राज्यनामा जम्मू-कश्मीर
भाई मंत्री बनना है सत्ताधारी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी में इन दिनों एक युवा नेता जोकि एमएलसी हैं
भाई मंत्री बनना है
सत्ताधारी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी में इन दिनों एक युवा नेता जोकि एमएलसी हैं के अलावा एक पूर्व मंत्री को लेकर खूब हलचल मची हुई है। डोडा क्षेत्र से संबंधित यह एमएलसी महोदय कभी पत्रकार भी रहे हैं और एक न्यूज एजेंसी भी चला चुके हैं। न्यूज एजेंसी पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोपों के चलते बंद हो चुकी है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद वह पीडीपी में अपने संपर्क सूत्रों और जोड़तोड़ के जरिए वह एमएलसी बनने में कामयाब रहे हैं और अब उनकी नजर कैबिनेट मंत्री की कुर्सी पर टिकी हुई है। इस कुर्सी पर बैठने के लिए वह राज्य मंत्रिमंडल में संभावित विस्तार के दौरान अपना नाम यकीनी बनाने के लिए हर तरीका इस्तेमाल कर रहे हैं। डोडा क्षेत्र में पीडीपी का जनाधार बढ़ाने का हवाला भी दे रहे हैं और खुद को स्व. मुफ्ती मुहम्मद सईद का सबसे बड़ा अनुयायी भी साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री समेत पीडीपी के तीन प्रमुख नेताओं के साथ अपनी घनिष्ठता बढ़ाने का भी हरसंभव प्रयास किया है और इसी सिलसिले में उन्होंने गत दिनों जम्मू में पीडीपी के संस्थापक मुफ्ती मुहम्मद सईद के भाषणों को संकलित कर उन्हें एक किताब की शक्ल दे, मुख्यमंत्री के हाथों उसका विमोचन भी कराया। लेकिन उनकी इच्छा जल्द पूरी होती नजर नहीं आ रही है, क्योंकि संगठन में कई पुराने नेता इस युवा नेता के इरादों को भांप चुके हैं। उन्होंने इसका विरोध करते हुए कहा है कि पहला हक उन लोगों का है, जिन्होंने पार्टी को विपरीत परिस्थितियों में खड़ा किया है। इसके अलावा तीन वरिष्ठ नेता और विधायक जो मुफ्ती मुहम्मद सईद के नेतृत्व वाली पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री थे, अब बाहर हैं, दोबारा मंत्री बनने के लिए प्रयासरत हैं। इनमें एक विधायक जो श्रीनगर शहर से ही संबंध रखते हैं, की उपेक्षा पीडीपी को श्रीनगर व उसके साथ सटे इलाकों में नेशनल कांफ्रेंस को मजबूत बना रही है। वह कई मंचों पर राज्य सरकार का विरोध करते हुए उसकी नीतियों को निशाना बना चुके हैं। नेशनल कांफ्रेंस उन्हें अपने खेमे में लाना चाहती है और ऐसा होने पर पीडीपी को श्रीनगर शहर में बहुत नुकसान होगा जो वह कतई नहीं चाहेगी। इसलिए उक्त विधायक को भी दोबारा मंत्री बनाना जरुरी है। दोनों को कैसे एडजस्ट किया जाए, इसे लेकर मुख्यमंत्री के कार्यालय से लेकर पीडीपी मुख्यालय तक रोज चर्चा हो रही है, लेकिन बात नहीं बन रही है।
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कश्मीर पंडितों की वापसी
बीते 27 वर्षो में पहली बार राज्य विधानसभा में गत सप्ताह विस्थापित कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी और पुनर्वास का एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। लेकिन इस प्रस्ताव को लेकर कश्मीरी पंडितों में कोई उत्साह नहीं है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ सियासत और उनके जख्मों पर नमक है। कश्मीर में बचे खुचे कश्मीरी पंडितों ने कहा कि जो सरकारी वादी में दयनीय स्थिति में रह रहे कश्मीरी पंडितों की सुध नहीं लेती, वह पलायन करने वालों को वापस कैसे लाएगी और पुनर्वास का नारा भी पलायन के दिन से ही चल रहा है। अलगाववादी खेमे ने भी चिरपरिचित अंदाज में इसका विरोध करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडित आएं, लेकिन अपने पुश्तैनी घरों में रहने के लिए। अलग कश्मीरी पंडित कॉलोनी नहीं बनने दी जाएगी। लेकिन इस सारे प्रकरण के बीच गठबंधन सरकार विशेषकर भाजपा के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों ने पैदा कर दी है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों को इस प्रस्ताव के झांसे में न आने की ताकीद करते हुए कहा कि जो हमारे साथ हुआ है, वही आपके साथ होगा। हमे स्थायी नागरिकता दिलाने का नारा देने वाली भाजपा अब इसका जिक्र भी नहीं करती और आपकी कश्मीर वापसी के लिए भी वह इस प्रस्ताव से आगे कहीं नहीं जाएगी। अलबत्ता, जिस तरह पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों को पहले से केंद्रीय सरकार के विभागों में प्रदान की जा रही नौकरियों और पहले से जारी प्रक्रिया के तहत अधिवास प्रमाणपत्र को भाजपा ने अपनी उपलब्धि बताया है, वैसा ही कुछ अब होगा। पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों से मिली सीख के बाद कश्मीरी पंडितों ने भाजपा नेतृत्व से प्रस्ताव और पुनर्वास को लेकर कुछ व्यावहारिक कदमों की मांग शुरू कर दी है, लेकिन उनका हितैषी होने का दावा करने वाली भाजपा ही नहीं पीडीपी और नेकां भी अब चुप हो गई है।
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पीडीपी के साथ गठजोड़ रोक रहा
पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। दोनों ही राज्य में भाजपा की साख दांव पर लगी हुई है और सभी राज्यों से भाजपा के वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार के लिए इन दोनों राज्यों में बुलाए जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर भाजपा के भी कुछ नेताओं और मंत्रियों ने इन राज्यों में चुनाव प्रचार करने की इच्छा जताई है। लेकिन भाजपा आलाकमान ने उन्हें इसकी अनुमति अभी तक नहीं दी है। इससे प्रदेश भाजपा में जहां मायूसी छाई है, वहीं भाजपा आलाकमान को भी अब जम्मू-कश्मीर में सत्ता संभालने के साइड इफेक्ट्स नजर आने लगे हैं। भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर भाजपा के नेताओं को अक्सर देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव प्रचार के लिए पहले बुलाया जाता रहा है। लेकिन इस बार पीडीपी के साथ गठजोड़ के कारण आलाकमान प्रदेश भाजपा के प्रमुख नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बुलाने से डर रही है। उसे आशंका है कि इन नेताओं के चुनाव प्रचार में हिस्सा लेने से यूपी और पंजाब में नकारात्मक असर होगा। कांग्रेस व अन्य विरोधी दल जम्मू-कश्मीर के हालात, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ भाजपा के गठजोड़ को खुलकर उछालेंगे, वह जम्मू-कश्मीर में सत्तासीन गठबंधन सरकार द्वारा एक वर्ग विशेष और अलगाववादियों के तुष्टिकरण के लिए उठाए गए कदमों का जिक्र करेंगे। सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा राज्य सरकार द्वारा पत्थरबाजों के लिए पांच लाख का मुआवजा का एलान। इसलिए भाजपा आलाकमान ने जम्मू कश्मीर में सत्तासीन गठबंधन के तहत मंत्री बने किसी भी वरिष्ठ भाजपा नेता या संगठन के प्रमुख नेताओं को चुनाव प्रचार में न बुलाने का फैसला किया है। अलबत्ता, संघ से जुडे़ कई नेता प्रचार करने जरूर जाएंगे।