अलगाववादियों ने परोक्ष रूप से किया प्रस्ताव का विरोध
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : कश्मीरी पंडितों की वादी में वापसी और पुनर्वास के लिए वीरवार को राज्य विधानसभ
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : कश्मीरी पंडितों की वादी में वापसी और पुनर्वास के लिए वीरवार को राज्य विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव का कश्मीरी अलगाववादियों ने परोक्ष रूप से विरोध करते हुए कहा कि यह अधूरा प्रस्ताव है। कश्मीरी पंडितों के साथ भारत-पाक विभाजन के समय कश्मीर से पाकिस्तान चले जाने वाले 15 लाख मुस्लिमों को भी वापस लाने का प्रस्ताव पारित होना चाहिए था।
कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी की तरफ से उनके प्रवक्ता एयाज अकबर ने कहा कि हम कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के खिलाफ नहीं हैं। हम चाहते हैं कि वह यहां आएं। लेकिन जो प्रस्ताव विधानसभा में पारित हुआ है, हम उसके समर्थक नहीं है। यह प्रस्ताव अधूरा है। भारत-पाक विभाजन के समय और उसके बाद 1965, 1971 व 1989 के बाद लगभग 15 लाख से ज्यादा मुसलमानों को राज्य से पाकिस्तान जाना पड़ा। इन लोगों को पहले वापस लाया जाए।
उदारवादी हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने कहा कि कश्मीरी पंडित हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा हैं, वह हमारे भाई हैं। उनके बिना कश्मीर अधूरा है। लेकिन उन्हें कश्मीरी मुस्लिमों ने नहीं निकाला, वह कभी भी यहां आकर रह सकते हैं, उनके लिए प्रस्ताव पारित करने की क्या जरूरत। जिस हाल में हम लोग रह रहे हैं, वह भी आकर यहां रहें और हमारे साथ-साथ कश्मीरियों के हक के लिए लड़ें।
जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन मुहम्मद यासीन मलिक ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को नई दिल्ली ने एक सुनियोजित साजिश के तहत ही कश्मीर से निकाला था ताकि यहां मुसलमानों का कत्लेआम किया जा सके, कश्मीरियों की आजादी की तहरीक को दबाया जा सके। कश्मीर की तहरीक को दबाने, कश्मीरी मुसलमानों को अल्पसंख्यक बनाने के लिए ही कश्मीरी पंडितों की वापसी का प्रस्ताव पारित कर उसकी आड़ में गैर रियासती बाशिंदों को यहां बसाया जाएगा। ऐसा हमें मंजूर नहीं।