविदों ने इसी बात पर चर्चा की कि आखिर झारखंड को कैसी सरकार चाहिए? सबने यही कहा कि ऐसी मजबूत व स्थायी सरकार चाहिए जिसके पास विकास की दृष्टि हो। विकास का ऐसा खाका हो, जिसका उद्देश्य तात्कालिक राजनीतिक लाभ नहीं बल्कि दूरगामी परिणाम हो। जनता से भी जाति, धर्म व क्षेत्रीयता की भावना से ऊपर उठकर राज्य के विकास के लिए मतदान करने की अपील की गयी। क्योंकि यही मौका है। इसके बाद पांच साल केवल बहस ही होता रहेगा।

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किसने क्या कहा

दैनिक जागरण ने सुनहरा अवसर दिया कि चुनाव के समय सरकार की विवेचना कर रहे हैं। जो भी मतदाता हैं, अवश्य मतदान करें, उनका दायित्व है। इस पर विचार करना महत्वपूर्ण हैं कि किसे मतदान करें। प्राचीन काल से यह अवधारणा है कि राजा जैसा होगा, वैसी ही जनता होगी। आज के नीति नियंताओं के साथ भी यही है। ऐसा नहीं कि अलग होने के बाद झारखंड का विकास नहीं हुआ। जो होना चाहिए वह नहीं हुआ। अभी भी यहां अमीरी में गरीबी है। देश का 40 प्रतिशत खनिज संपदा झारखंड में है, बौद्धिक क्षमता की कमी नहीं है। जरूरत है, इसके सदुपयोग की और यह काम हमारे नीति नियंता ही कर सकते हैं। ऐसे लोगों को चुनने का काम जनता का है। दुर्भाग्य की बात है कि अभी तक झारखंड राजनीति का प्रयोगशाला ही बना हुआ है।

डॉ. सीताराम सिंह, प्राचार्य, देवघर महाविद्यालय

चुनाव प्रजातंत्र का प्राण हैं। जिस तरह हम अपने प्राण की रक्षा हर कीमत पर करते हैं, उसी तरह निष्ठापूर्वक इस प्राण की रक्षा करना भी हमारा दायित्व है। हर चीज लूट ली जाए तो कोई बात नहीं लेकिन मतदान का अधिकार नहीं लुटना चाहिए। क्योंकि यहां चुनावी लूट की कई पद्धति है। जाति, धर्म, पार्टी व क्षेत्रीयता के नाम पर भी चुनाव में लूट होती है। यह बंद हो जाए तो स्वच्छ छवि के जनप्रतिनिधि आएंगे, स्थिर सरकार से गुड गर्वनेंस होगा और गुड गर्वनेंस की कोख में ही विकास छिपा है। राज्य निर्माण के 14 वर्ष बाद भी 63 प्रतिशत लोगों के लिए शौच की व्यवस्था नहीं है। अधिकांश लोगों को साफ पानी नहीं मिल रहा है। बच्चे कुपोषण तो महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। यह विकास के इंडेक्स हैं और हर इंडेक्स में हम पीछे है। मतदाताओं को यह मौका मिला है। इसे गंवाए नहीं और अपने आपको को लुटने न दें। तभी झारखंड निर्माण का सपना पूरा होगा।

डॉ. नागेश्वर शर्मा, सेवानिवृत्त प्राचार्य

स्पष्ट बहुमत की सरकार जनता चुने, तभी विकास होगा। इसके लिए जनता को साक्षर नहीं शिक्षित करने की जरूरत है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव खासतौर से गांवों में आज भी है, जहां सबसे अधिक मतदाता हैं। व्यवस्था का दोष है, इसमें वृहद पैमाने पर परिवर्तन की जरूरत है। इसके लिए समग्र विकास के साथ समरस समाज चाहिए।

डॉ. पशुपति राय, विभागाध्यक्ष, राजनीतिक विज्ञान, एएस कॉलेज

14 वर्ष का अनुभव जनता के लिए दर्दनाक व दुखद है। ऐसी सरकार अभी तक नहीं मिली जो से गांवों के विकास, किसानों, शिक्षा व स्वास्थ्य के प्रति गंभीर दिखाई दे। शहर में कुछ विकास दिखाई देता है, गांव अभी भी कोसों दूर है। कारण नेताओं में सोच का अभाव। झारखंड की इस दुर्दशा के लिए बहुत हद तक यहीं की जनता जिम्मेदार है। लोग जाति, धर्म व क्षेत्र को सामने रखकर चुनाव का विश्लेषण व मतदान करते हैं। प्रदेश की जनता में राजनीतिक चेतना का अभाव है, नतीजतन अभी तक खंडित जनादेश में लूटना व सरकार को बचाना यही मकसद रहा है। स्कूलों व कॉलेजों में अत्याधुनिक सुविधाएं हों, ऐसी सोच राजनेताओं में नहीं दिखी। जनता से आग्रह है कि स्थिर सरकार के लिए मतदान करें, विकास के महत्व को समझनेवाले को वोट दें।

प्रो. ललित देव, शिक्षक, देवघर महाविद्यालय

झारखंड की दुर्दशा के लिए पूरी तरह से जनता जिम्मेदार है। क्योंकि क्षेत्रीयता की भावना से हम अपने आपको अलग नहीं कर पाए हैं। 14 वर्ष में भी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं बनी हुई है। सीमेंट व कंक्रीट के जंगल बढ़ाकर विकास का डंका बजाया जा रहा है। झारखंड रत्नों का खजाना है। राजनेता संपत्ति को बेचकर ऐश करना चाहते हैं। आखिर यह संचित धन कब तक चलेगा। स्किल डेवलपमेंट की कोई योजना नहीं है। शिक्षा अपनी दुर्दशा पर रो रही है। असैनिक कार्य में शिक्षक निपुण होते जा रहे हैं। जिन पर भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं, वैसे जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र में मान्य हैं। मतलब जनता ने उन्हें चोरी की इजाजत दे रखी है। ऐसी मानसिकता से नहीं निकलेंगे, तब तक स्पष्ट जनादेश नहीं मिलेगा। सबकी सहभागिता से ही राज्य का समग्र विकास होगा।

सुबोध झा, प्राचार्य, देवघर सेंट्रल स्कूल

पिछले 14 वर्ष में नौ मुख्यमंत्री व तकरीबन सवा साल का राष्ट्रपति शासन, इसके लिए पूरी तरह से राज्य की जनता जिम्मेदार है। उसने अभी तक अपरिपक्वता का परिचय दिया है। हालांकि अब इसमें बदलाव आ रहा है। जनता की सोच बदल रही है कि पार्टी प्रमुख है, उम्मीदवार नहीं, क्योंकि सामूहिक नेतृत्व में ज्यादा प्रभावशाली सरकार काम करेगी। स्थायी सरकार के लिए मतदान करना होगा और जो करना होगा जनता को अभी करना होगा क्योंकि इसके बाद पांच साल तक केवल बहस के लिए समय मिलेगा।

एसडी मिश्रा, निदेशक, मैत्रेय कीड्स स्कूल

14 साल में विकास के जिस पायदान पर होना चाहिए, उससे बहुत नीचे हैं। हर वर्ष सर्व शिक्षा अभियान में करोड़ों खर्च हो रहा है, बावजूद इसके कई ऐसे गांव हैं, जहां के बच्चे स्कूल गए ही नहीं। पढ़ने की उम्र में बच्चे पत्थर खदान व ईट भट्ठा में काम करते हैं। ऐसे ही एक बच्चे ने सवाल किया था, जिसका जवाब नहीं सूझा कि पांच साल में चुनाव होता है तो डेढ़ साल में मुख्यमंत्री कैसे बदल जाते हैं। आज झारखंड में ऐसी सरकार चाहिए, जिसमें आत्मबल हो और इसके लिए जनता को चिंतन करने की जरूरत है। इसमें शिक्षाविदों की अहम भूमिका है कि वह देश के युवाओं में देश प्रेम की भावना जागृत करें। झारखंड को विजनवाली सरकार चाहिए जो सख्त निर्णय ले।

मनोज कौशिक, निदेशक, आक्सफोर्ड इंग्लिश सेंटर

अभी तक राज्य में जो भी सरकार बनी वह निरंकुश थी, जो यहां की दुर्दशा का प्रमुख कारण है। राजनेताओं के लिए चुनाव जीतना व्यवसाय हो गया है। अभी तक जो भी विकास हुआ है, उसमें आधारभूत सुविधा व गुणवत्ता का अभाव है। यहां के लिए एक कहावत बन गया है कि जो भी योजना असफल है, वह सरकारी है। इस अवधारणा को जनप्रतिनिधि ही समाप्त कर सकते हैं।

प्रो. कमल किशोर, शिक्षक, देवघर महाविद्यालय


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