ईद के इंतजार में बिछ गई पलकें
मधुपुर : अल्लाह और बंदों के बीच की दूरियां मिटानेवाला महीना रमजान अब विदा होने को है। रमजान में दिन-रात खूब इबादतें हुई। बंदों ने कुरान पढ़ा, नमाज अता की, गुनाहों के लिए माफी मांगी और अल्लाह से सच्ची और नेक जिंदगी गुजारने का वादा किया। इस दौरान बुराइयां कोसों दूर रही। आंखों में नूर, चेहरे पर सच्चाई और दिल तमाम बुराईयों से पाक रहा। कितनी हसीन लगने लगी थी यह दुनिया। अल्लाह ने अपने बंदों पर खूब रहमत बरसाई। मगर अफसोस माह-ए-रमजान एक बार फिर रुखसत होने को है और अल्लाह के नेक बदों की आंखें डबडबा गई।
बाजार की बढ़ गई रौनक
ईद के लिए गुरुवार को बाजार में चहल-पहल बढ़ी रही। इत्र, सेवईयां, मेवे, टोपी, रुमाल की खरीदारी को बाजार में भीड़ देर शाम तक उमड़ती रही। महिलाओं ने अपनी चूडि़यां, मेंहदी के अलावा सोलह श्रृंगार के सामान खरीदे। गांधी चौक, हटिया रोड, थाना रोड, हाजी गली, स्टेशन रोड स्थित दुकानों में तो जनसैलाब उमड़ आया। बच्चे भी अपनी फितरत कैसे छोड़ते अब ईद है तो बच्चों को भी ब्रांडेड कपड़े चाहिए। 29 जुलाई को ईद होने की संभावना है। कढ़ाईवाले कुर्ते के साथ-साथ सूती कुर्ता-पायजामा, लोगों की पहली पसंद है। थाना रोड, हाजी गली, गांधी चौक, हटिया रोड सहित कई मोहल्लों में ईद की खरीदारी चरम पर है। यहां दो सौ से हजार रुपये तक के कुर्ते बिक रहे हैं। महिलाएं व लड़कियां जरी के कामवाली साड़ी और कढ़ाईदार सूट पर जोर दे रही है। कशीदाकारी वाली जूतियां अधिक पसंद की जा रही है। ग्राहकों की भीड़ अब कारीगरों के घर तक पहुंचने लगी है।
ईद की दस्तक से दमकने लगे चेहरे
ईद यानी खुशी ने दस्तक दे दी है। सबके चेहरे पर बहुत कुछ मिलने से पहले की खुशी है। रोजेदारों के चेहरे चमक रहे हैं। बच्चे खुशी से फूले नहीं समा रहे। कुर्ता, टोपी और नजाकतवाला लखनवी नागरा व जूती। सलमा सितारा लगे झिलमिलाते लड़कियों के पोशाक, रंगबिरंगी चुनरी, चूड़ियां मेहंदी लगाने में बच्चियां भी व्यस्त हैं। शहर का चप्पा-चप्पा इत्र की खुशबू से गुलजार है।
अलविदा जुमे की नमाज आज
'रमजान' का अंतिम चरण यानी तीसरा और अंतिम 10 दिन का अशरा जारी है। मुसलमान जहन्नम (नरक) से बचने को और जाने-अनजाने में हुई अपनी गलतियों की माफी मांगने में जुटे हैं। 25 जुलाई को रमजान का अलविदा जुमा होगा। अनुमंडल की तमाम मस्जिदों में नमाज के बाद पूरी दुनिया और इंसानियत के लिए विशेष दुआएं की जाएगी। रमजान के आखिरी 10 दिन में ही वह पांच रातें हैं जिनमें से किसी एक में इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ कुरान का संदेश इंसानों के मार्गदर्शन के लिए धरती पर उतारा गया। इन रातों को शब-ए-कद्र कहते हैं। मस्जिदों व सार्वजनिक स्थल पर शब-ए-कद्र की नमाज के लिए खास इंतजाम किए जाते हैं। रातभर इबादत का दौर चलता है। हर बंदा अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी, तरक्की, अमनचैन और भाईचारे के लिए दुआ करता है।
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अलग से बॉक्स में
इंसानियत का पाठ पढ़ाता रमजान : मौलाना जमील अहमद
फोटो 24 डीईओ 021
मधुपुर : रमजान में रोजा रखने, अल्लाह की इबादत करने, अच्छे काम करने, जरूरतमंदों की मदद करने, बुराई से तौबा करने, गुनाहों की माफी मांगने जैसे कामों का सुनहरा अवसर मिलता है। इंसान को 'नेक इंसान' बनने का प्रशिक्षण देने के साथ ही 'इंसानियत' का पाठ पढ़ाता है रमजान। ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, जात-पात का फर्क मिटाकर एक इंसान को दूसरे से करीब करता है रमजान। थाना रोड स्थित पीर साहब बड़ी मस्जिद के मौलाना जमील अहमद ने कहा कि रिश्ते-नातेदार, दोस्त के अलावा पड़ोसियों से हुस्न सलूक यानी सुंदर व्यवहार करनेवालों पर अल्लाह की खास रहमत बरसती है। पड़ोसी किसी भी जात-धर्म का हो उसका हमदर्द बनें। उसके दुख-सुख में काम आएं, उसके राजदार बनें, उसके साथ ऐसा व्यवहार करें कि पड़ोसी को अपनों से ज्यादा आप पर भरोसा हो। इस्लाम यही शिक्षा देता है। कुरान शरीफ में गुस्सा को हराम कहा गया है, इसीलिए रोजा के दौरान स्वभाव को नरम रखें। किसी पर नाहक गुस्सा न हों। इस बड़ी बुराई से खुद को बचा लेना भी रोजे के कबूल होने की पहचान जमानत है।