सरकारी सहायता की उम्मीद में गोलीबारी प्रभावित
संवाद सहयोगी, हीरानगर : भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दो दशक तक होती रही पाकिस्तान
संवाद सहयोगी, हीरानगर : भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दो दशक तक होती रही पाकिस्तान की तरफ से गोलाबारी के कारण घायल हुए लोग आज भी सरकारी सहायता की उम्मीद लगाए बैठे हैं। 1998 से अब तक हीरानगर सेक्टर के दर्जनों लोग गोलाबारी और बारूदी सुरंगों की चपेट में आकर घायल हुए थे जिन्हें सरकार की तरफ से उचित सहायता नहीं मिली और आज उनके लिए अपने परिवारों की गुजर बसर मुश्किल हो गई है।
उन लोगों में एक चक दुल्मा का 40 वर्षीय तरसेम लाल भी है, जिसकी बारूंदी सुरंग की चपेट में आकर एक टांग कट गई थी। दैनिक जागरण से अपनी व्यथा सुनाते हुए तरसेम लाल ने बताया कि वर्ष 2002 में सेना द्वारा सुरक्षा के दृष्टिकोण से बिछाई गई एक सुरंग की चपेट में आकर वह घायल हो गया था दो माह तक जीएमसी में उसका उपचार चलता रहा और इसके बाद उसकी एक टांग काट दी गई थी। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से सहायता के रूप में केवल 75 हजार रुपये मिले थे। एक पांव न होने की वजह से उसके लिए खेती करना भी मुश्किल हो गया है। अन्य कोई काम धंधा भी नहीं। परिवार के पांच सदस्यों का पालन पोषण की जिम्मेदारी भी उसी पर है। सरकार ने तब एसआरओ के तहत सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया था जो आज तक पूरा नहीं किया। कृत्रिम पांव जो 15 साल पूर्व चढ़ाई थी वो भी खराब हो चुकी है। तरसेम लाल ने सरकार से गोलाबारी और बारूदी सुरंग के कारण दिव्यांग हुए लोगों के परिवारों के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग की है।
वहीं स्थानीय विधायक कुलदीप राज का कहना है कि गोलाबारी से घायलों को पहले 75 हजार रुपये तक सहायता राशि मिली थी। प्रभावितों को सरकारी नौकरी देने का मुद्दा विधानसभा में उठाया जाएगा।